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तड़का: देश का जनादेश

कविता श्रीवास्तव

देश में १८वीं लोकसभा के गठन के लिए हुए चुनावों की मतगणना का सबसे महत्वपूर्ण काम आज हो रहा है। चुनावी पिटारों के खुलते ही राजनीतिक दलों और तमाम प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला हो जाएगा। उसके बाद एक नई सरकार का गठन होगा। हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में प्रत्येक पांच वर्ष पर यह सुनिश्चित है। लोकसभा भंग होने पर बीच में भी ऐसे चुनाव हुए हैं। इंतजार इस बात का है कि वर्तमान भारतीय जनता पार्टी की सरकार फिर से सत्ता में आती है या फिर `इंडिया’ गठबंधन की विजय होती है। हमने देखा कि इस बार चुनाव में महंगाई, बेरोजगारी, किसानों, युवाओं की समस्याओं आदि लेकर कांग्रेस व अन्य सहयोगी दल अपने `इंडिया’ गठबंधन के साथ लगातार जूझते दिखे। दूसरी ओर सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगी दलों ने आम जनता के इन मुद्दों को कभी महत्व नहीं दिया। उन्होंने ज्यादातर राम मंदिर और हिंदू-मुस्लिम से संबंधित विषयों को चुनाव का मुद्दा बनाया। विपक्ष पर लगातार हमले किए। भ्रष्टाचार भी इस चुनाव का एक महत्वपूर्ण पक्ष रहा, लेकिन मतदाताओं में दो तरह के लोग दिखाई पड़े। एक वे जो पूरे भक्तिभाव से सत्ताधारी पक्ष की लिए आंख बंद करके अपना वोट डालने को आतुर रहे। दूसरी ओर वे लोग थे, जो सरकारी संस्थाओं को निजी हाथों में सौंपे जाने, निजीकरण किए जाने, सरकारी नौकरियां खत्म होने, भारी बेरोजगारी होने, महंगाई के बेतहाशा बढ़ने, किसानों के परेशान होने और युवाओं-महिलाओं की समस्याओं को लेकर चिंताग्रस्त दिखाई दिए। यह भी सच्चाई है कि चुनावों में ढेर सारा धन और कार्यकर्ताओं का बल लगता है। भारतीय जनता पार्टी ने चुनावी बॉन्ड के जरिए अपने लिए ढेर सारी रकम पहले ही जुटा लिए थे। दूसरी ओर विपक्षी दलों की सबसे बड़ी कांग्रेस पार्टी के बैंक खाते सील कर दिए गए। इसके अलावा विपक्षी दलों के दो प्रभावी मुख्यमंत्रियों अरविंद केजरीवाल और हेमंत सोरेन को ऐन चुनाव से पहले सलाखों के पीछे ढकेल दिया गया। चुनाव से पहले तमाम जांच एजेंसियों ने विरोधी दलों के नेताओं पर बड़ी कार्रवाइयां कीं। इन सबका चुनाव परिणाम पर निश्चित ही असर होगा। बहरहाल, देश में ढेर सारी विविधताएं हैं। विभिन्न संस्कृतियां हैं। इसका भी राजनीति पर असर होता है। जाति, धर्म, संप्रदाय भी चुनावों पर गहरा प्रभाव डालते हैं। इन सब के बाद भी चुनाव में जनता का निर्णय ही सर्वाेपरि होता है। वही स्वीकार्य होता है। उसे स्वीकारने के अलावा कोई चारा भी तो नहीं है। देश में लोकतंत्र है। इसमें जनता ही शासक की भूमिका निभाती है। जनता के प्रतिनिधि लोकसभा पहुंचते हैं और बहुमत के आधार पर सत्ता मिलती है। लेकिन चुनाव में राजनीतिक मर्यादाओं, सामाजिक सरोकारों, नैतिक कर्तव्यों के साथ ही आम जनता की तकलीफों से सरोकार रखना भी महत्वपूर्ण है। चुनाव को केवल भावुक बनाकर और मुद्दों की अनदेखी करके किया जाएगा तो लोकतंत्र की जड़ें कमजोर होंगी। आम जनता के मुद्दे ही लोकतंत्र की आत्मा है।

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