सामना संवाददाता / मुंबई
हिंदुस्थान में एंटीबायोटिक प्रतिरोधी यानी सुपरबग बढ़ रहा है, जिस कारण कई परिवारों को इलाज कराने के लिए भारी भरकम राशि खर्च करनी पड़ रही है। इस वजह से लोगों को न केवल कर्ज लेने पड़ रहे हैं, वे उन्हें अपनी संपत्तियां बेचने के लिए भी मजबूर हो रहे हैं। दूसरी तरफ एंटीबायोटिक- प्रतिरोधी संक्रमणों के लिए निजी अस्पतालों में इलाज काफी महंगा है। आईसीएमआर ने अपने अध्ययन में इस बात पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि लोगों में एंटीबायोटिक दवाओं का दुरुपयोग इस खतरनाक प्रवृत्ति में योगदान दे रहा है। उल्लेखनीय है कि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, देश में एंटीबायोटिक प्रतिरोध इस हद तक बढ़ गया है कि लोगों को इलाज की प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लागतों का भुगतान करने के लिए पैसे उधार लेने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। अंतरराष्ट्रीय चिकित्सा पत्रिका ‘बीएमजे ओपन’ में प्रकाशित इस अध्ययन में पाया गया कि कुछ एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी जीवाणु संक्रमणों के निजी अस्पतालों के उपचार में आवश्यक राशि का १०.६ फीसदी खर्च हो सकता है। इसलिए बढ़ रही उपचार की लागत यदि रोग सामान्य एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोधी होते हैं, तो डॉक्टर नई दवाओं का उपयोग करते हैं जो महंगी होती हैं। जिन रोगियों के अस्पताल में भर्ती होने के साथ-साथ उपचार की अप्रत्यक्ष लागत की गणना की गई, इनमें से ४६.५ फीसदी ने पैसे उधार लिए।
३२८२ डॉलर है सूक्ष्मजीवों के प्रबंधन की लागत
इसके साथ ही अन्य ३३.१ फीसदी ने अपने बचत को इलाज पर खर्च कर दिवालिया होने तक पहुंच गए हैं। आठ अस्पतालों के डेटा का उपयोग करके तैयार की गई रिपोर्ट में पाया गया कि निजी अस्पतालों में प्रतिरोधी सूक्ष्मजीवों के प्रबंधन की लागत ३,३८२ डॉलर है, जबकि कुछ शहरों में चैरिटी ट्रस्ट द्वारा संचालित अस्पतालों में यह लागत २१५ डॉलर है।