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सरकारी फाइलों में अटका … वर्सोवा-दहिसर और भायंदर लिंक रोड प्रोजेक्ट! …मुंबई की ट्रैफिक समस्या के समाधान का सपना चकनाचूर

सामना संवाददाता / मुंबई
बीएमसी द्वारा वर्सोवा -दहिसर लिंक रोड (वीडीएलआर) और दहिसर-भायंदर लिंक रोड (डीबीएलआर) परियोजनाओं को शुरू किए एक साल बीत चुका है, लेकिन प्रोजेक्ट का काम जमीन पर शुरू होने की बजाय मंजूरी की फाइलों में अटका हुआ है। जिसके कारण मुंबई की ट्रैफिक समस्या के समाधान का सपना चकनाचूर होता हुआ दिखाई दे रहा है।

हाल ही में इस परियोजना को कोस्टल रेग्युलेशन जोन (सीआरजेड) क्लीयरेंस मिली है, लेकिन अब भी कई अहम मंजूरियां लंबित हैं। इनमें पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी), समुद्री बोर्ड और हाई कोर्ट की अनुमति आदि का समावेश है।

मुंबई कोस्टल रोड फेज २ का हिस्सा यह प्रोजेक्ट २० किलोमीटर लंबा होगा, जिसकी अनुमानित लागत १६,६२१ करोड़ रुपए है। यह वर्सोवा से दहिसर तक ट्रैफिक जाम कम करने में मदद करेगा। इसके साथ ही, दहिसर और भायंदर के बीच ५.६ किलोमीटर का एलिवेटेड रोड बनाने की योजना है, जिसकी लागत लगभग ३,३०४ करोड़ रुपए बताई जा रही है। लेकिन इन योजनाओं का लाभ कब मिलेगा, यह सवाल अब भी अनुत्तरित है।

प्रोजेक्ट की शुरुआत के लिए जनवरी २०२३ में वर्क ऑर्डर जारी किया गया था, लेकिन जरूरी अनुमतियों की कमी के कारण अभी तक कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है। `सीआरजेड क्लीयरेंस एक महत्वपूर्ण कदम था, लेकिन बाकी अनुमतियों के बिना प्रोजेक्ट आगे नहीं बढ़ सकता। प्रक्रिया तेज करने की कोशिश की जा रही है।’ ऐसा बीएमसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया।

इस परियोजना के अंतर्गत वीडीएलआर को छह पैकेजों में बांटा गया है। पैकेज सी और डी के तहत माइंडस्पेस से चारकोप (कांदिवली) तक ३.६६ किलोमीटर लंबी जुड़वां सुरंगें बनाई जाएंगी। इस काम की लागत ५,८२१ करोड़ रुपए अनुमानित है। लेकिन इन सुरंगों का निर्माण कब शुरू होगा, यह स्पष्ट नहीं है। पैकेज ए में वर्सोवा से बांगुर नगर (गोरेगांव) तक ४.५ किलोमीटर लंबी सड़क बनाई जानी है, जबकि पैकेज बी में बांगुर नगर से माइंडस्पेस (मालाड) तक १.६६ किलोमीटर का काम शामिल है।

दहिसर से भायंदर तक यातायात को आसान बनाने वाली इस परियोजना को २०२९ तक पूरा करने का लक्ष्य है। लेकिन अब तक केवल फाइलें ही आगे बढ़ रही हैं, जबकि मुंबई की जनता हर दिन ट्रैफिक में घंटों फंसी रहती है। सवाल उठता है कि क्या यह परियोजना भी अन्य सरकारी योजनाओं की तरह कागजों में ही सीमित रह जाएगी?

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