विमल मिश्र
मुंबई
मुंबई धन्नासेठ कारोबारी सर आदमजी पीरभॉय एक बार हवाखोरी के लिए माथेरान आए तो उन्हें चढ़ाई के लिए घोड़े ही नहीं मिले। पालकी तक भारतीयों की पहुंच थी नहीं। उन्हें बैरंग लौटना पड़ा, पर इस संकल्प के साथ कि अब यहां अपनी ट्रेन पर ही आएंगे। यह जमाना था रेलवे की शैशव अवस्था का। माथेरान स्टीम लाइट ट्रॉमवे कंपनी बनाकर टॉय ट्रेन की शुरुआत उन्होंने तब की-जब भारत में बिजली, जेसीबी जैसी आधुनिक मशीन या संचार तो दूर, ढंग के सर्वे तक की सुविधाएं उपलब्ध नहीं थीं।
मुंबई के मशहूर कारोबारी होते थे सर आदमजी पीरभॉय। अंग्रेजों को जूतों, टेंट और बंदूकगाड़ियों की सप्लाई का काम और सायन में चमड़े का कारखाना था, जो एशिया में सबसे बड़ा कहलाता था। २०वीं सदी की शुरुआत की बात। आदमजी परिवार सहित हवाखोरी के लिए माथेरान आया करते थे। ऊंचाई होने से पहाड़ पर चढ़ाई में दिक्कत होती थी। अंग्रेजों के लिए तो पालकी थी, भारतीयों की पहुंच वहां थी नहीं। वे घोड़े से जाया करते। १९०० में सर आदमजी माथेरान आए तो चढ़ाई के लिए घोड़े ही नहीं मिले। लिहाजा, बैरंग लौटना पड़ा। घर आए तो संकल्प लेकर कि अब रेलवे से ही यहां आया करेंगे।
१९०१ में अंग्रेज सरकार को पत्र लिखकर आदमजी ने माथेरान और नेरल के बीच लैंड सर्वे कराकर लाइट ट्रॉमवे की संभावनाओं का पता लगाने का अनुरोध किया। सरकार की हां मिलने पर फौरन यहां २८० एकड़ जमीन खरीदी और रेल लाइन के निर्माण का काम शुरू करा दिया। इसके बाद वो तभी यहां आए, जब ट्रॉय ट्रेन पूरी तरह बन कर तैयार हो गई। निर्माण के दौरान पूरा पीरभॉय परिवार माथेरान में ही लकड़ी से बने बंगले में जाकर रहा। टॉय ट्रेन जब भी उनके घर के पास से गुजरा करती ड्रॉइवर लगातार तीन हॉर्न देकर उसके संस्थापक को सलामी दिया करता और पूरा परिवार जहां भी होता, मकान के सामने आकर उसे कबूल करता। रेलवे बन जाने के बावजूद जब पर्यटक नहीं बढ़े, तब परिवार ने रातभर रहने के लिए यहां १०५ सराय और होटल बनवाए। इस परिवार के पास विशाल बंगले के अलावा दो रिसॉर्ट आज भी हैं।
मलबार हिल का मशहूर सैफी महल-जिसे आदमजी ने बोहरा धर्मगुरु सैयदना को भेंट कर दिया-उनका निवास हुआ करता था। आदमजी का नाम सैफी ट्रस्ट ने आज तक जीवित रखा है। १९१२ में एक बोहरा मुस्लिम की जब माथेरान आने के बाद मृत्यु हो गई, तब उनके पुत्र अब्दुल हुसैन पीरभॉय ने यहां ३०,००० वर्ग फुट में कब्रगाह बनवाई। अमन लॉज का नाम उनकी मां अमन बाई के नाम पर है। माथेरान की नगरपालिका परिषद भी उन्हीं की देन है। १८ दिसंबर, १९१८ को महज ४७ वर्ष की उम्र में अब्दुल हुसैन का देहांत हो गया। अली अकबर पीरभॉय सर आदमजी के प्रपौत्र हैं। इस परिवार के लोग आज भी माथेरान में रहते हैं। आदमजी को प्रेम से ‘माथेरान रेलवे वाला’ के नाम से पुकारा जाता है।
१६ लाख में बनी रेल लाइन
रेल लाइन का निर्माण १९०४ में शुरू हुआ और मार्च, १९०७ में पूरा हुआ, तब ट्रेनें शुरू हुर्इं। लागत आई १६ लाख रुपए। आज यह सोचकर ही आश्चर्य होता है कि बगैर किसी सर्वे और बिजली, जेसीबी जैसी आधुनिक मशीन या संचार सुविधाओं के बीती सदी के आरंभ में इतना दूभर काम वैâसे पूरा हुआ होगा। उन दिनों का एक रोचक किस्सा है। पहाड़ तोड़ते वक्त बहुतायत में सांप मिलने के कारण मजदूर घबराकर भागने लगे। प्रलोभन स्वरूप उन्हें एक सांप मारने पर चांदी का एक सिक्का देकर रोका गया। इसने योजना की लागत तीन लाख रुपए बढ़ा दी।
रेल लाइन जब बन ही रही थी आदमजी ने जर्मनी के इंजन निर्माता ओरेंस्टाइन ऐंड कोपेल को इंजनों का आर्डर किया और उनकी डिलिवरी लेने जर्मनी भेजा खुद पुत्र अब्दुल हुसैन को, जो मशहूर आर्किटेक्ट और इंजीनियरिंग के महारथी थे। अब्दुल हुसैन ने पिता के काम को आगे बढ़ाया और जर्मनी जाकर साढ़े सात-सात टन वजन के चार इंजन खरीदे-एमएलआर ७-३८, एमएलआर ७-३९, एमएलआर ७-४० और एमएलआर ७-४१ लेकर आए। ये सभी इंजन आज भी मौजूद हैं। सबसे पुराना एमएलआर ७-३८ नेरल (१९८७ से १९९२ के बीच यह छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस के मेन गेट के सामने स्थापित था।) स्टेशन पर है। एमएलआर ७-४१ माथेरान स्टेशन और एमएलआर ७- ३९ नई दिल्ली के राष्ट्रीय रेलवे संग्रहालय में है। एमएलआर ७-४० स्टोनहेंज वर्क्स स्टेशन और बेडफोर्टशायर स्टेशनों के बीच अभी भी कार्यशील है। ये इंजन १९०७ से १९८२ तक चलते रहे।
माथेरान रेल १९५२ तक पीरभॉय परिवार के ताबे में रही, जब तत्कालीन जीआईपी रेलवे (आज की मध्य रेल) ने चार लाख रुपए में खरीदकर खुद में इसका विलय कर लिया। पीरभॉय का पुश्तैनी बंगला भी रेस्ट हाउस बनाने के लिए अधिगृहीत कर लिया गया। मुआवजे और रॉयल्टी की मांग को लेकर यह मामला अदालत की दहलीज पर गया। आज स्थिति यह है कि जिन आदमजी ने यह हिल रेलवे बनाई, नेरल व माथेरान में दो स्मरणपट्टिकाओं को छोड़कर उनके नाम पर कोई बेंच या पेड़ तक नहीं है। स्टेशन और ट्रेन को सर आदमजी का नाम देने की परिवार की मांग पुरानी है। परिवार के वारिसों ने अपने पास सुरक्षित २,३०० से अधिक पुरातत्व सामग्री को मध्य रेल को देने की पेशकश की है, बशर्ते वह पीरभाय की स्मृति में छोटा सा संग्रहालय बनाए। उन्होंने सरकार और रेलवे पर पहाड़ के हेरिटेज को नुकसान पहुंचाने का आरोप भी लगाया है।
विनाश और पुनर्निर्माण
माथेरान हिल रेल के शुरुआती १०० वर्ष के इतिहास में एक भी दुर्घटना का रिकॉर्ड नहीं है, पर बाद में तो दुर्घटनाओं का सिलसिला ही चल पड़ा। इसकी शुरुआत हुई २६ जुलाई, २००५ की बारिश से, जब पूरी तरह बह जाने के बाद लाइन को डेढ़ साल बंद रखना पड़ा। १७ दिसंबर, २०१२ को माथेरान स्टेशन के पास हेरिटेज ट्रेन डिरेल होना-जिसमें कई घोड़े और खच्चर मारे गए। यह हिल रेल पर घटी पहली बड़ी दुर्घटना थी। अगस्त, २०१९ की बारिशों ने तो कहर ढा दिया, जब २१ जगह पटरियों का ही नामोनिशान नहीं बचा, नतीजतन तीन वर्ष के व्यवधान और आधे-अधूरे संचालन के बाद २२ अक्टूबर, २०२२ को जाकर ही सर्विस पूरी तरह शुरू हो पाई। २०१६ में दो बार डिरेल होने के बाद २६ जनवरी, २०१८ को हिल रेल पूरी तरह आरंभ ही हुई थी कि साल भर बाद ही कोरोना काल में फिर ठप पड़ गई। गनीमत थी कि जब भी ऐसी बाधा आई, नेरल से अमन लॉज तक शेयर टैक्सियां और निजी वाहन चलते रहे, टॉय ट्रेन की यात्रा जरूर अमन लॉज से माथेरान के बीच ही सीमित रह गई। अकेले २०२३ में ट्रेन डिरेल होने की कई घटनाएं हुर्इं। कई विशेषज्ञों ने इन दुर्घटनाओं के लिए खराब रखरखाव के साथ रेल कार की ‘गलत’ डिजाइन को दोषी करार दिया है। सर आदमजी पीरभॉय के प्रपौत्र तो इसे मध्य रेल की साजिश करार देते हैं।
बहरहाल, इन दुर्घटनाओं के बाद मध्य रेल की आंखें खुलीं। लाइन का पुनर्निर्माण किए जाने के बाद हिल रेल अब नए रूप में है। मौजूदा पुलों को मजबूत करने के अलावा २० नए पुलों का निर्माण किया गया है। लकड़ी, लोहे और इस्पात के स्लीपरों की जगह अब इसमें कंक्रीट स्लीपर हैं। सेफ्टी रेलिंग्स लगी हैं। ब्रेक सिस्टम को अधिक सुरक्षित बनाया गया है। टक्कर रोधी अवरोधक लगाए गए हैं। पूरे रूट को कालका शिमला रेल की तरह ही अपग्रेड किया गया है। संचार सुविधाएं भी उन्नत हुई हैं। इन उपायों ने ट्रेन की गति बढ़ा दी है। पहले इस यात्रा में ढाई घंटे लगते थे, अब दो घंटे और अब इसे और घटाकर डेढ़ से पौने दो घंटे करने का प्रयास है। एलीवेटेड डेक, वॉकवे, स्काईवॉक और फुटओवर ब्रिज सहित नेरल स्टेशन का ६० करोड़ रुपए से मेकओवर की योजना भी अग्रिम चरण में है। विशेष बात यह कि यह सब कुछ दूरी को छोड़कर इस रेलवे का लेआउट वैसा का वैसा ही रखकर किया गया है। (जारी)
(लेखक ‘नवभारत टाइम्स’ के पूर्व नगर
संपादक, वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं।)