मुख्यपृष्ठसंपादकीयबांद्रा टर्मिनस पर भगदड़...सपनों तले अंधेरा!

बांद्रा टर्मिनस पर भगदड़…सपनों तले अंधेरा!

बांद्रा रेलवे स्टेशन पर भगदड़ की घटना ने एक बार फिर रेल मंत्रालय की लापरवाही की पोल खोलकर रख दी है। सबसे दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि इतने सारे हादसों के बावजूद रेलवे प्रशासन अपनी कुंभकर्णी नींद से जागने को तैयार नहीं है। रेलमंत्री शेखी बघारते रहते हैं कि वे सुगम और सुरक्षित रेल यात्रा को लेकर काफी चिंतित हैं। दरअसल, अब तो ट्रेन में चढ़ना भी सुरक्षित नहीं रह गया है। बांद्रा रेलवे स्टेशन पर मची भगदड़ ने ये बता दिया है। रविवार सुबह बांद्रा रेलवे टर्मिनस के प्लेटफॉर्म नंबर एक पर गोरखपुर जाने वाली अंत्योदय एक्सप्रेस में चढ़ने के लिए यात्रियों की भारी भीड़ थी। दिवाली और छठ पूजा का मौका होने के कारण जाहिर है कि यात्रियों की संख्या काफी होनी थी। इस ट्रेन के सभी कोच अनारक्षित थे। इसलिए यात्री इस ट्रेन में चढ़ने के लिए आधी रात से ही प्लेटफॉर्म पर आ गए थे। एक जानकारी के मुताबिक प्लेटफॉर्म नंबर एक पर करीब २,५०० यात्री थे। सवाल सिर्फ इतना ही है कि रेलवे प्रशासन को इतनी भारी भीड़ का अंदाजा क्यों नहीं हुआ? चूंकि यह पूरी ट्रेन अनारक्षित थी अत: सामान्य, गरीब यात्रियों की भीड़ उमड़ पड़ेगी, ट्रेन प्लेटफॉर्म पर पहुंचते ही यात्री डिब्बों में चढ़ने के लिए दौड़ पड़ेंगे, दुर्घटना हो सकती है और इससे बचने के लिए पहले से ही कुछ व्यवस्था कर लेनी चाहिए, ऐसा ख्याल रेलवे प्रशासन के दिमाग में क्यों नहीं आया? अब यह मंडली भगदड़ का ठीकरा यात्रियों के माथे पर फोड़ रही है। उनका कहना है कि ट्रेन के प्लेटफॉर्म पर रुकने से पहले यात्रियों ने डिब्बों में चढ़ने की कोशिश की और इस अफरा-तफरी के कारण भगदड़ मच गई। दरअसल सवाल रेलवे द्वारा पूर्व इंतेजामात का है। प्लेटफॉर्मों पर यात्रियों की भीड़ का विनियमन और नियंत्रण रेलवे की प्राथमिक जिम्मेदारी है। इस उद्देश्य के लिए रेलवे के पास रेलवे पुलिस के अलावा अन्य सुरक्षा प्रणालियां भी हैं। जब बांद्रा टर्मिनस पर भगदड़ मची तो क्या ये सभी रेलवे प्रणालियां सुबह-सुबह नींद में थीं? यह सच है कि रेलवे प्रशासन ढोल पीटता है कि उसने आम जनता को अनारक्षित ट्रेनें उपलब्ध कराकर ‘विशेष सेवा’ प्रदान की है, लेकिन इन गरीब यात्रियों की जान की रेलवे को कोई कीमत नहीं है। यात्रियों के लिए ट्रेनों की व्यवस्था करना रेलवे का प्राथमिक कर्तव्य है। लेकिन उस ट्रेन में यात्रा को मुकम्मल तौर पर सुरक्षित बनाना क्या यह रेलवे की प्राथमिक जिम्मेदारी नहीं है? रेलवे ने रविवार को बांद्रा टर्मिनस पर कर्तव्य का गुब्बारा तो फुलाया, लेकिन उसमें जिम्मेदारी की हवा भरी ही नहीं। जिसकी कीमत निर्दोष यात्रियों को चुकानी पड़ी। हर रेल दुर्घटना में अलग-अलग क्या होता है? यात्रा चाहे मेल-एक्सप्रेस से हो या मुंबई में उपनगरीय रेलवे सेवा की, न तो यात्रा सुरक्षित है और न ही यात्रियों की जान। यातनाओं का हलाहल पीते हुए आम यात्रियों को ट्रेन से सफर करना पड़ता है। जब मोदी सरकार सत्ता में आई तो सुखद और सुरक्षित रेल यात्रा, रेलवे के विकास के रंग-बिरंगे गुब्बारे हवा में छोड़े गए। दो ट्रेनों को आमने-सामने टकराने से रोकने के लिए विशेष तंत्र की भी लफ्फाजी की गई, लेकिन इस सरकार के दौरान देश में लगभग २८ बड़ी रेल दुर्घटनाएं हुर्इं। सैकड़ों लोग मारे गए, हजारों घायल हुए। २०२२ में पुणे स्टेशन पर दानापुर एक्सप्रेस में सवार यात्रियों में भगदड़ मच गई थी। पिछले साल सूरत रेलवे स्टेशन पर ताप्ती गंगा एक्सप्रेस के साथ भी ऐसा ही हादसा हुआ था। ये दोनों घटनाएं दिवाली, छठ पूजा की पृष्ठभूमि में हुर्इं। अब रविवार को बांद्रा टर्मिनस पर हुई भगदड़ में सिर्फ दिवाली और छठ पूजा वाले यात्री ही फंसे। अगर रेलवे ने पिछले दो हादसों से सीख ली होती और बांद्रा रेलवे स्टेशन पर पर्याप्त सावधानी बरती होती तो शायद भगदड़ नहीं मचती। मोदी और उनके रेलमंत्री बुलेट ट्रेन, हाई स्पीड ट्रेन, वंदे भारत के नए मॉडल जैसे सपनों को हवा देने में लगे हैं। लेकिन उनके सपनों की दुनिया में देश के आम रेल यात्रियों की जिंदगी की न तो कोई कीमत है और न ही कोई मोल। रविवार को बांद्रा टर्मिनस पर हुई भगदड़ मोदी सरकार के झूठे सपनों के तले का अंधेरा है!

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