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झांकी : चिट्ठी बम फुस्स

अजय भट्टाचार्य

उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य के बीच खिंची तलवारें अब भी लपलपा रही हैं। मौर्य ने एक और धमाका करते हुए योगी के अगुवाई वाले विभाग को चिट्ठी भेजकर आरक्षण का ब्योरा मांगा है। चिट्ठी में मौर्य ने कहा कि वे इस मुद्दे को विधान परिषद में भी उठा चुके हैं। कार्मिक विभाग के मुख्य सचिव और अपर मुख्य सचिव को लिखी चिट्ठी में उन्होंने आउट सोर्सिंग या संविदा पर काम कर रहे कुल कर्मचारियों का ब्योरा मांगा है। मौर्य ने लिखा कि मैंने ११ अगस्त २०२३ को इस मुद्दे को विधान परिषद में उठाया था। इसके बाद अधिकारियों ने जानकारी मांगी। १६ अगस्त २०२३ को मैंने इसके लिए पत्र लिखा, लेकिन जानकारी नहीं मिली। इसके बाद मैंने एक बार फिर पत्र लिखा। मैंने पत्र लिखा, शासनादेश के अनुसार, समस्त विभागों को सूचीवार इकट्ठा कर जानकारी पेश करें। अब यह चिट्ठी इन दिनों लखनऊ के सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बनी हुई है। हाल ही में योगी-मौर्य विवाद तब सामने आया था, जब मीटिंग के दौरान केशव मौर्या ने कहा था कि संगठन हमेशा से ही सरकार से बड़ा होता है। इसके बाद केशव मौर्य और अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी दिल्ली में दो दिनों तक डेरा डालकर बैठे रहे। लोकसभा चुनाव में भाजपा की हार और वर्तमान बयानबाजी को लेकर १५ पेज की एक रिपोर्ट भूपेंद्र चौधरी ने प्रधानसेवक मोदी को सौंप दी है। केशव मौर्य ने अध्यक्ष जेपी नड्डा के सामने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा था कि जो आपका दर्द है, वही मेरा भी है। भाजपा में सरकार से बड़ा संगठन है। संगठन था और रहेगा। उन्होंने कहा कि ७ कालिदास मार्ग हमेशा खुला रहता है। उपचुनाव की पूरी कमान योगी ने अपने हाथों में लेकर मौर्य और पाठक को पैदल कर दिया है। मौर्य का चिट्ठी बम भी फुस्स हो रहा है।
सोनी की पाप कुंडली
संघ लोकसेवा आयोग (यूपीएससी) के अध्यक्ष पद से इस्तीफे के बाद से ही मनोज सोनी की कुंडली खुलना जारी है। खुद को शिक्षाविद प्रचारित करने वाले गुजरात लॉबी के चश्मे चिराग सोनी स्वयंभू अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में विशेषज्ञता के साथ राजनीति विज्ञान के विद्वान हैं। ऐसा कहा जाता है कि सोनी स्वामीनारायण संप्रदाय के लिए कथाकार भी हैं। एक बार कुलपति रहते हुए स्वामीनारायण संप्रदाय की कथा पढ़ने के लिए एक यूरोपीय देश गए थे, जिसके कारण उनके सहयोगियों ने उनकी आलोचना की थी। एमएसयू और बीएओयू विश्वविद्यालयों के संघीकरण में मुख्य दिमाग थे। आपत्तियों और विरोध के बावजूद वे अयोग्य, संघी प्रस्तावकों, मंत्रियों और मुख्यमंत्री के पसंदीदा लोगों को विभिन्न पदों पर नियुक्त करते थे। वे ऐसा इसलिए कर सकते थे, क्योंकि उन्हें भाजपा के शीर्ष नेताओं का समर्थन प्राप्त था और वे अपने एजेंडे को पूरा करने के लिए काम कर रहे थे। शिक्षाविदों का आरोप है कि इससे गुजरात में एमएसयू जैसे सबसे प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों का पतन शुरू हो गया। एमएसयू में वे तब विवादों के केंद्र में थे, जब उन्होंने ललित कला संकाय के डीन को बर्खास्त कर दिया था। जिन्होंने कथित रूप से छात्रों द्वारा भगवान और देवी-देवताओं को ‘अश्लील’ तरीके से चित्रित किए जाने के प्रदर्शन को नहीं रोका था। एक पूर्व वरिष्ठ कार्यकारी परिषद के अनुसार न केवल डीन, बल्कि उन्होंने विश्वविद्यालय के ६ ऐसे विद्वानों को सिर्फ इसलिए बर्खास्त कर दिया, क्योंकि वे उनकी राजनीतिक विचारधारा का पालन नहीं करते थे। सरकार के समर्थन से सोनी ने उत्तर गुजरात विश्वविद्यालय में कुलपति पद के लिए तीन शॉर्टलिस्ट किए गए उम्मीदवारों में से एक ‘अयोग्य’ उम्मीदवार की उम्मीदवारी को खारिज करने के गुजरात के राज्यपाल के पैâसले को भी अदालत में चुनौती दी है।

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