मुख्यपृष्ठसंपादकीयअहंकार की गाड़ी रोक दी!

अहंकार की गाड़ी रोक दी!

खुद को ईश्वर का अवतार मानने वाले नरेंद्र मोदी का भारतीय जनता ने दारुण पराभव कर दिया है। इसे तानाशाही और भीडतंत्र पर लोकतंत्र की जीत कहा जाना चाहिए। नरेंद्र मोदी का ‘चार सौ पार’ का नारा सूखे पत्तों की तरह उड़ गया है। भारत ने बता दिया कि जनता ही अंत में लोकतंत्र की रक्षक होती है। चार सौ सीटें चुने। नहीं, चार सौ सीट जीतेंगे ही इस अहंकार को आखिरकार भारतीय जनता ने कुचल दिया। वाराणसी में ही जब नरेंद्र मोदी शुरू में पिछड़ गए तो जाहिर हो गया कि भगवान हैं। नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने भारत को जेल बना दिया। लोगों को स्वतंत्र रूप से बोलने और कार्य करने की भी स्वतंत्रता नहीं थी। खिलाफ बोलने वालों को सीधे जेल में डाल दिया गया। दिल्ली, झारखंड के बहुमत वाले मुख्यमंत्रियों को सीधे जेल में डालने वाले मोदी-शाह ने भारतीय जनता पार्टी को ‘वॉशिंग’ मशीन बना दिया। देश की सभी पार्टियों के भ्रष्ट नेताओं को भाजपा में लाकर जनता ने ‘आएगा तो मोदी ही’ का नारा लगाने वालों को जगह दिखा दी। लोकसभा चुनाव का नतीजा जनादेश है। क्या नरेंद्र मोदी इस जनादेश का सम्मान करेंगे? पहली सच्चाई तो यह है कि भारतीय जनता पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है और तथाकथित ‘एनडीए’ का बहुमत का आंकड़ा कगार पर है। यानी मोदी जो ‘चार सौ पार’ के रथ पर सवार होना चाहते थे। टायर पंक्चर हुए रिक्शा में बैठकर रायसीना हिल पर घूमना पड़ेगा। देश की तस्वीर साफ है। उत्तर प्रदेश में जहां मोदी राम मंदिर की राजनीति कर खुद को हिंदुओं के नए शंकराचार्य के रूप में स्थापित करने की कोशिश कर रहे थे, वहां मोदी और भाजपा को सबसे बड़ा झटका लगा है। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश की ८० में से ४० सीटें जीतीं। अमेठी में स्मृति ईरानी आखिरकार राहुल गांधी के सामान्य कार्यकर्ता से हार गईं। रायबरेली में राहुल गांधी खुद जीते। आखिरकार उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र ने मोदी के अहंकार को रोकने का काम किया। मोदी-शाह ने शिवसेना और एनसीपी को तोड़कर गंदी राजनीति की। मराठी लोगों ने यह भ्रम तोड़ दिया कि महाराष्ट्र में शिवसेना-राष्ट्रवादियों में फूट डालकर एकतरफा जीत हासिल की जा सकती है। शक्ति का असीमित उपयोग, धन की ‘धना धन’ बरसात ‘शिंदे’ सेना ने की। अजीत पवार ने कई निर्वाचन क्षेत्रों को धमकाया और आतंकित किया। फडणवीस ने अनाजिपंत की राजनीति की। महाराष्ट्र ने इन सभी साजिशों का पराभव किया। मोदी-शाह ने मिलकर महाराष्ट्र में पचास बैठकें कीं, लेकिन हाथ कुछ नहीं लगा। महाराष्ट्र में भाजपा के कई दिग्गज नेता हार गए। शिवसेना अपने हक के कुछ क्षेत्रों में विफल रही। बेशक शिवसेना ने विषम परिस्थितियों में संघर्ष किया। पार्टी चली गई, चुनाव चिह्न चला गया, आर्थिक ताकत नहीं रही। ऐसे में शिवसेना ने दोहरे अंक में सीटें जीतीं। महाविकास आघाड़ी के रूप में ३० सीटें जीतना धनबल और सरकारी मशीनरी की हार है। केरल, प. बंगाल, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश राज्य भाजपा के साथ नहीं खड़े हुए। तमिलनाडु ने भी यही रास्ता अख्तियार किया। जगनमोहन रेड्डी और उनकी पार्टी आंध्र में हार गई। वहां तेलुगु देशम और चंद्रबाबू ने बाउंस बैक किया। कर्नाटक, बिहार में ‘इंडिया’ गठबंधन को अपेक्षित सफलता नहीं मिली। अगर मिल जाती तो ‘इंडिया’ गठबंधन आसानी से बहुमत का आंकड़ा पार कर सकता था। हालांकि ऐसा नहीं हुआ, मोदी के अहंकार का रथ कीचड़ में फंस गया। जो लोग यह राग अलाप रहे थे कि मोदी और उनके लोग तीसरी बार दिग्विजय प्राप्त करेंगे, वे अब ठंडे पड़ गए हैं। जिन लोगों ने यह शेखी बघारते कहा था कि राहुल गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस को ५० सीटें भी नहीं मिलेंगी, उनकी बोलती बंद हो गई है। मोदी की तथाकथित देवत्व का पर्दाफाश हो गया। दिल्ली में आगे क्या होगा ये अहम सवाल है। क्या मोदी अल्पमत ‘एनडीए’ का नेतृत्व स्वीकार कर तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के लिए आगे बढ़ेंगे? भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी जरूर है, लेकिन उनके एनडीए का बहुमत टेकू पर आधारित है और टेकू भी अस्थिर है। देश की जनता ने अहंकारी मोदी और उनके अमित शाह को अलविदा कह दिया है। उनके अहंकार की गाड़ी रोक दी है। अगर वे सत्ता बरकरार रखने के लिए फिर से भ्रष्ट और तोड़फोड़ का रास्ता अपनाएंगे तो लोगों का आक्रोश सड़कों पर उतर आएगा। देश में लोकतंत्र की बहुत बड़ी, अभूतपूर्व, अलौकिक जीत हुई है। यह देश के जीवन में परम आनंद का क्षण है और ऐसा ही रहेगा।

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