उदय पंकज, कल्याण
मनुष्य का स्वभाव ही कुछ ऐसा है जिसमें दया, नम्रता है तो क्रोध और नफरत भी है। जीवन में ऐसे भी कई मौके आते हैं जहां दया और उचित मानवीय व्यवहार हमें करना चाहिए, लेकिन वहां हम बिना सोचे-समझे क्रोध करके खुद के लिए ही चिंता, कठिनाई और मुश्किलें बना लेते हैं।
हम एक सामाजिक व्यवस्था के बीच रहते हैं और इसी व्यवस्था में हजारों, लाखों करोड़ लोग रहते हैं, जिनका सामना एक-दूसरे से किसी न किसी कार्य के कारण होता ही है। हर किसी के विचार और सोच अधिकतर परिस्थितियों और अवसर के अनुसार अलग-अलग हो सकते हैं। ऐसा बहुत ही कम होता है कि हमारे विचार सभी के साथ कॉमन हों। जब ऐसा नहीं होता तब अलग-अलग विचारधारा के लोग एक-दूसरे को नफरत, द्वेष की नजरों से आंकते हैं, क्योंकि हमने हमारी भावनाओं और सोच को ऐसा ही बनाया है।
आज हमें गली, मोहल्ले, बाजार में रोज ही कुछ ऐसा देखने को मिल जाता है, जहां एक छोटी-सी बात पर इंसान, इंसान से लड़ जाता है। कई ऐसी घटनाएं मामूली सी बात पर एक बड़ा रूप ले लेती हैं। कभी-कभी तो छोटी बात पर भी इतना बड़ा हादसा हो जाता है कि बात जनहानि तक पहुंच जाती है।
आज की भाग-दौड़ भरी जिंदगी और जीवन में बढ़ते तनावों के कारण हम संयम नहीं रख पाते। हम खुद को संयमित नहीं रख पाते, इसके फलस्वरूप कई मुश्किलों का सामना हमें और हमारे परिजनों को करना पड़ता है।
यदि हम खुद को संयमित नहीं कर पाएंगे तो हर रोज हम नए-नए झंझटों के बीच तनावग्रस्त होकर खुद को एक भयानक अवसाद में पाएंगे। वैसे भी क्रोध और नफरत इंसान के जीवन को बुरी तरह प्रभावित करता है। किसी का भी क्रोध से भला नहीं होता। जितना लाभ नम्रता, प्यार और दया से मिल जाता है, वो नफरत से किसी को नहीं मिलता।
संयम तो मानव का एक गुण है, जो मनुष्य को नियंत्रित करने और अपनी इच्छा को संतुलित करने का संकेत देता है। हम संयम को आत्मनियंत्रण और अपने विवेक के माध्यम से पा सकते हैं।
जीवन में हमको संकल्प लेना चाहिए कि हम सामाजिक स्थितियों को संतुलित रखकर समाज का एक अंग बनकर अपना जीवन संजीवनी जैसा रखें। हमारे क्रोध, अहंकार, द्वेष और नफरत को नियंत्रित करने में संयम सदा ही हमारी मदद करता है।
सोशल मीडिया से आज हमें खुद को नियंत्रित करने का समय है। सोशल मीडिया में परोसे जानेवाले झूठ और दिखावटी बातों से हमारा मानसिक स्वास्थ्य और ध्यान भटक जाता है। हम खुद की बुद्धि और विवेकशील तर्क से उन बातों को नहीं नापते।
जीवन में कभी जाने-अनजाने कोई अधर्म या असामाजिक कार्य हो जाए तो अपने संयम को भविष्य के लिए सदा सचेत रखना जीवन के आनंद और खुशी के लिए उचित ही है। हम खुद के मालिक हैं यदि हम खुद ही संकल्प लेकर खुद को संयमित कर लेते हैं, तब हम दुर्लभ स्वामित्व को प्राप्त कर लेते हैं।
महान विभूतियों का सदा मानव के लिए उपदेश रहा है कि ‘एक अच्छे इंसान होने के लिए क्रोध का त्याग ही जीवन के लिए सदा उचित ही रहता है।’ महानता और उदारता दोनों ही सिक्के के दो पहलू हैं। देने का अर्थ हैं प्यार, स्नेह, क्षमा, उदारता, दया और अपनापन। हम जो भी देंगे वह अप्रत्याशित रूप से हमारे जीवन को समृद्ध करेगा। हम जीवन में सफल हो सकेंगे। खुशी, आनंद, उल्लास और वैभव के साथ अपना जीवन जी पाएंगे।
जीवन को अधिक से अधिक आनंददायी बनाए रखने के लिए हमें अपने जीवन को संयमित बनाए रखना होगा। अपने आत्मविश्वास के साथ अपने मन को नियंत्रित करके, समय और परिस्थिति से उत्पन्न होनेवाले फल अर्थात रिजल्ट पर फोकस करके अपने कार्य को करें। संयम है तो खुशी है।