अजय भट्टाचार्य
नोट फॉर वोट फेम फग्गन सिंह कुलस्ते की अलग पीड़ा है। पिछली सरकार में कुलस्ते ग्रामीण विकास राज्य मंत्री थे। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार वे स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री थे। अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहते हुए १९९९ से २००४ के बीच कुलस्ते जनजातीय एवं संसदीय मामलों के राज्य मंत्री रह चुके हैं। पिछले साल उन्होंने निवास से विधानसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गए थे। उनका नाम एक बार कथित नोट-फॉर-वोट घोटाले से जुड़ा था, जिसमें जुलाई २००८ में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार पर विश्वास मत पर बहस के दौरान कुलस्ते सहित भाजपा के तीन सांसदों ने लोकसभा में नोट लहराए थे। मध्य प्रदेश की मंडला लोकसभा सीट से सात बार जीत चुके भाजपा के आदिवासी नेता का दर्द यह है कि वे तीन बार राज्य मंत्री रहे हैं। चौथी बार उम्मीद थी कि प्रमोशन होगा, लेकिन एक बार फिर उन्हें राज्य मंत्री बनना अच्छा नहीं लगा इसलिए साफ मना कर दिया। उन्होंने बोला कि अगर वैâबिनेट मंत्री बन जाऊं तो ठीक रहेगा। मेरे पास छिपाने के लिए कुछ नहीं है। नतीजा ६५ वर्षीय सांसद एनडीए सरकार के तीसरे कार्यकाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मंत्रिपरिषद से बाहर थे।
चौधरी विफल
बिहार में एनडीए के भीतर दरारें तब खुल गर्इं, जब गया से भाजपा के पूर्व सांसद हरि मांझी ने आरोप लगाया कि राज्य भाजपा अध्यक्ष और बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी एनडीए उम्मीदवारों के पक्ष में अपनी जाति-कुशवाहा के वोट ट्रांसफर करने में विफल रहे। गया से दो बार के पूर्व सांसद मांझी ने राज्य के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी के नेतृत्व पर सवाल उठाते हुए कहा कि वे तूफानी प्रचार के बावजूद अपनी जाति के सदस्यों का विश्वास नहीं जीत सके। २०२४ के आम चुनावों से पहले, कुशवाहों को एनडीए का समर्थक माना जाता था। लेकिन समीकरण बदल गया, क्योंकि इंडिया ब्लॉक ने बिहार में कुशवाहा समुदाय के उम्मीदवारों को मैदान में उतारा। २०२४ के आम चुनावों से पहले कुशवाहों को एनडीए का समर्थक माना जाता था, लेकिन इंडिया ब्लॉक द्वारा कुछ प्रमुख निर्वाचन क्षेत्रों में कुशवाहा समुदाय के उम्मीदवारों को मैदान में उतारने से समीकरण बदल गया।
बोम्मई, शेट्टार दुखी
कर्नाटक के दो पूर्व मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई और जगदीश शेट्टार केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह न मिलने से नाराजगीपूर्ण दुखी मुद्रा में हैं। दोनों नेता कर्नाटक भवन में ठहरे हुए थे। केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किए गए वरिष्ठ भाजपा नेता प्रहलाद जोशी शपथ ग्रहण वाले दिन सुबह कर्नाटक भवन में बोम्मई से मिलने पहुंचे। चूंकि बोम्मई को आभास हो गया था कि मंत्रिमंडल में उन्हें जगह नहीं मिलेगी, जोशी के आने से पहले ही कर्नाटक भवन से चले गए। बोम्मई और शेट्टार ने मंत्रिमंडल में शामिल न किए जाने पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। दिलचस्प बात यह है कि कर्नाटक के अधिकांश लोकसभा सदस्य अपने परिवार के सदस्यों को राष्ट्रीय राजधानी लेकर आए, उन्हें उम्मीद थी कि उन्हें मंत्रिपरिषद में जगह मिलेगी। कर्नाटक से पांच नेताओं को केंद्र सरकार में शामिल किया गया, लेकिन कल्याण कर्नाटक को कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिला। दिलचस्प बात यह है कि हाल के चुनावों में भाजपा कल्याण कर्नाटक की सभी लोकसभा सीटें- बीदर, गुलबर्गा, रायचूर और कोप्पल हार गई। उत्तर कर्नाटक को केवल एक हुबली-धारवाड़ लोकसभा सीट से सांसद प्रहलाद जोशी को प्रतिनिधित्व मिला। हालांकि, शोभा करंदलाजे मूल रूप से दक्षिण कन्नड़ के पुत्तूर से हैं, लेकिन अब वह बंगलुरु उत्तर लोकसभा सीट से सांसद हैं। भाजपा के तीन वरिष्ठ सांसद पीसी गद्दीगौदर, पीसी मोहन और बी वाई राघवेंद्र भी मंत्रिपरिषद में जगह नहीं बना पाए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं तथा व्यंग्यात्मक लेखन में महारत रखते हैं।)