कविता श्रीवास्तव
देवभूमि उत्तराखंड में गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ इन चारों धामों की यात्राएं आरंभ होने की तैयारियां चल रही हैं, किंतु उत्तराखंड के जंगल इन दिनों आग की चपेट में आ गए हैं। आग बढ़ती जा रही है और उस पर काबू पाना मुश्किल हो रहा है। कुमाऊं और गढ़वाल दोनों तरफ के जंगलों में काफी कुछ स्वाहा हो गया है। खेत-खलिहान, पशु-पक्षी, गांव, वन संपदा सब कुछ बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। पांच लोगों की जान भी चली गई है। धुआं और राख भी खूब हो गया है। साढ़े नौ सौ से अधिक ठिकाने आग की चपेट में हैं। ये आग वैâलिफोर्निया के जंगलों में लगने वाली आग से कम नहीं है। पेड़ों के जलने से कुछ स्थानों पर भूस्खलन भी हो रहा है। कुमाऊं मंडल में नैनीताल और अल्मोड़ा के जंगलों में अभी भी आग भड़की हुई है। गढ़वाल मंडल में पौड़ी में आग इतनी पैâली है कि डीएम को वायुसेना से मदद मांगनी पड़ी। जिन वनक्षेत्रों में चीड़ के पेड़ हैं, वहां आग भीषण है। कुमाऊं मंडल ज्यादा प्रभावित है। जंगल की आग अब डराने लगी है। मनुष्यों के प्रभावित होने के साथ ही वनाग्नि के कारण वन संपदा और वन्यजीवों को भी नुकसान पहुंचा है। उत्तराखंड के पहाड़ हिमालय पर्वतमाला से जुड़े हुए हैं। इन पहाड़ों की वन संपदा हमारे लिए महत्वपूर्ण है। पहाड़ों का यह राज्य तीर्थयात्राओं और पर्यटन में भी बहुत लोकप्रिय है इसलिए उत्तराखंड के जंगलों की यह आग चिंताजनक है। हम जानते ही हैं कि भारत में कुल मिलाकर २१.५ प्रतिशत ही जंगल का हिस्सा है, जो लगभग सात लाख स्क्वायर किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में पैâला है। देश में सर्वाधिक जंगलों वाला राज्य मध्य प्रदेश है, लेकिन सबसे बड़ा जंगल पश्चिम बंगाल का सुंदरवन है। यह जंगल कुल दस हजार स्क्वायर किलोमीटर के क्षेत्र में पैâला हुआ है। इसका अधिकांश हिस्सा बांग्लादेश में है। अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, महाराष्ट्र, मिजोरम में भी वनक्षेत्र हैं। केंद्र शासित लक्षद्वीप में सर्वाधिक ९०.३३ प्रतिशत इलाका वनक्षेत्र है। हमारे जंगलों में समृद्ध जैव विविधता है। उनका संरक्षण हम करते हैं। कई राष्ट्रीय उद्यान भी हमने बनाए हैं। वन्यजीवों के संरक्षण के लिए भी हमने सख्त नियम-कानून बना रखे हैं। वन्य जीवों की विभिन्न प्रजातियां भारत में संरक्षित की गई हैं। वनों की और वृक्षों की रक्षा के लिए भी कानून हैं, क्योंकि वन संपदा बचाना है। उत्तराखंड में चीड़ के वृक्ष भी आग के कारण हैं। उनके आपसी घर्षण से अग्नि उत्पन्न होती है और आग लगती है। इंसानी हरकतों के कारण भी आग लगती है। इसकी रोकथाम के लिए सख्त उपाय करने होंगे। लोगों का सहयोग और जनजागरण भी बहुत जरूरी है।