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सम्मान से पेट नहीं भरता साहब!… आशा और स्वास्थ्य सेविकाओं का छलका दर्द

-शिंदे सरकार को नहीं है कोई परवाह

धीरेंद्र उपाध्याय / मुंबई

मनपा के लिए काम करनेवाली स्वास्थ्य सेविकाओं और आशा कार्यकर्ताओं का कल दर्द छलक पड़ा। उन्होंने कहा कि पहले इस काम को करने में हम खुद को गौरवान्वित महसूस करते थे। इस काम में हमें बहुत सम्मान भी मिलता था, लेकिन सम्मान से पेट नहीं भरता है साहब, इसे भरने के लिए पैसों की जरूरत होती है। हालांकि, हमारी इस तकलीफ और दिक्कतों की परवाह शिंदे सरकार और मनपा प्रशासन को बिल्कुल भी नहीं है। तभी आज मनपा प्रशासन का एक अधिकारी भी उनकी सुध लेने के लिए नहीं पहुंचा।
उल्लेखनीय है कि अपनी विभिन्न मांगों को लेकर मुंबई मनपा की आरोग्य सेविकाएं और आशा कार्यकर्ताओं ने एकजुट होकर मंगलवार से हड़ताल का आह्वान किया है। आजाद मैदान में दिनभर तेज धूप में छाते के सहारे ये महिला कर्मचारी आजाद मैदान में इस उम्मीद में बैठी रहीं कि मनपा प्रशासन सुध लेते हुए कोई समाधान निकालेगा, लेकिन उनकी इस उम्मीद पर पानी फिर गया। इससे भारी नाराज हुई स्वास्थ्य सेवक ने कहा कि मनपा के साथ ही शिंदे सरकार को उनकी रंच मात्र भी परवाह नहीं है। उनका कहना है कि घर-घर जाकर मुंबईकरों की स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान करनेवाली स्वास्थ्य सेविकाओं की स्वास्थ्य समस्याओं को हल करने में मनपा अनदेखी कर रही है।
ला दी है भुखमरी की नौबत
विक्रोली हेल्थ पोस्ट में काम करनेवाली आशासेविका पूनम पाखरे का कहना है कि किसी समय मुझे मनपा में काम करके खुशी होती थी, लेकिन अब प्रशासन द्वारा हम पर भुखमरी की नौबत ला दी गई है। सम्मान से पेट नहीं भरता, उसके लिए पैसों की जरूरत पड़ती है। कोई भी अधिकारी अपने वेतन के बिना काम नहीं करेगा तो हम क्यों करें। अब इस तरह के सवाल उठने लगे हैं।
पति के वेतन पर होना पड़ रहा निर्भर
आशासेविका प्रणाली कांबले अपने पति के वेतन पर निर्भर हैं। उन्हें साल में तीन बार ही मानधन मिला है। उनका कहना है कि ३० अलग-अलग तरह के कामकाज करने के बावजूद उन्हें कभी उसका भुगतान नहीं किया गया। पति मेकअप आर्टिस्ट हैं और उन्हें सीजनल काम के हिसाब से सैलरी मिलती है। उन्होंने कहा कि मुझे इस बात का अफसोस है कि आशासेविका के रूप में काम करने के बावजूद भी इसका कोई फायदा नहीं हो रहा है।
मांगें माने जाने तक नहीं हटेंगे पीछे
मनपा की करीब २,००० स्वास्थ्य सेविकाएं और १,००० आशासेविका प्रदर्शन कर रही हैं। कई बार फॉलोअप के बाद भी मांगें नहीं माने जाने से उनमें निराशा की तस्वीर आजाद मैदान पर दिख रही थी। इस बीच आरोग्य सेविकाओं का कहना था कि जब तक मांगें नहीं मानी जाएंगी, तब तक वे नहीं हटेंगे।
घरों में काम करके बमुश्किल बचते हैं चंद रुपए
एक साल से मनपा के चेंबूर कैंप में आशासेवक के तौर पर काम कर रहीं दर्शना पटकारे की दो बेटियां हैं, दोनों बेटियों की पढ़ाई का खर्च लाखों के करीब है। ऐसे में अल्प वेतन से घर का खर्च नहीं चल पाना उनके लिए मुश्किल हो रहा है इसलिए लोगों के घरों में जाकर काम करके हर महीने वे बमुश्किल ३-४ हजार रुपए बचा पाती हैं। उनका कहना है कि आशासेविका के रूप में उन्हें सम्मान तो मिला है, लेकिन इस काम के एवज में उचित मानधन मिलना मुश्किल हो गया है।

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