पीएम मोदी डिजिटलीकरण पर खूब जोर दे रहे हैं, लेकिन ये डिजिटल सिस्टम ने कुछ लोगों को परेशानी में डाल रखा है। इससे पेंशनधारियों के सामने तमाम समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। इन समस्याओं के बारे में पेंशन परिषद और मजदूर किसान शक्ति संगठन यानी एमकेएसएस ने जानकारी दी है। एमकेएसएस ने संवाददाता सम्मेलन में कहा है कि राजस्थान के पेंशनर्स को ५००-७५० रुपए मंथली पेंशन मिल रही थी, लेकिन पिछले २ सालों से उन्हें कोई पैसा नहीं मिला है। यह ऐसे में और चिंताजनक हो जाता है, जब पेंशन की राशि बढ़ाकर १,००० रुपए कर दी गई हो।
पेंशन परिषद ने प्रभावित पेंशनर्स की टिप्पणियां साझा कीं जिनमें बुजुर्ग, दिव्यांग और विधवाएं शामिल हैं। इन्हें विभिन्न एडमिनिस्ट्रेशन और डिजिटल समस्याओं के कारण पेंशन नहीं मिल पा रही है। इसमें कहा गया है कि उल्लेखित मुद्दों में मृत्यु संबंधी गलत घोषणा, बेमेल डेटा, बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण फेलियर और आधार आईडी हासिल करने में चुनौतियां शामिल हैं। पेंशन परिषद एवं एमकेएसएस के निखिल डे ने पेंशनधारकों के सामने उनकी आयु, विकलांगता या अन्य संवेदनशीलताओं के कारण उनकी बढ़ती हुई उपेक्षा को अंडरलाइन किया और सरकार के दृष्टिकोण को इनसेंसिटिव तथा उपेक्षापूर्ण करार दिया।
डे ने बयान में कहा है कि सरकार ने दावा किया है कि आधार अनिवार्य नहीं होगा, लेकिन उसने इसे प्रभावी रूप से अनिवार्य बना दिया है। इससे सिस्टम फेलियर हो रही हैं, जिससे वे लोग अलग-थलग पड़ रहे हैं, जिन्हें मदद की सबसे ज्यादा जरूरत है। कानूनी विद्वान ऊषा रामनाथन ने बताया कि आधार की बायोमेट्रिक निर्भरता से संबंधित समस्याएं २०१० में यूआईडीएआई आने के बाद से ही स्पष्ट हैं। एमकेएसएस के शंकर सिंह ने कहा है कि राजस्थान में सरकार ने जीवितों को मृत घोषित कर दिया है।