सुरजीत पातर

वह गाता था, दिल खोलकर गाता था।
गाते गाते दिल बाहर निकालकर रख देता था।
और चाहता था कि लोग इस दिल को समझें
देखें विचारें उचित लगे तो प्यार करें
पसंद आए तो प्रणाम करें और गाएं
दिल से गाएं समर्पित होकर।
ताकि बढ़ सके प्यार जग सके मानवता
और ला सके परिवर्तन इस दिशाहीन होते
समाज में सकारात्मक।।

यह कहने का समय नहीं है

आग लगी है, लपटें उठ रही हैं
मौसम जल रहा है, भीषण दुर्घटना है
अफरा तफरी है, लोग भाग रहे हैं
वह आया और चला गया हवा देखकर।
मैं कहता हूं यह कहने का समय नहीं है
यह समय है समझने का।
विचारने का और नया कुछ करने का
ताकि खुल सके रास्ता
शांति का किसी तरह।
-अन्वेषी

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