सुप्रीम कोर्ट का यह कहना कि कोई भी व्यक्ति, चाहे वह किसी भी पद पर हो, मर्यादा की रेखा नहीं लांघ सकता। इसी ओर संकेत करता है कि सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर, कॉमेडियंस और नेताओं को अपनी भाषा पर नियंत्रण रखना होगा। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी बिल्कुल सही दिशा में है, लेकिन अफसोस की बात यह है कि आज के दौर में मर्यादा और शालीनता जैसे शब्द सिर्फ किताबों में ही अच्छे लगते हैं। मनोरंजन के नाम पर फूहड़ता परोसी जा रही है और सोशल मीडिया ने तो इसे एक नया ही आयाम दे दिया है। आजकल कुछ लोग मानो यह साबित करने में लगे हैं कि सभ्यता का स्तर जितना गिराओगे, उतनी ही ज्यादा तालियां बजेंगी। जिसे देखो वही जुबान को बेलगाम घोड़ा बना कर दौड़ा रहा है। मजाक के नाम पर दूसरों की भावनाओं से खेलना और व्यंग्य के नाम पर अभद्रता की हर सीमा लांघ जाना, यह नया ट्रेंड बन गया है। ऐसा लगता है कि कुछ लोगों ने यह ठान लिया है कि सभ्यता और मर्यादा सिर्फ किताबों के पन्नों पर शोभा देने के लिए हैं, असल जिंदगी में इनका कोई मतलब नहीं बचा। कभी राजनीति को मर्यादा और आदर्शों का प्रतीक माना जाता था, लेकिन अब यह कटाक्ष और व्यक्तिगत हमलों का अखाड़ा बन गई है। कोई भी शालीनता की परवाह नहीं करता। पहले चुनावी सभाओं में मुद्दों पर चर्चा होती थी, अब गालियों और अपशब्दों की गूंज सुनाई देती है।
मनोरंजन और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर यदि कोई व्यक्ति अमर्यादित या अश्लील भाषा का प्रयोग करता है, तो इसका व्यापक सामाजिक प्रभाव पड़ता है। खासकर जब वह व्यक्ति लाखों युवाओं का आदर्श हो। सोशल मीडिया के दौर में हर शब्द दूर तक गूंजता है और लोगों की सोच को प्रभावित करता है। रणबीर अल्लाहबादिया के विवाहित बयान पर हुई आलोचना यह दर्शाती है कि समाज अब सार्वजनिक हस्तियों की जिम्मेदारी को लेकर अधिक जागरूक हो चुका है। आज के डिजिटल युग में सोशल मीडिया और इंटरनेट प्लेटफॉर्म ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बढ़ावा दिया है, लेकिन इसी स्वतंत्रता का दुरुपयोग भी देखने को मिल रहा है। हाल ही में यूट्यूबर रणदीप अल्लाहबादिया द्वारा किए गए भद्दे कमेंट्स ने यह स्पष्ट कर दिया है कि लोकप्रियता पाने के लिए लोग किसी भी हद तक जा सकते हैं। यह सोच चिंताजनक है कि “नाम नहीं तो बदनाम ही सही” की मानसिकता को अपनाकर लोग समाज में दूषित मानसिकता फैला रहे हैं। आज अश्लीलता को समाज का अभिन्न अंग मानकर प्रस्तुत किया जा रहा है, जिससे नैतिकता और चारित्रिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है। फॉलोअर्स और लाइक्स की होड़ में युवा वर्ग अपनी नैतिक सीमाएं पार कर रहा है। ऐसी घटनाएं यह दर्शाती हैं कि समाज में संयम की कमी होती जा रही है।
लोगों में लोकप्रियता प्राप्त करने की होड़ इतनी बढ़ गई है कि वे अपने शब्दों और कार्यों के परिणामों पर विचार नहीं करते। रणबीर के मामले में सुप्रीम कोर्ट की हालिया टिप्पणी कि किसी को भी मनोरंजन के नाम पर अश्लीलता और मर्यादा की रेखा तोड़ने का अधिकार नहीं है, से यह स्पष्ट होता है कि सार्वजनिक मंचों पर भाषा की मर्यादा बनाए रखना कितना आवश्यक है। यदि हम आने वाली पीढ़ी के चरित्र निर्माण को लेकर चिंतित हैं, तो यह जरूरी है कि मनोरंजन और सार्वजनिक संवाद की सीमाएं स्पष्ट रहें, वरना भाषा और नैतिकता का गिरता स्तर समाज में नकारात्मक प्रवृत्तियों को जन्म देगा। हमारे शब्दों का चयन और उपयोग हमारे व्यक्तित्व को प्रकट करता है और हमारे सामाजिक संबंधों को प्रभावित करता है। यदि हम अश्लील या गाली जैसे शब्दों का उपयोग करते हैं, तो इससे हमारे संवेदनशीलता और सामाजिक संज्ञान में गिरावट आ सकती है। यह भी दिखाता है कि हमारे व्यवहार में कितनी दुर्बलता है एवं संबंधों को प्रतिबिंबित करने की क्षमता में कमी है। इसलिए हमें अपने शब्दों का सावधानीपूर्वक चयन करना चाहिए और समाज में समर्थन और समझदारी का परिचय कराना चाहिए। शब्दों का चयन और उपयोग काफी महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि वे हमारे विचारों और व्यवहार पर प्रभाव डालते हैं। जुबान का अच्छा उपयोग करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। जब हम अपनी जुबान का उपयोग जागरूकता और समझ के साथ करते हैं, तो हम समाज में सदाचार, सहनशीलता, और समरसता को प्रोत्साहित करते हैं। इसलिए हमें सावधानीपूर्वक और समझदारी से अपनी भाषा का उपयोग करना चाहिए, ताकि हम सही संदेश को स्पष्टतः संवेदनशीलता और समर्थन के साथ पहुंच सकें।
-मुनीष भाटिया
5376 ऐरो सिटी, मोहाली