विमल मिश्र
मुंबई
रौलेट एक्ट हो या नमक सत्याग्रह। सविनय अवज्ञा आंदोलन, ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन और नौसेना विद्रोह। देश की आजादी की लड़ाई में मुंबई जैसा महत्व कहीं और जगह का नहीं। स्वतंत्रता संग्राम की यादगार के नाम पर लोगों की जानकारी ज्यादातर अगस्त क्रांति मैदान, मणि भवन और चौपाटी तक ही सीमित है, जबकि मुंबई में ऐसे और कई स्थान हैं।
आजाद मैदान
१८५७ के स्वतंत्रता संग्राम की एकमात्र यादगार, जहां चार्ल्स फोर्जेट नामक एक जुनूनी अंग्रेज पुलिस सुपरिटेंडेंट ने दो हिंदुस्थानी सिपाहियों को तोप से बांधकर सरेआम गोलों से उड़वा दिया था।
गिरगांव और जुहू चौपाटी
यह १९१९ में रौलेट ऐक्ट के विरुद्ध हुए आंदोलन और १९३० के नमक सत्याग्रह के लिए चर्चित। लोकमान्य बालगंगाधर तिलक का अंत्येष्टि स्थल, जहां १ अगस्त, १९२० को उनके अंतिम दर्शन के लिए लाखों शोकसंतप्त देशवासियों की भीड़ उमड़ी थी। उनका स्मारक यहां १ अगस्त, १९३३ से है। ‘भारत छोड़ो’ के दौरान १४ अगस्त, १९४२ को उषा मेहता और उनके साथियों ने यहां की सी व्य ू बिल्डिंग में गुप्त रूप से इंडियन नेशनल कांग्रेस का रेडियो की स्थापना की थी, जिसके जरिए आंदोलन के जरूरी निर्देश, अपीलें और सूचनाएं जनता तक पहुंचाई जाती थीं। पास ही गांवदेवी में लैबर्नम रोड पर अजीत विला नामक बंगला से भी इस भूमिगत रेडियो से स्वतंत्रता संग्राम संबंधी प्रसारण किए जाते थे। जुहू चौपाटी वह जगह है, जहां नमक सत्याग्रह के दौरान नमक बनाया गया और कमलादेवी चट्टोपाध्याय सरीखे स्वतंत्रता सेनानियों ने उसे बेचा।
बॉम्बे हॉर्बर
१९४६ के ‘नौसेना विद्रोह’ या ‘बंबई विद्रोह’ का केंद्रस्थल। तीन सौ नाविकों व नागरिकों की आहुति लेने वाला भारतव्यापी विद्रोह-जिसने अंग्रेजों की ब्रिटेन वापसी की राह प्रशस्त की – यहीं से शुरू हुआ था। लॉयन गेट जैसे कई ठिकाने इस विद्रोह के प्रत्यक्षदर्शी हैं। कोलाबा में विद्रोही नौसैनिक की प्रतिमा आज भी इसकी याद दिलाती है।
टाउनहॉल
ब्रिटिश शासन की ऐन नाक तले स्वतंत्रता सेनानियों के मजमे यहीं जुटते रहे और होमरूल लीग ने ब्रितानी साम्राज्यवाद के विरुद्ध शंखनाद किया।
बॉम्बे हाई कोर्ट
लोकमान्य बालगंगाधर तिलक का प्रसिद्ध उद्घोष ‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है’ बंबई हाई कोर्ट में उन पर चले मुकदमों के दौरान उनके एक ऐतिहासिक बयान से चर्चित हुआ और जन-जन की जुबान पर चढ़ गया।
सेठ गोकुलदास तेजपाल ऑडिटोरियम और कांग्रेस हाउस ग्रांट रोड की तेजपाल रोड स्थित सेठ गोकुलदास तेजपाल ऑडिटोरियम, जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की जन्मभूमि है। कुछ ही दूर विट्ठल भाई पटेल मार्ग पर स्थित कांग्रेस हाउस भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का मुख्यालय रह चुका है।
खिलाफत हाउस
भायखला स्थित खिलाफत हाउस महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के साथ मुंबई अली बंधुओं के खिलाफत आंदोलन की भी जन्मभूमि है।
हीरा बाग
सी. पी. टैंक स्थित वह भवन, जिसके हॉल में १३ जनवरी, १९१५ को महात्मा गांधी का दक्षिण अप्रâीका से आगमन पर महात्मा गांधी का भव्य स्वागत हुआ, जिसकी अध्यक्षता लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने की।
शांताराम चॉल
गिरगांव के मध्य में केशवजी नाईक चॉल के पास की वह चॉल, जहां आए दिन यहां लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी और मोहम्मद अली जिन्ना जैसे दिग्गजों की राजनीतिक रैलियां होती रहती थीं। यह एनी बेसेंट की अखिल भारतीय होम रूल लीग से भी जुड़ा है।
सरदार गृह
क्रॉफर्ड मार्केट के पास हेरिटेज ग्रेड थ्री का दो चौक और चार मंजिला वाला यह भवन कभी ऐसा लॉज रहा है, जहां महात्मा गांधी और सरदार पटेल ठहरा करते थे। १ अगस्त, १९२० को लोकमान्य बालगंगाधर तिलक का यहीं निधन हुआ।
स्मॉल कॉज कोर्ट
फोर्ट इलाके में लघुवाद न्यायालय वह स्थान है, जहां दक्षिण अप्रâीका से लौटने के बाद महात्मा गांधी ने ‘सत्य के साथ अपने प्रयोगों’ की शुरुआत की।
कैपिटल सिनेमा
फोर्ट का सिनेमाघर, जो स्वतंत्रता सेनानियों का प्रमुख प्रदर्शन स्थल था।
दीनानाथ नाट्यगृह
विलेपार्ले स्थित यह स्थान मूल रूप से ‘मोर बंगला’ है, जिसे उस काल में दानवीर कहे जाने वाले मुंबई के जाने-माने रईस गोकुलदास तेजपाल ने १९०४ में बनवाया था। यह वह स्थान है, जहां सुभाषचंद्र बोस सहित देश के जाने-माने स्वतंत्रता सेनानी आते थे।
स्वदेशी मार्केट और मूलजी जेठा मार्केट
महात्मा गांधी के स्वदेशी आंदोलन में कालबादेवी की भूमिका की याद दिलाने के लिए ‘स्वदेशी मार्केट’ (पुराना नाम गोकुलदास मोरारजी मार्केट) बदले रूप में ही सही – आज भी मौजूद है। इसका उद्घाटन लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल ने किया था। नागपुर में १९२० में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन हुआ था, जिसमें ब्रिटेन के राजसी परिवार से संबंध रखने वाले ड्यूक ऑफ कनॉट की भारत यात्रा के बहिष्कार का आह्वान किया गया था। कालबादेवी के पास मूलजी जेठा कपड़ा बाजार ने तीन दिन- २१, २३ और २८ फरवरी, १९२१ को बाजार बंद रखकर अपना विरोध जाहिर किया था।
कॉटन एक्सचेंज
कॉटन एक्सचेंज में देशभक्तों का जमावड़ा लगता था। २२ सितंबर, १९४२ को ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन के दौरान तो यहां से कालबादेवी रोड और शेख मेमन स्ट्रीट पर पुलिस दल पर बम भी फेंके गए।
इंडियन मर्चेंट चेंबर
इंडियन मर्चेंट चैंबर ‘स्वदेशी आंदोलन’ से जन्मा। देशभक्ति और राष्ट्रीयता इसका मंत्र रहा। १९ मई, १९३९ को चर्चगेट स्टेशन के बिलकुल पास लालजी नारनजी मेमोरियल बिल्डिंग का-जिसमें चेंबर का मौजूदा परिसर है। उद्घाटन सरदार वल्लभभाई पटेल ने किया। आजादी के बाद जब भी देश को आक्रमण का सामना करना पड़ा उसने राष्ट्रीय सुरक्षा कोष के लिए थैलियां उलीच दीं। यहां पर महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, मौलाना आजाद-कितने ही राष्ट्रीय नेताओं की छाप है।
(लेखक ‘नवभारत टाइम्स’ के पूर्व नगर
संपादक, वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं।)
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