मुख्यपृष्ठस्तंभसमाज के सिपाही : अनाथाें के 'मसीहा' बने देवेंद्र सिंह

समाज के सिपाही : अनाथाें के ‘मसीहा’ बने देवेंद्र सिंह

संदीप पांडेय

भायंदर (पूर्व) के खारीगांव स्थित श्री राजेंद्र हनीकॉम्ब चैरिटेबल ट्रस्ट बीते २४ वर्षों से सैकड़ों अनाथ बच्चों के लिए एक नई उम्मीद बनकर खड़ा है। इस आश्रम के संस्थापक देवेंद्र प्रताप सिंह न केवल इन बच्चों को आश्रय देते हैं, बल्कि उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य और जीवन की हर जरूरतों को पूरा करने के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं। उन्होंने अब तक सैकड़ों अनाथ बच्चों को नया जीवन दिया है, जिनमें से १५० से अधिक बच्चे आत्मनिर्भर बन चुके हैं। इतना ही नहीं उन्होंने अब तक १२ अनाथ लड़कियों की शादी भी करवाई है।
उत्तर प्रदेश के मूल निवासी देवेंद्र सिंह हरिद्वार के गुरुकुल विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई करने के बाद १९९७ में मुंबई आए। शुरुआत में गोवंडी की झोपड़पट्टी में रहते हुए उन्होंने देखा कि छोटे-छोटे बच्चे कचरा बीनने को मजबूर हैं। एक सैनिक परिवार से आने और आध्यात्मिक संस्कारों में पले-बढ़े देवेंद्र का मन इन बच्चों की दशा देखकर विचलित हो गया। उन्होंने इन्हें सहारा देने का संकल्प लिया और २००० में भायंदर में बाल आश्रम की नींव रखी। शुरुआत में संसाधनों की भारी कमी रही, लेकिन उन्होंने पत्र-पत्रिकाओं में लेखन कार्य कर आश्रम का खर्च चलाया। उनकी मेहनत और समर्पण देखकर उनके रिलेटिव ने अपना लगभग २००० स्क्वायर फुट का फ्लैट आश्रम के लिए दान कर दिया। अनाथ बच्चों को पालने का संकल्प इतना दृढ़ था कि देवेंद्र सिंह और उनकी पत्नी अर्चना सिंह ने १५ सालों तक अपने खुद के बच्चे की इच्छा को भी त्याग दिया। उन्होंने पहले अनाथ बच्चों की देखभाल को ही प्राथमिकता दी। आर्थिक स्थिति में सुधार के बाद परिवार के आग्रह पर उन्होंने अपने बच्चे के बारे में सोचा और आज उनकी सात साल की एक बेटी है। देवेंद्र सिंह कहते हैं कि मुंबई में करीब डेढ़ लाख से अधिक अनाथ बच्चे हैं, लेकिन उनके लिए सरकार की योजनाएं न के बराबर हैं। अनाथ बच्चों के प्रति सरकारी उदासीनता देश के भविष्य से खिलवाड़ के समान है। सरकारों को इस दिशा में गंभीरता से काम करने की जरूरत है। देवेंद्र सिंह आज भी ६० से अधिक अनाथ बच्चों की परवरिश कर रहे हैं। समाज के हर व्यक्ति का दायित्व बनता है कि वे इस नेक कार्य में सहयोग करें। आर्थिक मदद किताबें, कपड़े, भोजन सामग्री या किसी भी रूप में सहायता देकर हम इन बच्चों का भविष्य संवार सकते हैं।

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