योग

योग का अर्थ है जुड़ना।
जैसे दो और दो का योग चार होता है
वैसे ही आत्मा और परमात्मा का
मिलन योग कहलाता है।
योग जप-तप का नहीं
बल्कि ‘आत्माज्ञान’ का विषय है।
गीता में भगवान कृष्ण ने
इसी योग को ‘राजविद्या’ कहा है।
पातंजलि-सूत्र में कहा गया है-
‘चित्त-व्रृति निरोधस्य’ स: योग:।
अर्थात चित्त का निरोध ही योग है।
योग का सीधा-साधा अर्थ है जोड़।
जो परमात्मा से जुड़ गया वह योगी हो गया।
वहां अनहद नाद बज रहा है,
जिसे किसी भी प्रकार की हद में नहीं बांधा जा सकता।
योग शब्दातीत है। अनुभूति का विषय है।
अगर अपने भीतर देखेंगे तो आपको
रोम-रोम नाचता हुआ दिखाई देगा।
शारीरिक व्यायाम को लोग
योग कहते हैं,जबकि वह योगा कहलाता है।
-आर.डी.अग्रवाल ‘प्रेमी’
मुंबई

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