मुख्यपृष्ठस्तंभतड़का : कौन बनेगा मुख्यमंत्री?

तड़का : कौन बनेगा मुख्यमंत्री?

कविता श्रीवास्तव

महाराष्ट्र और दिल्ली में शीघ्र ही विधानसभा चुनाव होने हैं। कुछ लोगों की चिंता यही है कि चुनावों के बाद इन राज्यों में मुख्यमंत्री कौन बनेगा? इस बीच दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने पद से इस्तीफा देकर जनता की अदालत पर पैâसला छोड़ दिया है। यह एक तरह से भाजपा के लिए उनकी ताजा चुनावी चुनौती है। अपनी पार्टी की नेता आतिशी को मुख्यमंत्री पद सौंप कर उन्होंने दिल्ली की आम जनता पर जबरदस्त भरोसा जताया है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि जब दिल्ली की जनता उन्हें चुनकर फिर से सत्ता सौंपेगी तब वे फिर से मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। उन्होंने कहा कि जनता ही उनकी ईमानदारी का प्रमाण देगी। उन्होंने `जेड प्लस’ सुरक्षा वापस लौटाने, सरकारी बंगला छोड़ने और मुख्यमंत्री के तौर पर मिलनेवाली सारी सुविधाओं को वापस लौटने का एलान किया है। आज जब छुटभैए नेता भी पुलिस सुरक्षा और सरकारी सुविधाओं के लिए जुगाड़ लगाते रहते हैं ऐसे में केजरीवाल का सबकुछ छोड़कर आम जनता के बीच सामान्य आदमी की तरह रहने का पैâसला एक अद्भुत मिसाल ही कहा जाएगी। केजरीवाल इसी तरह के साहसिक कदम उठाने के लिए पहचाने जाते हैं। वैसे इस्तीफे के बाद भी वे पूर्व मुख्यमंत्री रहेंगे। वे देश की चर्चित पार्टी के मुखिया हैं। दिल्ली और पंजाब में उनकी पार्टी की सत्ता है। वे चाहें तो उन्हें अधिकृत रूप से कई सुविधाएं मिल सकती हैं। लेकिन उन्हें कथित शराब घोटाले में आरोपी बनाया गया और महीनों हिरासत में रखा गया। वह दौर बिताने के बाद अब वे बाहर हैं और मामला अदालत में है। जनता के बीच आकर उन्होंने अपनी सुरक्षा भगवान के भरोसे छोड़ दी है। इस तरह उन्हें और उनकी पार्टी को समेटने के सभी प्रयास धीरे-धीरे विफल होते दिख रहे हैं। मुख्यमंत्री पदत्याग कर उन्होंने यह सिद्ध किया है कि उनका संघर्ष केवल पद के लिए नहीं है। वे भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाले नेता हैं। केजरीवाल प्रशासनिक सेवा छोड़कर समाज सेवा और फिर राजनीति से जुड़े हैं। देश में सूचना का अधिकार कानून लागू करने में केजरीवाल का सबसे बड़ा योगदान है। इसी तरह लोकपाल बिल के लिए उन्होंने लंबा संघर्ष किया। आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में सत्ता हासिल करने के बाद पंजाब में भी सत्ता का गठन किया। यह केजरीवाल और उनकी पार्टी की नीतियों की सफलता और लोकप्रियता का बड़ा उदाहरण है। मुख्यमंत्री कौन होगा, कौन नहीं यह उतना महत्वपूर्ण नहीं है। लोगों का विश्वास हासिल करके सत्ता हासिल करना ज्यादा मायने रखता है। ध्यान रहे कि महाराष्ट्र में जब भाजपाइयों ने बार-बार माविआ के संभावित मुख्यमंत्री के नाम पर सवाल उठाया तो शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के मुखिया व पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने दो टूक जवाब दिया कि चुनाव के बाद सहयोगी दल आपस में तय कर लेंगे। दूसरी ओर महायुति में मुख्यमंत्री पद पर घमासान दिखने लगा है। अजीत पवार और देवेंद्र फडणवीस के लोगों ने गणेशोत्सव के बैनर पर अपने-अपने नेता को भावी मुख्यमंत्री बताया। इससे एकनाथ शिंदे के माथे पर निश्चित ही बल पड़े होंगे। एकतरफ कुछ लोग पद के लिए व्याकुल दिखते हैं तो कुछ लोग पद की फिक्र ही नहीं करते।

अन्य समाचार