जीवन एक रंग मंच,
हम सभी उसी के किरदार!
हम सब उसकी कठपुतली,
नहीं चलती यहां किसी की!
इंसान बड़ा नहीं होता,
हम हैं उसके किरदार!
वो जेसे नाच नचाता,
जेसे ही हम नच जाते!
पर्दा उठता जेसे रंग मंच का,
जेसे ही जीवन का रंग सज जाता!
कोई मजबूरी में आंसू बहाता,
कोई आने पोने दाम लगाता!
कभी होती मन व्यथा की पीड़ा,
लोग दिखावा हंसना पड़ता!
किसी को दो जून की रोटी,
बा मुश्किल मिलती!
कोई अमन चैन से,
चुपड़ी रोटी खाता!
जीवन एक रंग मंच,
हम सभी उसी के किरदार।
-गोविंद सूचिक अदनासा
जिला-हरदा, मध्य प्रदेश