आज शूल चुभा एकाकीपन का
मन खामोश रह ना सका।
कुछ गीत पुराने अधरों पर मचल गये
गुनगुनाये थे हमने हौले हौले।
परवान चढ़ी ना प्रीत हमारी
नज़र लगी कुछ मेरी कुछ तेरी।
प्रीत हमारी हो ना उजागर
थे रहते हम सहमे सहमे।
दूरियां बहुत थी मध्य हमारे
फिर भी थे मिलन की आस लगाए।
क्यों मौन ,मूक हो गये थे दोनों
कौन प्रीत लड़ी का सिरा पकड़ाए।
एक चुभन मन में हे मेरे
क्यों ना बांधें मन्नत के धागे।
मैं थी डरी सहमी, तुम क्यों रहते घबराए
अधर सिले थे मेरे,
तुमने क्यों लब पर ताले लटकाए।
एक मोड़ पर रुक गई ज़िंदगी
आ, मिल दोनों प्रीत जगा जीवन महकाएं।
जम कर बरसी आज बदरिया
चल प्रीत अपनी परवान चढ़ाएं।
कुछ स्वर मेरे ,कुछ बोल तुम्हारे
प्रीत गीत अब मिल कर गाएं।
बेला विरदी।