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झांकी : इंतजार…

अजय भट्टाचार्य

लोकसभा चुनाव के बीच महाराष्ट्र के दिग्गज नेता एकनाथ खडसे के तीन साल बाद फिर भाजपा में प्रवेश की घोषणा को तकरीबन १० दिन हो गए हैं, मगर अब तक दिल्लीशाही से ऐसा कोई संकेत नहीं मिला है। अलबत्ता भाजपा में उनका स्वागत वैâसे होगा इसकी झांकी के दर्शन होने लगे हैं। भाजपा नेता गिरीश महाजन ने अपने पूर्व सहयोगी एकनाथ खडसे पर जोरदार हमला करते हुए उन्हें `बुझा हुआ दीपक’ करार दिया है। जलगांव जिले में खडसे और महाजन कट्टर प्रतिद्वंद्वी रहे हैं। महाजन ने कहा कि उनकी पत्नी और बेटी भी चुनाव हार चुकी हैं। खडसे ने २०२० में ४० साल बाद भाजपा से रिश्ता तोड़ दिया था और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए थे। उस वक्त खडसे ने भाजपा छोड़ने के पीछे उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और गिरीश महाजन को जिम्मेदार ठहराया था। पिछले साल जुलाई में अजीत पवार और विधायकों ने पार्टी से बगावत कर दी थी और मिंधे सरकार में शामिल हो गए थे तब भी खडसे, शरद पवार गुट में बने रहे। अगले हफ्ते भाजपा में शामिल होने की घोषणा करने वाले खडसे को अभी भी दिल्ली से बुलावे का इंतजार है!

राजपूतों का गुस्सा कायम
रविवार की देर शाम राजकोट में जुटे करीब एक लाख राजपूतों ने भाजपा उम्मीदवार परषोत्तम रूपाला के खिलाफ दूसरी रैली की, जिसमें राजपूत समुदाय के नेताओं ने विरोध प्रदर्शन तेज करने और अगर रूपाला की उम्मीदवारी न बदली गई तो १९ अप्रैल के बाद अमदाबाद में एक और विशाल रैली आयोजित करने की कसम खाई। राजपूत समुदाय के लगभग ७५ अलग-अलग समूह या कबीले २२ मार्च से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, जब केंद्रीय मंत्री ने दलित समुदाय की बैठक के दौरान अपनी टिप्पणी की थी। समुदाय के शीर्ष नेताओं की एक समन्वय समिति ने भी भाजपा के राजपूत या क्षत्रिय नेताओं के साथ दो बैठकें कीं, लेकिन बातचीत से संकट का समाधान नहीं हुआ क्योंकि रूपाला को हटाने की मांग राजपूतों के लिए गैर-समझौता योग्य बनी हुई है, जबकि भाजपा नेतृत्व ने कहा है कि केंद्रीय मंत्री पहले भी दो बार माफी मांग चुके हैं। पूर्व राजसी परिवारों के अंग्रेजों के साथ संबंध और उनके साथ वैवाहिक संबंध स्थापित करने के बारे में रूपाला की टिप्पणियों ने गुजरात में रजवाड़ों के वंशजों को नाराज कर दिया है। इधर सत्तारूढ़ दल ने यह भी घोषणा की है कि केंद्रीय मंत्री १६ अप्रैल को अपना नामांकन पत्र दाखिल करेंगे और राजकोट शहर में एक रोड शो करेंगे। अगर आज रूपाला नामांकन पत्र भरते हैं तो गुजरात से उठी राजपूत विद्रोह की चिंगारी पड़ोसी राज्य राजस्थान व मध्य प्रदेश में भी अपना असर दिखाएगी।

राजस्थान में मुश्किल
राजस्थान में भले ही भाजपा सभी २५ सीट जीतने का दावा कर रही है, लेकिन राह इतनी आसान भी नहीं है। वजह यह है कि पार्टी का कोर वोट बैंक माना जाने वाला राजपूत समाज इस बार नाराज है। राजपूतों की नाराजगी भाजपा को भारी पड़ सकती है। राजपूत समाज सुखदेव सिंह गोगामेड़ी प्रकरण से पहले ही नाराज चल रहा था, लेकिन अब परषोत्तम रूपाला के विवादास्पद बयान ने आग में घी का काम कर दिया है। गुजरात के बाद इसका असर राजस्थान में दिखाई दे रहा है। दूसरी तरफ वसुंधरा राजे ने खुद को सिर्फ झालावाड़ तक ही सीमित कर लिया है। शुरुआत में ऐसा लग रहा था कि भाजपा हैट्रिक लगा लेगी, लेकिन बाद में स्थितियां पलटती जा रही हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि भाजपा में हमेशा मुख्यमंत्री पद राजपूतों को ही मिलता रहा है, लेकिन इस बार राजपूत की बजाय ब्राह्मण को मुख्यमंत्री बनाया है। कहीं न कहीं राजपूत वोटर इससे नाराज हैं। यही वजह है कि केंद्रीय मंत्री शेखावत को विरोध का सामना करना पड़ रहा है। कांग्रेस ने राजपूत समाज को विधानसभा और लोकसभा चुनाव में पर्याप्त टिकट दिया था। कांग्रेस ने इस बार तीन सीट इंडिया गठबंधन के लिए छोड़कर भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी है। पश्चिमी राजस्थान में इस बार राजपूत समाज के युवा भाजपा के खिलाफ हैं। हाल ही में पोखरण में केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को राजपूत युवाओं के विरोध का सामना करना पड़ा था। श्री करणी सेना ने क्षत्रिय समाज को लामबंद करना शुरू कर दिया है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं तथा व्यंग्यात्मक लेखन में महारत रखते हैं।)

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