मुख्यपृष्ठस्तंभकला-संस्कृति पर विशेष...राजस्थान का प्रमुख लोकोत्सव है गणगौर पर्व

कला-संस्कृति पर विशेष…राजस्थान का प्रमुख लोकोत्सव है गणगौर पर्व

रमेश सर्राफ धमोरा

गणगौर एक प्रमुख त्योहार है। यह मुख्य रूप से राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के ब्रज क्षेत्र में मनाया जाता है। गणगौर दो शब्दों गण और गौर से बना है। इसमें गण का अर्थ भगवान शिव और गौर का अर्थ माता पार्वती से है। इस दिन अविवाहित कन्याएं और विवाहित स्त्रियां भगवान शिव, माता पार्वती की पूजा करती हैं। साथ ही उपवास रखती हैं। कई क्षेत्रों में भगवान शिव को ईसर जी और देवी पार्वती को गौरा माता के रूप में पूजा जाता है। गौरा जी को गवरजा जी के नाम से भी जाना जाता है। धर्मग्रंथों के अनुसार, श्रद्धाभाव से इस व्रत का पालन करने से अविवाहित कन्याओं को इच्छित वर की प्राप्ति होती है और विवाहित स्त्रियों के पति को दीर्घायु और आरोग्य की प्राप्ति होती है।
राजस्थानी परंपरा के लोकोत्सव अपने में एक विरासत को संजोए हुए हैं। राजस्थान को देव भूमि कहा जाय तो गलत नहीं होगा। यहां सभी सम्प्रदाय फले-फूले हैं। यहां के शासकों ने विश्व कल्याण की भवना से अभिभूत होकर लोक मान्यताओं का सम्मान किया है। इसी कारण यहां सभी देवी-देवताओं के उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाए जाते हैं। गणगौर का उत्सव भी ऐसा ही लोकोत्सव है, जिसकी पृष्ठभूमि पौराणिक है। समय के प्रभाव से उनमें शास्त्राचार के स्थान पर लोकाचार हावी हो गया है, परंतु भाव-भंगिमा में कोई कमी नहीं आई है।
गणगौर भी राजस्थान का ऐसा ही एक प्रमुख लोक पर्व है। लगातार १७ दिनों तक चलने वाला गणगौर का पर्व मूलत: कुंवारी लड़कियों व महिलाओं का त्योहार है। राजस्थान की महिलाएं चाहे दुनिया के किसी भी कोने में हों, गणगौर के पर्व को पूरी उत्साह के साथ मनाती हैं। विवाहिता एवं कुंवारी सभी आयु वर्ग की महिलाएं गणगौर की पूजा करती हैं। होली के दूसरे दिन से सोलह दिनों तक लड़कियां प्रतिदिन प्रात: काल ईसर-गणगौर को पूजती हैं। जिस लड़की की शादी हो जाती है, वो शादी के प्रथम वर्ष अपने पीहर जाकर गणगौर की पूजा करती है। इसी कारण इसे सुहागपर्व भी कहा जाता है।
राजस्थान की राजधानी जयपुर में गणगौर उत्सव दो दिन तक धूमधाम से मनाया जाता है। सरकारी कार्यालयों में आधे दिन का अवकाश रहता है। ईसर और गणगौर की प्रतिमाओं की शोभायात्रा राजमहल से निकलती है। इनको देखने बड़ी संख्या में देशी-विदेशी सैनानी उमड़ते हैं। सभी उत्साह से भाग लेते हैं। इस उत्सव पर एकत्रित भीड़ जिस श्रृद्धा एवं भक्ति के साथ धार्मिक अनुशासन में बंधी गणगौर की जय-जयकार करती हुई भारत की सांस्कृतिक परंपरा का निर्वाह करती हैं, उसे देख कर अन्य धर्मावलंबी भी इस संस्कृति के प्रति श्रृद्धाभाव से ओत-प्रोत हो जाते हैं। ढूंढाड़ की भांति ही मेवाड़, हाड़ौती, शेखावाटी सहित इस मरुधर प्रदेश के विशाल नगरों में ही नहीं, बल्कि गांव-गांव में गणगौर पर्व मनाया जाता है एवं ईसर-गणगौर के गीतों से हर घर गुंजायमान रहता है।
कहा जाता है कि चैत्र शुक्ल तृतीया को राजा हिमाचल की पुत्री गौरी का विवाह शंकर भगवान के साथ हुआ था। उसी की याद में यह त्योहार मनाया जाता है। गणगौर व्रत गौरी तृतीया चैत्र शुक्ल तृतीया तिथि को किया जाता है। इस व्रत का राजस्थान में बड़ा महत्व है। कहते हैं कि इसी व्रत के दिन देवी पार्वती ने अपनी उंगली से रक्त निकालकर महिलाओं को सुहाग बांटा था। इसलिए महिलाएं इस दिन गणगौर की पूजा करती हैं। कामदेव मदन की पत्नी रति ने भगवान शंकर की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न कर लिया तथा उन्हीं के तीसरे नेत्र से भष्म हुए अपने पति को पुन: जीवन देने की प्रार्थना की। रति की प्रार्थना से प्रसन्न हो भगवान शिव ने कामदेव को पुन: जीवित कर दिया तथा विष्णुलोक जाने का वरदान दिया। उसी की स्मृति में प्रतिवर्ष गणगौर का उत्सव मनाया जाता है। गणगौर पर्व पर विवाह के समस्त नेगचार व रस्में की जाती हैं।
होलिका दहन के दूसरे दिन गणगौर पूजने वाली लड़कियां होली दहन की राख लाकर उसके आठ पिंड बनाती हैं एवं आठ पिंड गोबर के बनाती हैं। उन्हें दूब पर रखकर प्रतिदिन पूजा करती हुई दीवार पर एक काजल व एक रोली की टिकी लगाती हैं। शीतलाष्टमी तक इन पिंडों को पूजा जाता है, फिर मिट्टी से ईसर-गणगौर की मूर्तियां बनाकर उन्हें पूजती हैं। लड़कियां प्रात: ब्रह्म मुहूर्त में गणगौर पूजते हुए गीत गाती हैं :-
गौर ये गणगोर माता खोल किवाड़ी, छोरी खड़ी है तन पूजण वाली।
गीत गाने के बाद लड़कियां गणगौर की कहानी सुनती हैं। दोपहर को गणगौर को भोग लगाया जाता है तथा कुएं से लाकर पानी पिलाया जाता है। लड़कियां कुएं से ताजा पानी लेकर गीत गाती हुई आती हैं:-
म्हारी गौर तिसाई ओ राज घाट्यारी मुकुट करो,
बीरमदासजी रो ईसर ओराज, घाटी री मुकुट करो,
म्हारी गौरल न थोड़ो पानी पावो जी राज घाटीरी मुकुट करो।
लड़कियां गीतों में गणगौर के प्यासी होने पर काफी चिंतित लगती हैं एवं गणगौर को जल्दी से पानी पिलाना चाहती हैं। पानी पिलाने के बाद गणगौर को गेहूं-चने से बनी घूघरी का प्रसाद लगाकर सबको बांटा जाता है और लड़कियां गीत गाती हैं:-
म्हारा बाबाजी के मांडी गणगौर, दादसरा जी के मांड्यो रंगरो झूमकड़ो,
ल्यायोजी-ल्यायो ननद बाई का बीर, ल्यायो हजारी ढोला झुमकड़ो।
रात को गणगौर की आरती की जाती है तथा लड़कियां नाचती हुई गाती हैं। गणगौर पूजन के मध्य आने वाले एक रविवार को लड़कियां उपवास करती हैं। प्रतिदिन शाम को क्रमवार हर लड़की के घर गणगौर ले जाई जाती हैं, जहां गणगौर का `बिंदौरा’ निकाला जाता है तथा घर के पुरुष लड़कियों को भेंट देते हैं। लड़कियां खुशी से झूमती हुई गाती हैं:-
ईसरजी तो पेंचो बांध गोराबाई पेच संवार ओ राज म्हे ईसर थारी सालीछां।
गणगौर विसर्जन के पहले दिन गणगौर का सिंजारा किया जाता है। लड़कियां मेहंदी रचाती हैं। नए कपड़े पहनती हैं, घर में पकवान बनाए जाते हैं। सत्रहवें दिन लड़कियां नदी, तालाब, कुएं, बावड़ी में ईसर- गणगौर को विसर्जित कर विदाई देती हुई दु:खी हो गाती हैं :-
गोरल ये तू आवड़ देख बावड़ देख तन बाई रोवा याद कर।
गणगौर की विदाई का बाद कई महीनों तक त्योहार नहीं आते, इसलिए कहा गया है- `तीज-त्योहारा बावड़ी ले डूबी गणगौर’’। अर्थात जो त्योहार तीज (श्रावणमास) से प्रारंभ होते हैं, उन्हें गणगौर ले जाती हैं। ईसर-गणगौर को शिव-पार्वती का रूप मानकर ही बालाएं उनका पूजन करती हैं। गणगौर के बाद बसंत ऋतु की विदाई व ग्रीष्म ऋृतु की शुरुआत होती है। दूर प्रांतों में रहने वाले युवक गणगौर के पर्व पर अपनी नव विवाहित प्रियतमा से मिलने अवश्य आते हैं। जिस गोरी का साजन इस त्योहार पर भी घर नहीं आता, वो सजनी नाराजगी से अपनी सास को उलाहना देती है। `सासू भलरक जायो ये निकल गई गणगौर, मोल्यो मोड़ों आयो रे’।
गणगौर महिलाओं का त्योहार माना जाता है, इसलिए गणगौर पर चढ़ाया हुआ प्रसाद पुरुषों को नहीं दिया जाता है। गणगौर के पूजन में प्रावधान है कि जो सिंदूर माता पार्वती को चढ़ाया जाता है, महिलाएं उसे अपनी मांग में सजाती हैं। शाम को शुभ मुहूर्त में गणगौर को पानी पिलाकर किसी पवित्र सरोवर या कुंड आदि में इनका विसर्जन किया जाता है।
आज आवश्यकता है इस लोकोत्सव को अच्छे वातावरण में मनाएं। हमारी प्राचीन परंपरा को अक्षुण बनाए रखें। इसका दायित्व है उन सभी सांस्कृतिक परंपरा के प्रेमियों पर है, जिनका इससे लगाव है। जो ऐसे पर्वों को सिर्फ पर्यटक व्यवसाय की दृष्टि से न देखकर भारत के सांस्कृतिक विकास की दृष्टि से देखने के हिमायती हैं। अब राजस्थान पर्यटन विभाग की वजह से हर साल मनाए जाने वाले इस गणगौर उत्सव में शामिल होने कई देशी-विदेशी पर्यटक भी पहुंचने लगे हैं।
(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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