मुख्यपृष्ठस्तंभतड़का : सड़क छाप बयान, कौन करे मतदान?

तड़का : सड़क छाप बयान, कौन करे मतदान?

कविता श्रीवास्तव

मौजूदा आम चुनाव ने भाषा और मर्यादाओं की धज्जियां उड़ा दी हैं। देश के शीर्ष स्तर के नेता भी स्तरहीन बयानों पर उतर आए हैं। पहले के चुनावों में लोगों से विनम्रता से वोट मांगने की प्रथा रही है। नेताओं के भाषण सुनने को लोग बेताब रहते थे। उनके वक्तव्य में विद्वत्ता, अनुभव, जानकारियां और सकारात्मकता हुआ करती थी। आज के अनेक नेताओं के संबोधन में चुटकियां, छींटाकसी, विरोधी के प्रति भारी क्रोध और दुश्मनीभरा अंगार सा फूटता दिखता है। नकारात्मकता हावी है, जबकि चुनाव जनता के भरोसे पर होते हैं। चुनाव जीतने की सबकी अभिलाषा रहती है। भरोसा जीतने के लिए जनता के बीच पहुंचना पड़ता है। आज ताल ठोंककर चुनाव जीतने का दावा करने वाले भी गली-गली भटक रहे हैं। कुछ खुद वोटों के लिए भटक रहे हैं और दूसरों पर `भटकती आत्मा’ जैसी सड़क छाप बोली बोलते हैं। विरोधी को नकली पार्टी कहते-कहते किसी राजनीतिक परिवार के विनम्र और संयमशील बेटे को `नकली संतान’ जैसी अत्यंत ही आपत्तिजनक और अपमानजनक बात कह जाना न केवल राजनीति के गिरते स्तर की झलक है, बल्कि यह बहुत ही बेहूदगी भरी करतूत है। बड़े पद पर बैठा व्यक्ति ऐसा करता है तो आम नागरिक को सिर्फ कोफ्त होती है। वह सोचता है यह कौन सी राजनीति है? आम जनता के मुद्दों की बजाए इस तरह की `तू-तू, मैं-मैं’ से खीझकर मतदाता वोट देने भी नहीं जाते हैं। आजकल राजनीतिक मंचों से स्वयं के बारे में कम और विरोधियों के बारे में ज्यादा बोला जा रहा है। एक दशक पहले हम `मां-बेटे की सरकार’ और `पप्पू’ जैसे संबोधन खूब सुनते थे। सत्ता बदली। परिस्थितियां बदलीं। विदेशों से कालाधन कभी नहीं आया। देश ने नोटबंदी झेला। कोरोना का दौर देखा। लॉकडाउन झेला। बीते एक दशक में मंहगाई दोगुनी हो गई। रोजगार सिमटता गया। सरकारी नौकरियों पर रोक सी लग गई। इस पर भी सत्ताधारी लोग अपने कार्यों पर नहीं, अपने विरोधियों को बुरा बताकर ही वोट बटोरना चाहते हैं। वे इतने संवेदनहीन हो चुके हैं कि बेरोजगारी, मंहगाई, युवा, किसान आंदोलन, मणिपुर हिंसा आदि पर वे कभी कुछ बोलते ही नहीं। कुछ लोग एक नेता से इतने भयभीत हैं कि वे एक दशक से कभी `पप्पू’ कह-कहकर थकने के बाद अब `शहजादे’ कहने लगे हैं। अब तो आम मतदाता भी शहजादे, मुगलिया सोच, मंगलसूत्र, पाकिस्तानी समर्थन, ईडी की कार्रवाई, नकली पार्टी जैसी बातों से ऊब चुका है। लोगों को समस्याओं से मुक्ति चाहिए। दूसरे नेता की खिल्ली उड़ाने से मतदाता प्रभावित नहीं होंगे। केवल कहने वाला विकसित भारत नहीं, सचमुच का खुशहाल भारत चाहिए। सबको रोजगार मिले। मंहगाई से दम न टूटे। किसानों, श्रमिकों, युवाओं, महिलाओं और हर वर्ग तक विकास का लाभ वाकई पहुंचेगा, तब मतदाता भी खुलकर वोट के लिए प्रेरित होंगे।

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