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संडे स्तंभ :  नाम गुम जाएगा

 

‘हाजी अली जाने के लिए महालक्ष्मी स्टेशन उतरना पड़ता है और मुंबादेवी जाने के लिए मस्जिद बंदर स्टेशन। लोअर परेल ‘अपर वर्ली’ कहलाता है और वडाला न्यू कफ परेड। ‘अंडारू’, ‘बेरेवला’ और ‘पंजो’! आपने पहले सुने हैं ये नाम? मुंबई में नाम बदलने का चक्कर पुराना है, जहां मुख्य रेल टर्मिनस, हवाई अड्डे और म्यूजियम के ही नहीं, खुद शहर के ही नाम बदल गए हैं।

विमल मिश्र

मुंबई

‘हाजी अली जाने के लिए महालक्ष्मी स्टेशन उतरना पड़ता है और मुंबादेवी जाने के लिए मस्जिद बंदर स्टेशन। अपनी मुंबई की बात ही निराली है।’ ‘चर्चगेट, मस्जिद, गुरू तेगबहादुर नगर, महालक्ष्मी, अंबरनाथ, मुंब्रा और उनका साथ देने को पिछले कुछ सालों से ‘प्रभादेवी’ और ‘राम मंदिर’ मौजूद हैं और ‘मुंबा देवी’ और ‘तीर्थंकर पार्श्वनाथ’ स्टेशन आने की तैयारी में हैं’, रेल इतिहासकार राजेंद्र आकलेकर ने विनोद किया, मुंबई के स्टेशन अब पूरी तरह से धर्म निरपेक्ष हैं।’ मुंबई के कुछ स्टेशन तो बने ही हैं अपने तीर्थस्थल होने के कारण। भूलेश्वर, वालकेश्वर, विले पार्ले, परेल और जोगेश्वरी के नामकरण की वजह इनसे मिलते-जुलते नामों वाले मंदिरों के कारण ही मानी जाती है।
मुंबई में अब एक साथ आठ रेलवे स्टेशन के नाम बदलने की तैयारी हो गई है। महाराष्ट्र सरकार ने मुंबई सेंट्रल समेत महानगर के आठ रेलवे स्टेशनों के नाम बदलने के प्रस्ताव को एक साथ हरी झंडी दे दी है। केंद्र सरकार की अनुमति मिली तो ब्रिटिश काल में रखे गए अंग्रेजी नाम अब नजर नहीं आएंगे। मुंबई सेंट्रल का नया नाम जाने-माने शिक्षाविद् नाना जगन्नाथ शंकरसेठ के नाम पर रखा जाएगा, जबकि करी रोड स्टेशन का नया नाम अब लालबाग स्टेशन होगा। सैंडहर्स्ट रोड डोंगरी स्टेशन, मरीन लाइंस मुंबादेवी स्टेशन, किंग्ज सर्कल तीर्थंकर पार्श्वनाथ स्टेशन, चर्नी रोड गिरगांव स्टेशन, कॉटन ग्रीन काला चौकी स्टेशन और डॉकयार्ड मझगांव स्टेशन हो जाएंगे। दादर को ‘चैत्यभूमि’, माटुंगा को ‘मरुबाई’, बांद्रा टर्मिनस को ‘सूफी संत मखदूम माहिमी’, कोपरखैरणे को ‘धीरुभाई अंबानी’ की मांगें पेंडिंग हैं। ओशिवरा स्टेशन का नाम ‘राम मंदिर’ और एलफिंस्टन रोड को ‘प्रभादेवी’ का नाम दिए जाने के बाद अब ग्रांट रोड को ‘गांवदेवी’ (या ‘अगस्त क्रांति’), वडाला को श्रीपाद अमृत डांगे और दादर (पूर्व) के मोनो रेल स्टेशन को विठ्ठल मंदिर का नाम देने की मांग भी उठने लगी है, इन जगहों पर मौजूद मशहूर मंदिरों के कारण। इसी तरह की मांगें मोनो और निर्माणाधीन मेट्रो स्टेशनों के लिए भी की जा रही हैं। बीते वर्षों में मुंबई की बहुत सी सड़कों और स्थानों के नाम भी बदल गए हैं।
रीयल इस्टेट का नया धंधा
मंदी झेल रहे रीयल इस्टेट का नया धंधा है नामकरण। लिहाजा, आपने अखबारों में वे विज्ञापन जरूर देखे होंगे, जिनमें लोअर परेल के फ्लैट को अपर वर्ली का बताकर बेचा जा रहा है। वडाला के फ्लैट को न्यू कफ परेड और जीटीबी नगर के फ्लैट को सायन में बताकर। खार में रहने वाले खुद की रिहाइश बांद्रा की बताते हैं। बांद्रा पूर्व की एमआईजी कॉलोनी में रहने वाले खुद को बीकेसी अनेक्सी या बीकेसी एक्सटेंशन का वासी बताकर गर्व करते हैं, जबकि अंधेरी का फोर बंगलो अपर जुहू के नाम से मशहूर हो रहा है। मजे की बात यह है कि महानगरपालिका के रिकॉर्ड में आपको इन नामों का कहीं उल्लेख ही नहीं मिलेगा।
अजब – गजब नाम
‘मुंबई’ भले हो गया हो, पर बहुत से लोगों की जुबान पर ‘बॉम्बे’ नाम ही चढ़ा रह गया है, जबकि इस ‘बॉम्बे’ का ‘बम’ से कुछ लेना-देना नहीं है। न तो चर्च है, न ही कोई गेट। फिर भी है ‘चर्चगेट’।
‘अंधेरी’ में कोई अंधेरा नहीं। ‘बांद्रा’ दूसरी बातों के लिए मशहूर है बंदरों को छोड़कर। न तो कुछ लाल है, न ही कोई बाग है। ‘लालबाग’ फिर भी है। पश्चिम रेल के ‘लोअर परेल’ में ‘लोअर’ जैसा कुछ नहीं। इसका लेवल वही है, जो मध्य रेल के ‘परेल’ का। ‘तीन बत्ती’ तीन सड़कों का संगम है, तीन बत्तियों का नहीं। लोखंडवाला कॉम्प्लेक्स में लोहे और इस्पात का कारोबार नहीं होता।
नाम जो बदल गए
‘अंडारू’, ‘बेरेवला’ और ‘पंजो’! सुने हैं ये नाम? ये नाम थे पश्चिमी रेलवे के उपनगरीय रेल स्टेशनों के। ‘कोला-भात’ से ‘नाम पाने वाले ‘कोलाबा’ जैसे स्टेशन आज या तो लुप्त हैं या उनके नाम बदल गए हैं। मसलन, ‘पहाड़ी’ जो गोरेगांव और प्राचीनकाल का बंदरगाह सोपारा (नीला) जो नालासोपारा का पुराना नाम रहा है। ‘भांडोप’ भांडुप, ‘अंदारी’ अंधेरी, ‘तान्ना’ ठाणे, ‘बेरिव्ला’ या ‘बोरिव्ली’ बोरिवली, ‘दाईसर’ दहिसर, ‘बसीन’ वसई रोड, ‘विरौर’ विरार और राजा भीमदेव की राजधानी रहा ‘महिमावती’ ‘माइजिम’ व ‘मेजांबू’ होते हुए माहिम हो गया है, जबकि घारापुरी ‘एलिफेंटा’ बन गया है। कुछ स्टेशनों के अंग्रेजी नाम तो चक्कर में डालने वाले हैं, क्योंकि उनकी स्पेलिंग और उच्चारण मेल नहीं खाते-जैसे शिवड़ी और भायखला। ‘काला घोड़ा’, ‘धोबी तालाब’ जैसे इलाके तो घोड़ा और तालाब लुप्त होने के बाद भी उसी नाम से पुकारे जाते हैं।
‘बॉम्ब बहिया’ से ‘मुंबई’
‘नामकरण स्थानीय इतिहास के अनुकूल हो और बेतुका न हो इसमें कोई हर्ज नहीं है’, कोलाबा से सिटीजन कार्पोरेटर मिलिंद नार्वेकर बताते हैं। जिस शहर और उसके मुख्य रेल टर्मिनस, हवाई अड्डे और म्यू‌जियम के खुद के नाम बदल गए हों (बंबई से ‘मुंबई’, विक्टोरिया टर्मिनस से ‘छत्रपति शिवाजी महाराज रेल टर्मिनस’, सहार हवाई अड्डा से ‘छत्रपति शिवाजी महाराज अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा’ और ‘प्रिंस ऑफ वेल्स म्यूजियम’ से ‘छत्रपति शिवाजी महाराज वस्तु संग्रहालय’ उसके लिए ये नामकरण अस्वाभाविक नहीं कहलाएंगे। मुंबई का इतिहास ऐसी मिसालों से भरपूर है।
इतिहासकार डॉ. एम. डी. डेविड बताते हैं, ‘मुंबई ने अपना नाम अपने मूलवासी कोली मछुआरों की अधिष्ठात्री देवी मुंबादेवी से लिया है। १५२६ में पुर्तगालियों ने अपने कब्जे के बाद पुर्तगाली इसे ‘बॉम्बेइम’ के नाम से पुकारने लगे जो पुर्तगाली ‘बॉम्ब बहिया’ का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ होता है ‘अच्छे दिन’।’ १७वीं सदी में ब्रिटिशकाल में यही नाम बदलकर ‘बॉम्बे’ हो गया। १९९५-९६ में तत्कालीन शिवसेना-बीजेपी सरकार द्वारा ‘मुंबई’ किए जाने के बाद ‘बंबई’ नाम का इस्तेमाल भले बंद हो गया, पर सच्चाई यही है कि खुद ब्रिटिश सरकार ने आम भाषा के लिहाज से ‘मुंबई’ को अपनाया था। एक ऐसा निर्णय जिसे परवर्ती मुगल शासन ने भी जारी रखा। मुंबई विश्वविद्यालय से मुगलकालीन सिक्कों पर पीएच.डी. करने वाले महेश कॉलरा बताते हैं, ‘बॉम्बे’ और ‘मुंबई’ का सह-अस्तित्व शुरू से ही है।’ प्रमाण में वे इंग्लैंड के ब्रिटिश म्यूजियम में आज भी आप मुंबई की टकसाल में ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा १६६३ में ढाले उन सिक्कों की मिसाल देते हैं जिनपर अंग्रेजी ‘बॉम्ब’, ‘बॉम्बे’, ‘बॉम्बेइम’ के साथ उस जमाने में प्रचलित भाषा फारसी में ‘मुंबई’ भी उत्कीर्ण है। (जारी)
(लेखक ‘नवभारत टाइम्स’ के पूर्व नगर
संपादक, वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं।)

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