कविता श्रीवास्तव
देश में ११ लाख से अधिक बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं। यह सरकार की ओर से प्रस्तुत अधिकृत आंकड़ा है। है न आश्चर्य की बात! आज के जागरूक समाज में यह चिंतनीय विषय है। आज कोने-कोने में मोबाइल व इंटरनेट पहुंच चुका है। फिर भी स्कूल न जाने वाले बच्चों की इतनी बड़ी तादाद है। इसमें भी सबसे ज्यादा संख्या उत्तर प्रदेश में है। एक तरफ ‘स्कूल चलें हम…’ और ‘बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ’ का खूब प्रचार होता है। दूसरी ओर डबल इंजन की सरकार वाले उत्तर प्रदेश में ही सबसे ज्यादा बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं। यह जानकारी स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग के पोर्टल पर उपलब्ध है। प्रोजेक्ट अप्रेजल, बजटिंग अचीवमेंट्स एंड डाटा हैंडलिंग सिस्टम (झ्RAँAर्Dप्) के पोर्टल पर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में स्कूल नहीं जाने वाले बच्चों की जानकारी अपडेट होती रहती है। यह जानकारी और किसी ने नहीं, बल्कि केंद्रीय शिक्षा राज्यमंत्री जयंत चौधरी ने लोकसभा में दी है। एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने बताया कि वित्त वर्ष २०२४-२५ के पहले ८ महीनों में देशभर में ११.७० लाख से अधिक बच्चों की पहचान स्कूल नहीं जाने वाले बच्चों के रूप में की गई है। यह इस बात का संकेत है कि लाखों बच्चे शिक्षा के प्रति अभी भी उदासीन बने हुए हैं। इसके पीछे उनके परिवारों की आर्थिक अवस्था, अपने अधिकारों के बारे में अज्ञानता, व्यापक जनजागृति का न होना या कोई सहयोग न मिल पाने जैसे कई कारण हो सकते हैं। हमारे संविधान के ८६वें संशोधन के तहत, ६ से १४ साल के बच्चों के लिए नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाया गया था। मकसद था प्राथमिक शिक्षा को सार्वभौमिक बनाना। वैसे शिक्षा विभाग और कई संस्थाएं इस दिशा में सकारात्मक काम कर रही हैं। फिर भी अनेक बच्चे स्कूल से ड्राप आउट हो जाते हैं। इसका कारण पढ़ाई में मन न लगना हो सकता है। आजकल के बच्चे पढ़ाई से अधिक मोबाइल पर केंद्रित रहते हैं। घर का माहौल ठीक न होना, पढा़ई में रुचि न होना, नींद पूरी न होना, पढ़ाई का ज्यादा दवाब होना, ज्यादा टीवी देखना, पारिवारिक स्थिति का अनुकूल न होना ऐसे अनेक कारण हो सकते हैं जो बच्चों को पढ़ाई से दूर कर देते हैं। इन समस्याओं का समाधान हो न हो, लेकिन बच्चों को पढ़ाई के लिए सहारा दे पाए, हमें ऐसी मजबूत व्यवस्था बनानी चाहिए। मध्य प्रदेश में ‘स्कूल चलें हम’ अभियान के तहत स्कूलों में प्रवेशोत्सव मनाया जाता है और नए छात्रों का स्कूल में स्वागत किया जाता है। कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। स्कूलों में जाकर अधिकारी पढ़ाते हैं और बच्चों को अध्यापन के तरीकों के बारे में बताते हैं। जनप्रतिनिधियों, समाज के प्रभावशाली लोगों और अन्य प्रसिद्ध लोग विद्यार्थियों से चर्चा करते हैं।
विद्यार्थियों को उपयोगी वस्तुएं भेंट की जाती हैं। समाज के लोग अपने पुराने स्कूलों में जाकर विद्यार्थियों से रूबरू होते हैं। ऐसे अभियान देश के कोने-कोने में चलते रहने चाहिए और उद्देश्य यही हो कि कोई भी शिक्षा से वंचित न रहे। जब पूरा भारत पढ़ेगा, तभी तो आगे बढ़ेगा।