मुख्यपृष्ठग्लैमरकभी-कभी : अपने सिद्धांतों पर रहीं अडिग

कभी-कभी : अपने सिद्धांतों पर रहीं अडिग

यू.एस. मिश्रा
आज के भौतिक युग में इंसान सिर्फ और सिर्फ अपना ही फायदा देखता है। अपने अलावा किसी और को फायदा हो इसके बारे में वो तनिक भी नहीं सोचता और सब कुछ अकेले ही समेट लेना चाहता है। लेकिन बीते जमाने में सिर्फ अपने लिए ही नहीं, बल्कि अपने साथी गायक कलाकारों को भी रॉयल्टी मिले इसके लिए अपने सिद्धांतों पर अडिग रहनेवाली लता मंगेशकर ने न केवल रॉयल्टी के लिए जंग छेड़ दी, बल्कि प्रोड्यूसर सहित रिकॉर्डिंग कंपनियों को रॉयल्टी देने के लिए मजबूर कर दिया।
‘स्वर सम्राज्ञी’ लता मंगेशकर द्वारा शुरू की गई रॉयल्टी की जंग केवल उस व्यवस्था को लेकर नहीं थी जो गायकों को उनके अधिकारों से वंचित रखना चाहती थी, बल्कि कुछ हद तक उन गायक कलाकारों के साथ भी थी जो या तो अपना हक नहीं जानते थे या उस व्यवस्था से टक्कर लेने में घबराते थे। रॉयल्टी के मामले में जब गायक कलाकारों के सामने लता मंगेशकर ने अपनी बात रखी तो मोहम्मद रफी ने लता मंगेशकर से कहा कि एक बार गाना गाने के लिए प्रोड्यूसर हमें पैसे दे चुका है तो फिर हमारा क्या हक बनता है कि हम और हिस्सा मांगें? इस पर लता मंगेशकर ने कहा कि हमसे पहले के गायकों के गाये हुए गीत आज भी बिक रहे हैं, पर उन्हें कुछ नहीं मिलता और उनमें से कइयों की आर्थिक स्थिति आज बेहद बुरी है। लता मंगेशकर की बात सुनकर मोहम्मद रफी ने कहा, ‘कल ही मैंने पार्श्वगायक खान मस्ताना को पांच सौ रुपए दिए। उन्हें पैसों की सख्त जरूरत थी और हम ऐसा अच्छा काम करते ही रहते हैं।’ इस पर लता मंगेशकर ने कहा, ‘रॉयल्टी की मांग करके यही कोशिश की जा रही है कि भविष्य में किसी दूसरे गायक को अपने कनिष्ठ गायक के सामने हाथ न  फैलाना पड़े।’
खैर, रॉयल्टी के मुद्दे पर मुकेश, तलत महमूद और लता मंगेशकर बहस और चर्चा करते रहते। बकौल लता मंगेशकर, ‘आज गला चल रहा है, पैसे मिल रहे हैं, सब कुछ ठीक-ठाक है। लेकिन कल ठीक-ठाक न रहा तो? फिल्में चलती हैं तो उसमें गानों का भी योगदान जरूर होता है और गानों के हिट होने में गायक का। फिल्म ‘नागिन’ की सफलता ने तो जैसे हमारी आंखें खोल दीं। वह फिल्म केवल ‘मन डोले मेरा तन डोले…’ गीत पर किए वैजयंतीमाला के नृत्य पर नहीं चली, उसमें उस गीत और मेरे गाने ने भी कुछ काम किया होगा और उसके रिकॉर्ड आज तक बिक रहे हैं, रेडियो-टीवी पर बजाए जा रहे हैं सो अलग।’ पार्श्वगायकों की ओर से गायकों के एसोसिएशन ने जब रिकॉर्डिंग कंपनी से अपने अधिकार के हिस्से की मांग की तो उसने निर्माता का दरवाजा दिखाते हुए कहा कि हमने तो प्रोड्यूसर को रॉयल्टी दे दी है, आप उनसे रॉयल्टी मांगो। कुछ निर्माता रॉयल्टी देने के लिए मान गए तो कुछ ने गायकों की एकजुटता में फूट डालने की कोशिश करते हुए मोहम्मद रफी को अपने विश्वास में ले लिया, ताकि वो एसोसिएशन को रॉयल्टी की मांग करने से रोकें। इस पर लता मंगेशकर ने मोहम्मद रफी को समझाने की कोशिश करते हुए उनसे कहा कि हम दोनों को रॉयल्टी पाने में कोई दिक्कत नहीं होगी लेकिन दूसरों को रोकने का हमें अधिकार नहीं है, हमें उनका साथ देना चाहिए। लेकिन काफी समझाने के बाद भी मोहम्मद रफी अपनी बात पर अड़े रहे कि सिंगर को रॉयल्टी नहीं लेनी चाहिए। इस पर लता मंगेशकर ने उनसे साफ-साफ कह दिया कि मुझे ये मंजूर नहीं। लता मंगेशकर की बात सुनने के बाद मोहम्मद रफी ने गुस्से में कहा, ‘ये महारानी जो कहती है वही सही।’ इस पर लता मंगेशकर ने कहा, ‘रफी साहब, मैं वाकई महारानी हूं और आपने कहा न कि मैं तुम्हारे साथ नहीं गाऊंगा, तो आप क्यों तकलीफ करते हैं, मैं ही आपके साथ नहीं गाऊंगी।’ इसके बाद लता मंगेशकर ने सभी संगीतकारों से कह दिया कि वो मोहम्मद रफी के साथ गाना नहीं रिकॉर्ड करेंगी। इस प्रकरण के लगभग ३ वर्षों बाद संगीतकार एस.डी. बर्मन के लिए दोनों कलाकार एक साथ स्टेज पर आए और वहां उन्होंने एक साथ परफॉर्म किया। इसके बाद दोनों के बीच सुलह होते देर नहीं लगी और श्रोताओं को उनकी मधुर आवाज में एक से बढ़कर एक गीत सुनने को मिले। खैर, लता मंगेशकर इस बात को बखूबी जानती थीं कि मांगने पर उन्हें रॉयल्टी मिल जाएगी। लेकिन ‘सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाय’ नीति पर अमल करनेवाली और अपने सिद्धांतों से टस से मस न होनेवाली लता मंगेशकर द्वारा उठाई गई आवाज की बदौलत ही गायकों को रॉयल्टी मिलने की शुरुआत हुई।

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