मुख्यपृष्ठस्तंभझांकी : राम नहीं मोदी हारे

झांकी : राम नहीं मोदी हारे

अजय भट्टाचार्य

राम मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास ने कहा है कि जो लोग अयोध्या के लोगों को गाली दे रहे हैं और चुनाव परिणाम के लिए उन्हें दोषी ठहरा रहे हैं, वे अपनी ‘मूर्खता’ दिखा रहे हैं। दास ने एक बेवसाइट से कहा, ‘वे स्पष्ट रूप से भगवान राम की भक्ति को नहीं समझते हैं। ऐसे लोग जो राम को केवल चुनावी मुद्दे के रूप में देखते हैं, वे तुच्छ और नीच हैं।’ १९९२ से अस्थायी मंदिर में पूजा का प्रबंधन करने वाले पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास के मुताबिक राम को चुनावी मुद्दे तक सीमित करना गलत है। राम आस्था का विषय हैं। राजनीति में हार-जीत खेल का हिस्सा है और इसे स्थायी आस्था के मामलों से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। राम सबके हैं। अयोध्या के पीएस साकेत कॉलेज के प्रोफेसर अनिल सिंह को इस बात से कोई आश्चर्य नहीं है कि नतीजों के तुरंत बाद भाजपा समर्थकों और नेताओं के नेतृत्व वाले दक्षिणपंथी तंत्र ने राम को वैâसे छोड़ दिया। अयोध्या और राम कभी भी संघ और-भाजपा के लिए आस्था का एजेंडा नहीं रहे हैं। वे केवल वोट जुटाने और गोलबंद करने का एक साधन रहे हैं। उन्होंने हमेशा राम के सिद्धांतों और आदर्शों के विपरीत काम किया है। मंदिर-नगरी में राम पर राजनीति को करीब से देखने वाले सिंह ने कहा कि भाजपा की हार वास्तव में मोदी की हार थी, न कि राम कारक की। भाजपा ने राम के नाम पर नहीं, बल्कि मोदी के नाम पर चुनाव लड़ा था। इधर सपा की छात्र शाखा के राष्ट्रीय महासचिव मनोज पासवान ने उत्तर प्रदेश सरकार को पत्र लिखकर नवनिर्वाचित सांसद अवधेश प्रसाद को जेड प्लस सुरक्षा देने की मांग की है। उन्होंने दावा किया है कि उन्हें खतरा है क्योंकि ‘जातिवादी, सांप्रदायिक और सामंती ताकतें’ उनकी जीत को बर्दाश्त नहीं कर सकतीं।

गांधीनगर गमगीन
हाल ही में आए लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद गांधीनगर में गमगीन माहौल है। जोश गायब हो गया है, मंत्री धीमी आवाज में बोल रहे हैं और भविष्य को लेकर चिंतित हैं। एक वरिष्ठ मंत्री को यह कहते हुए सुना गया, ‘मोदी सरकार सत्ता खो चुकी है। ऐसा लगता है जैसे कोई अस्थायी कर्मचारी हो और उसे पता न हो कि कितने दिन बचे हैं।’ अपने शब्दों के प्रभाव को समझते हुए मंत्री ने यह कहते हुए पीछे हटने की कोशिश की, ‘मोदी सक्षम है, लेकिन नुकसान हो चुका है।’ उनके श्रोता ने पलटवार करते हुए कहा, ‘आपको भी नहीं पता कि आपके पास यहां कितने दिन बचे हैं।’ इसके बाद मंत्री जल्दी वहां से चले गए। दूसरी तरफ भाजपा का प्रसिद्ध नारा ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ अब ‘कांग्रेस युक्त भाजपा’ बनकर रह गया है। पिछले एक दशक में गुजरात कांग्रेस के २५ से ज्यादा सदस्य भाजपा में शामिल हो चुके हैं, जिनमें नरहरि अमीन, राघवजी पटेल, बलवंत सिंह राजपूत और जवाहर चावड़ा जैसे दिग्गज शामिल हैं। भूपेंद्र पटेल की सरकार में कई मंत्री पूर्व कांग्रेसी हैं। इस तरह के लोगों के आने से मूल भाजपा सदस्यों में असंतोष पैदा हो रहा है, जो पार्टी से खुद को दूर कर रहे हैं। स्थानीय निकाय चुनाव नजदीक आने के साथ भाजपा को इस बढ़ते आंतरिक असंतोष को दूर करने की जरूरत होगी।

‘चिप ड्रीम’ के बदले ‘क्रीम’
केंद्र सरकार की ‘गठबंधन गतिशीलता’ हर गुजरते दिन के साथ महसूस की जा रही है। जेडीएस के कोटे से मंत्री बने केंद्रीय भारी उद्योग मंत्री एच डी कुमारस्वामी जोश में होश खो बैठे कि वे एनडीए सरकार में मंत्री हैं, जिसके मुखिया गुजरात से हैं। कुमारस्वामी ने माइक्रोन को दी गई सब्सिडी पर सवाल दाग दिया, जो गुजरात के धोलेरा में एक प्लांट लगा रही है। गुजरात लॉबी ने धोलेरा को स्मार्ट सिटी बनाने का जमकर ढिंढोरा भी पीटा था। कुमारस्वामी ने खुलासा किया कि सब्सिडी कंपनी के कुल निवेश का ७० प्रतिशत है। मतलब यह कि कंपनी से ज्यादा निवेश सब्सिडी के रूप में सरकार दे रही है। देखा जाए तो माइक्रोन कंपनी सरकार के पैसे पर मजा ले रही है और मजा यह कि सरकार की कंपनी में भागीदारी सिफर, ७० फीसदी सब्सिडी को आप दान भी कह सकते हैं। मंत्रीजी के इस बयान से सत्ता के गलियारों में खलबली मच गई। हालांकि अगले दिन मंत्रीजी को दिल्ली गुरुकुल से ज्ञान दिया गया कि सिलेबस से बाहर जाकर सवाल उठा रहे हो। ज्ञानप्राप्ति के बाद कुमारस्वामी थूककर चाटने की मुद्रा में थे और अपना बयान वापस लेते हुए कहा कि यह परियोजना मोदी का सपना था। लेकिन उनका बयान आने से पहले नुकसान हो चुका था। गुजरात प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने टिप्पणी की कि गुजरात ने टाटा नैनो जैसी कई परियोजनाओं को महत्वपूर्ण सब्सिडी की पेशकश की है और अब इस पर कड़ी जांच होगी। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कि गठबंधन धर्म का समय-समय पर आह्वान किया जाएगा और सवाल उठाए जाएंगे।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं तथा व्यंग्यात्मक लेखन में महारत रखते हैं।)

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