विमल मिश्र
पास गुजरते दो फ्लाई ओवरों ने इस प्रतिमा की शोभा बिगाड़ दी थी। उसके गिर्द खड़े आठ लैंपपोस्ट चुरा लिए गए थे। पानी का प्याऊ उत्पातियों का शिकार बन चुका था। आधार के निकट चार खूबसूरत जलपरियों के शिल्प हथौड़ों की मार से बदसूरत हो गए थे। दुस्साहस यह कि प्रतिमा के नीचे मटरगश्ती करते फुटपाथी बाशिंदे, चोर, भिखारी व ड्रग ऐडिक्ट्स ढांचे का निचला हिस्सा तक काट कर ले गए थे। कालवश और रखरखाव के अभाव में इसकी हालत दिन-ब-दिन खराब होती गई।
भायखला के ‘खड़ा पारसी’ का लुप्त वैभव उसे लौटाया देश के जाने-माने कंजर्वेशन आर्किटेक्ट और अर्बन डिजाइन रिसर्च इंस्टिट्यूट के एग्जेक्युटिव डॉयरेक्टर पंकज जोशी ने। पुराने फोटोग्राफ्स से प्रतिमा के मूल स्वरूप का पता लगाया, दशकों से जमी धूल और गर्द की परतें साफ करवार्इं और क्षतिग्रस्त और गायब हुए ४०० के करीब कंपोनेंट को बहाल कर दिया। प्रतिमा के लिए काला बेसाल्ट बंगलुरु से लाया गया और कुशल कारीगर राजस्थान के मकराना से। प्याऊ के निकट लोगों के सुस्ताने के लिए जगह बनाई गई। प्याऊ और चार फुट ऊंचे शीशे के लैंपों को चालू करने के लिए प्रतिमा के नीचे पानी और गैस की नई पाइपलाइनें बिछाई गर्इं। जून, २०१४ में मुंबई महनगरपालिका ने करीब दो करोड़ रुपए खर्च करके रिस्टोरेशन का काम पूरा किया। यह अपनी पुरानी शोभा में लौट आया।
एक जमाना था नागपाड़ा जंक्शन ‘खड़ा पारसी’ के नाम से जाना जाता था। जब यहां भीड़ बढ़ने लगी तो इस प्रतिमा को रोलेक्स होटल के पास एक कोने में जगह दे दी गई। ७० के दशक में भीड़ जब और बढ़ी और प्रतिमा की वजह से यातायात में बाधा उत्पन्न होने लगी तो इसका स्थान एक बार और बदला और यह भायखला फ्लाइओवर ब्रिज जंक्शन की शोभा बढ़ाने लगी। तब से यह यहीं है। ‘खड़ा पारसी’ जंक्शन फिर से नागपाड़ा जंक्शन कहलाने लगा है।
लंदन से आया ढांचा
‘खड़ा पारसी’, मतलब, ‘सच्चा पारसी’। धातु के पिलर पर खड़ी भायखला फ्लाई ओवर ब्रिज जंक्शन पर पारसी धर्मग्रंथ जेंदा अवस्ता लिए हिंदू शैली के परिधान में सज्ज ४० फुट ऊंची यह प्रतिमा सेठ करसेटजी मानोकजी (१७६३-१८४५) की है। समूचे विश्व में यह अपनी तरह की दूसरी प्रतिमा है (ऐसी पहली प्रतिमा सिरेस, चिली में है)।
‘खड़ा पारसी’ का मतलब इस प्रतिमा की मुद्रा से नहीं है। ‘खड़ा’ का मतलब ‘सच्चा’ से है। मतलब, ‘सच्चा पारसी’। धातु के पिलर पर खड़ी यह प्रतिमा सेठ करसेटजी मानोकजी (१७६३-१८४५) की है। १८६० के दशक में निर्मित यह प्रतिमा की स्थापना उनके सबसे छोटे बेटे सेठ मानोकजी करसेटजी (अन्य नाम मानोकजी खुर्शीदजी श्राफ) ने कराई थी। मानोकजी मुंबई के लघुवाद न्यायालय में न्यायाधीश थे। शिक्षा, खासकर महिला शिक्षा के क्षेत्र में उनका महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है। अलेक्जेंड्रा गर्ल्स इंग्लिश इंस्टिट्यूशन के संस्थापक, जिसे मुंबई के पहले बालिका विद्यालयों में से गिना जाता है। यह स्कूल उन्होंने १८५९ में अपने घर- घर ‘विला बायकूला’ से शुरू किया और और अंग्रेज गवर्नेंस रख इसमें पढ़ाने व प्रबंध की जिम्मेदारी अपनी बेटियों को दीं।
मानोकजी ने विदेश की एक प्रदर्शनी में चिली सरकार द्वारा मंगाई कांसे की एक प्रतिमा देखी तो उसी की तर्ज पर इसे बनवाने का फैसला कर लिया। लंदन के मूर्तिकार जॉन बेल द्वारा निर्मित प्रतिमा का कास्ट ऑयरन से बना ४० फुट ऊंचा पूरा का पूरा ढांचा जहाजों से लंदन से मुंबई लाकर यहीं असेंबल कर नागपाड़ा में एक ऊंचे स्तंभ पर स्थापित कर दिया गया। उस जमाने में इसकी लागत २० हजार रुपए आई थी। कुछ वर्षों बाद परिवार ने इस शर्त पर इसे मनपा को सौंप दिया कि इसकी अच्छी देखभाल की जाएगी, एक ऐसा वादा जिसकी कद्र नहीं हुई।
सेठ करसेटजी मानोकजी
सेठ करसेटजी मानोकजी की गणना पारसी समुदाय के प्रमुख समाज सुधारकों में होती है। इसके लिए कई बार उन्हें पारसी पंचायत से भी पंगा लेना पड़ा।
मोनोकजी करसेटजी (१८०८- १८८७) ने तीन बार ब्रिटेन की यात्रा की, जहां १८६५ में शेफील्ड में हुई सोशल साइंस कांग्रेस में भारत में नारी शिक्षा पर उनके व्याख्यान की बहुत सराहना हुई।
उनकी योग्यता को देखते हुए मुंबई विश्वविद्यालय ने उन्हें पैâकल्टी में स्थान दिया और रॉयल एशियाटिक सोसायटी ने अपनी सदस्यता और रॉयल जियोग्राफिकल सोसायटी ने फेलोशिप प्रदान की। उनके दूसरे पुत्र करसेटजी मानोकजी को १८६४ में आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के अंडर ग्रेजुएट कोर्स में भर्ती होनेवाला पहला भारतीय छात्र होने का गौरव हासिल है। अन्य पुत्र जहांगीर मानोकजी करसेटजी ने भी कैंब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज से १८६७ में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की।
(लेखक ‘नवभारत टाइम्स’ के पूर्व नगर संपादक, वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं।)