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गोरक्षा को लेकर राजनीतिक दलों की निष्क्रियता पर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का तीखा हमला, कहा अब गौरक्षा ही तय करेगी सनातनी राजनीति की दिशा

उमेश गुप्ता/वाराणसी

जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती ने कहा कि हिंदू राष्ट्र बनाने की बात करने वालों के सत्ता काल में स्पष्ट हो गया है कि कोई राजनीतिक दल गाय के पक्ष में नहीं है।
वाराणसी के के केदारघाट स्थित श्रीविद्यामठ, में मंगलवार को आयोजित प्रेसवार्ता में बोलते हुए जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामि अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती ने कहा कि
बहुसंख्यक हिन्दुओं के देश भारत में हिन्दुओं की पहली मांग गोरक्षा के विषय में कहने को तो हर राजनीतिक दल आजादी के पहले से ही गोरक्षा की बात कहता रहा है पर आजादी के ७८ वर्ष बीत जाने पर भी इस विषय में कोई केन्द्रीय कानून नहीं बन सका क्योंकि असल में कोई स्थापित दल ये चाहता ही नहीं था। यह राजनैतिक इच्छाशक्ति का अभाव ही है जो भारत के संविधान की धारा ४८ में गोहत्या को प्रतिबन्धित करने का प्रयास करने के लिए कहे जाने और भारत की बहुमत आबादी द्वारा निरन्तर गौरक्षा की मांग किए जाने के बाद भी आज ७८ साल बाद तक भी देश में गोरक्षा क़ानून नहीं बनाया जा सका है।

उन्होंने आगे कहा कि लम्बे समय से गौप्रतिष्ठा आन्दोलन चलाने के बाद उन्होंने समग्र आस्तिक हिन्दू समाज की ओर से प्रयाग महाकुम्भ की समाप्ति पर ३३ दिनों के अन्दर भारत के हर स्थापित राजनैतिक दल से गोमाता के बारे में अपने विचार स्पष्ट करने के लिए कहा था। उन्होंने पूछा था कि आप बताएं कि आप गाय के पक्ष में हैं या विपक्ष में? पर किसी भी स्थापित राजनैतिक दल ने उत्तर नहीं दिया। जिसके लिए १७ मार्च को रामलीला मैदान में दिन भर का प्रतीक्षा कार्यक्रम भी रद्द कर दिया गया और राजनैतिक दलों के कार्यालय के दरवाजे पर जाकर पूछने पर भी किसी ने उत्तर नहीं दिया।

ज्ञातव्य हो कि यह इतिहास का पहला अवसर था जब किसी शङ्कराचार्य ने राजनीतिक दलों के दरवाजे पर जाकर पूछा हो कि गाय के साथ खड़े हो या विरोध में? पर किसी भी राजनैतिक दल ने उत्तर नहीं दिया।
भारतीय जनता पार्टी ने तो उन्हें अपने कार्यालय के सामने जाने से भी बैरीकेटिंग कर पुलिस बल द्वारा रोक दिया और उनके कार्यक्रम की मिली हुई अनुमति भी रद्द कर दी।

 

परमाराध्य शङ्कराचार्य जी ने बताया कि उन्होंने पहले ही कह दिया था कि हमे गाय के बारे में स्पष्ट उत्तर चाहिए। बताओ कि आप हमारी गोमाता को सम्मान देकर भाई बनते हो कि उन्हें मारते-मरवाते रहकर कसाई के रूप में चिह्नित होना चाहते हो? यदि साफ़-साफ़ उत्तर नहीं आता अथवा उत्तर ही नहीं आया तो हम स्पष्ट समझेंगे कि आप गोहत्या को जारी रखते हुए ही राजनीति करना चाहते हैं जैसा कि आज तक यही हुआ है। अतः बार-बार अवसर दिए जाने पर भी देश के स्थापित राजनीतिक दलों द्वारा गोरक्षा-गोसम्मान के प्रश्न पर चुप्पी दर्शाती है कि वे गौरक्षा में कोई रुचि, प्राथमिकता या विश्वास नहीं रखते और उनसे आशा करना अब मूर्खता होगी। विश्वास और आशा भरी जो मूर्खता हम करोड़ों गौभक्त हिन्दू सनातनी 78 से अधिक वर्षों से करते आए उसे अब आगे जारी रखने का कोई अर्थ नहीं है।

अब जबकि भारत के सभी स्थापित राजनीतिक दलों से आशा समाप्त हो चुकी है तब गौरक्षा के लिये मतदाताओं को सङ्कल्पबद्ध होना ही एकमात्र उपाय रह जाता है।
परमाराध्य शङ्कराचार्य जी ने सङ्कल्प लिया कि वे गौरक्षा के लिए आज से यह प्रण लेते हैं कि प्रत्येक मतदान के अवसर पर मतदान अवश्य करेंगे और उसी पार्टी या प्रत्याशी को मतदान करेंगे जो गौरक्षा सहित समस्त सनातनी मानबिन्दुओं की रक्षा के सङ्कल्प के साथ राजनीति करने के लिए सङ्कल्पबद्ध होगा। उन्होंने अपने अनुयायियों और अन्य सभी लोगों से अनुरोध भी किया कि वे भी ऐसा ही सङ्कल्प लें जिससे देश में सनातनी राजनीति आगे आए और गौरक्षा सहित सनातन धर्म के समस्त प्रतीकों और सिद्धान्तों रक्षा सम्भव हो सके।

परमाराध्य शङ्कराचार्य जी महाराज ने स्पष्ट कहा कि भारत का संविधान गाय के पक्ष में है और गौरक्षा चाहता है। कहा कि हम हिन्दुओं को किसी भी दशा में गौहत्या स्वीकार नहीं है। उन्होंने गौहत्या और गौमांस आदि विक्रय में जुड़े लोगों को साफ कहा है कि वे अगर आजीविका के लिए यह कर रहे हैं तो उन्हें आजीविका के लिए विकल्प की तलाश करनी चाहिए और गौमांस खाने के आदती लोगों से कहा कि बहुसंख्यक हिन्दुओं की पीड़ा को रोकने के लिए उन्हें अपनी खान-पान की आदतों को बदलने के बारे में विचार करना चाहिए। उन्होंने भारत के संविधान का हवाला देते हुए भारत की सरकार से पूछा कि भारतीय संविधान के भाग 4 की धारा 48 में राज्य के नीति निदेशक तत्वों के अन्तर्गत गायों और बछडों को संरक्षित करने और उनके वध को प्रतिबन्धित करने का प्रयास करने सम्बन्धी कथन की अवहेलना क्यों कर रहे हैं और “प्रयास” शब्द की उपेक्षा क्यों कर रहे हैं?

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