अजय भट्टाचार्य
लोकसभा के बाद अब उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में विधानसभा के लिए उपचुनाव होने हैं। उत्तर प्रदेश की १० विधानसभा सीटों पर दीवाली से पहले उपचुनाव की संभावना है यानी तीन राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव के साथ ही यूपी में भी उपचुनाव होने हैं। जाहिर है एक बार फिर अखिलेश यादव और मुख्यमंत्री योगी आमने-सामने होंगे। फिलहाल, इन १० में से ९ सीटों पर चुने गए विधायक अब सांसद बन गए हैं, जबकि सपा के एक विधायक को सजा का एलान होने के बाद विधायकी रद्द कर दी गई। प्रदेश में करहल, मीरापुर, खैर, सीसामऊ, फूलपुर, मझवा, कुंदरकी, गाजियाबाद, कटेहरी और मिल्कीपुर सीट पर उपचुनाव होना है। इन १० में से ५ सीटों पर राजग और पांच सीटों पर सपा का कब्जा है। भाजपा के पास ३, रालोद और निषाद पार्टी की एक-एक है। कुल मिलाकर योगी के लिए ये चुनाव किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है। इन १० में से २ सीटें कुंदरकी और करहल पर सपा का दावा मजबूत है। खबर है कि बीएल संतोष भाजपा की चुनावी मशीनरी की ओवर हालिंग के लिए लखनऊ में डेरा डाले हुए हैं। उपचुनावों को लेकर पार्टी तीन-तीन उम्मीदवारों के नाम का पैनल तैयार कर रही है। अंतिम निर्णय केंद्रीय नेतृत्व का होगा। पैनल में जिताऊ उम्मीदवारों का चयन किया जा रहा है। जिसकी खुद भी संबंधित विधानसभा में अपनी पकड़ हो यानी पार्टी के वोट के साथ ही उसका खुद का भी वोटबैंक हो। उपचुनाव वाली विधानसभा सीटों पर योगी सरकार के कई मंत्रियों को संबंधित विधानसभा सीटों पर जाकर काम में जुटने के लिए कहा गया है। कटेहरी विधानसभा में वैâबिनेट मंत्री स्वतंत्र देव सिंह और मंत्री आशीष पटेल, शीशामऊ विधानसभा में मंत्री सुरेश खन्ना, मिल्कीपुर विधानसभा में मंत्री सूर्य प्रताप शाही, करहल विधानसभा सीट पर जयवीर सिंह, फूलपुर विधानसभा सीट पर मंत्री राकेश सचान, मझवां विधानसभा सीट पर मंत्री अनिल राजभर, गाजियाबाद विधानसभा सीट पर मंत्री सुनील शर्मा और मीरापुर विधानसभा सीट पर आरएलडी कोटे से मंत्री अनिल कुमार को जीत का जिम्मा दिया गया है।
केके के बाद?
गुजरात में सुपर सीएम कुनियिल वैâलाशनाथन उर्फ केके की मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव पद से विदाई के बाद सत्तारूढ़ भाजपा विधायकों व नौकरशाही की नजर इस बात पर लगी है कि क्या यह पद केके की विदाई के साथ ही खत्म हो गया? क्योंकि कई भाजपा नेताओं को केके के कामकाज का तरीका पसंद नहीं था। अब यदि उनकी जगह कोई और नहीं आता है तो इसे इस बात का संकेत माना जाएगा कि प्रशासन में मुख्यमंत्री के पास अधिक स्वतंत्रता होगी। नौकरशाही में भी बदलाव देखने को मिल सकते हैं। अच्छा हो या बुरा, केके ने नौकरशाही पर राज किया इसलिए निश्चित रूप से प्रशासन का एक पैटर्न स्थापित हो गया था… और स्वाभाविक रूप से, पक्षपात था। उनके पसंदीदा अधिकारी प्रतिष्ठित पदों पर बने रहे और जो उनके अच्छे लोगों में नहीं थे, उन्हें दरकिनार किया जाता रहा है। दरकिनार किए गए अधिकारियों को यह साबित करने का मौका नहीं मिला कि वे प्रदर्शन करने में सक्षम हैं या नहीं। अब केके के सेवानिवृत्त होने के बाद इस पैटर्न में बदलाव आने की संभावना है। यह संभव है कि उनके (केके के) चहेते लोग दरकिनार हो जाएं। हालांकि, वे सीएमओ पद से सेवानिवृत्त हो चुके हैं, लेकिन वैâलाशनाथन सरदार सरोवर नर्मदा निगम लिमिटेड के अध्यक्ष और गांधी आश्रम पुनर्विकास परियोजना को लागू करने वाली कार्यकारी परिषद के सदस्य बने हुए हैं। अभी तक इस बारे में कोई औपचारिक जानकारी नहीं है कि वे अपने पद पर बने रहेंगे या नहीं। इस बीच अटकलें लगाई जा रही हैं कि केके को केंद्र में राज्यपाल या उपराज्यपाल या प्रधानमंत्री कार्यालय में बड़ी भूमिका दी जा सकती है। एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, केके के पास जिस तरह का अनुभव है और मोदी का उन पर जितना भरोसा है, उससे लगता है कि उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर कोई जिम्मेदारी दी जाएगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं तथा व्यंग्यात्मक लेखन में महारत रखते हैं।)