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तड़का : बच्चों की सोचो

कविता श्रीवास्तव

यौन अपराध से बच्चों के संरक्षण हेतु वर्ष २०१२ में प्रिवेंशन ऑफ चिल्ड्रन प्रâॉम सेक्सुअल ऑफेंस (पॉक्सो) एक्ट अमल में लाया गया। बच्चों पर होने वाले यौन अपराधों पर लगाम लगाने, बच्चों को संरक्षित करने और ऐसी घटनाओं पर उचित कार्रवाई करने के लिए यह कानून बना है। इसके बावजूद देश में बच्चों के यौन शोषण की घटनाएं लगातार सुनने में आती हैं। कुछ महीने पहले मुंबई से सटे बदलापुर में हुई ऐसी घटना पर खासा हंगामा मचा था। बाद में आरोपी पुलिस एनकाउंटर में मारा गया। यह मामला अभी अदालत में प्रलंबित है। चौंकाने वाली बात यह है कि महाराष्ट्र में एक दो नहीं, पॉक्सो एक्ट के तहत चल रहे लगभग ४२ हजार मामले प्रलंबित हैं। उससे भी बड़े आश्चर्य की बात यह है कि इन मामलों को देखने के लिए केवल एक ही अदालत है। उसे भी सेवानिवृत जज संभाल रहे हैं, जबकि इन मामलों को देखने के लिए ३० पदों की व्यवस्था बनाई गई है। इसका महाराष्ट्र सरकार के गजट में उल्लेख है। यह जानकारी सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत दायर एक आवेदन के जवाब में सामने आई है। सवाल उठता है कि जब केवल महाराष्ट्र में बाल यौन शोषण के ४२,००० मामले अभी कोर्ट में प्रलंबित हैं तो पूरे देश में ऐसे मामलों की संख्या कितनी होगी? फिर वह मामले भी तो होंगे जिनकी कहीं कोई रिपोर्ट या जानकारी नहीं होती है, जो मामले सामने आते ही नहीं हैं? बच्चों पर होने वाले यौन शोषण के मामलों की इतनी बड़ी संख्या सामाजिक चिंता का विषय है। यह बच्चों की सुरक्षा को लेकर भी अनेक शंकाएं पैदा करती हैं। बच्चों के यौन शोषण के मामलों में स्कूलों के कर्मचारी, स्कूल बस चलाने वालों, सीनियर स्टूडेंट्स व कामकाज के ठिकानों के कर्मियों से लेकर घरों में सगे-संबंधियों तक को आरोपी पाया गया है। ऐसी घटनाओं पर होने वाली न्यायिक प्रक्रिया के विलंब पर विशेषज्ञों ने चिंता व्यक्त की है। यौन शोषण के मामले में त्वरित न्याय की आवश्यकता होती है। देरी होने से अभियुक्तों को लाभ मिल जाता है इसीलिए कहा भी जाता है कि न्याय मिलने के लिए यह भी जरूरी है कि न्याय समय पर मिले। देरी से मिला न्याय भी अक्सर अप्रासंगिक हो जाता है और वह भी एक तरह का अन्याय ही समझा जाता है। उल्लेखनीय है कि पॉक्सो एक्ट के तहत मामलों की सुनवाई विशेष अदालत में होती है। सभी सत्र न्यायाधीशों, अतिरिक्त सत्र न्यायाधीशों और तदर्थ अतिरिक्त सत्र न्यायाधीशों को पोक्सो मामलों के लिए विशेष अदालतों के न्यायाधीश की शक्तियां प्रदान की गई हैं, किंतु इनको फुर्सत नहीं है। कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, इन मामलों की सुनवाई एक वर्ष के भीतर करनी चाहिए, ताकि आघात को कम किया जा सके। अब देखना है कि पॉक्सो मामलों की सुनवाई के लिए पर्याप्त अदालतें कब तक बनती हैं?

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