एम एम सिंह
कबीर दास जी ने जीने का जो फलसफा नुमाया किया था उसको हिंदुस्थान में तो लोग भूलने ही लगे हैं, लेकिन दुनिया भर में लोग जाने-अनजाने उनकी बातों को अपनी जिंदगी का सार बनाने या बताने में हिचकिचाहट नहीं करते। कम से कम अमेजॉन के मालिक जेफ बेजोस के कहने से तो यही लगता है। जेफ बेजोस ने कहा कि दुनिया के सबसे अमीर लोगों को उनके द्वारा अर्जित की गई संपत्ति के आधार पर सूचीबद्ध नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि उनके द्वारा दूसरों के लिए बनाई गई संपत्ति के आधार पर सूचीबद्ध किया जाना चाहिए। यह उनका सुझाव है। वाकई यह एक शानदार सुझाव है। आज की तारीख में जब दुनिया भर में असमानता बढ़ती जा रही है, यानी गरीब और गरीब होते जा रहे हैं, अमीर और अमीर होते जा रहे हैं। सच तो यह है कि उनकी इस बात की जितनी भी तारीफ की जाए उतनी कम है, क्योंकि मौजूदा वक्त में अमीरों की मानसिकता में विकृति आ गई है! उनकी हवस इस कदर बढ़ गई है कि वे सब कुछ चाहते हैं! एकाधिकार! पैसों के लिए, अपने साम्राज्य के लिए लोगों को लड़वा सकते हैं, सरकार गिरवा सकते हैं, सरकार बनवा सकते हैं… खैर, फेहरिस्त बहुत लंबी हो सकती है, जिससे वाकिफ आप भी हैं! इस बात में बहस क्या करें कि ऐसे अमीरों को मदद कौन किस तरह से करता है! फिर से लौटते हैं कबीर दास जी पर, उनके उस दोहे पर जिसका जिक्र हमने प्रत्यक्ष तौर पर शुरुआत में नहीं किया था। गौर फरमाएं-
‘बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंछी को छाया नहीं फल लागे अति दूर।।
इसका अर्थ तो हम सभी ने स्कूली दिनों में याद कर लिया था! मामला अगली कक्षा में जाने का था, पास होकर, लेकिन कबीर दास जी के सभी दोहे जिंदगी जीने की रह बताते हैं। विश्व के सबसे बड़े फिलॉस्फर हैं यानी विश्व गुरु।
पहली पंक्ति में बड़प्पन की खजूर के पेड़ से तुलना की गई है और अगली पंक्ति में बड़प्पन का व्यर्थ। यदि आपकी बड़प्पन या महानता में परोपकार का भाव नहीं है तो आपका बड़ा होना वैसे ही व्यर्थ है, जैसे पेड़ खजूर का। क्योंकि खजूर का पेड़ इतना लंबा और ऊंचा होता है कि उस पर लगनेवाले फल आम आदमी की पहुंच से दूर होते हैं और तना पतला होता है और पत्ते कम होते हैं, जिससे पथिक को खजूर की छांव का सहारा भी नहीं मिल पाता है। ऐसा बड़प्पन और ऐसी महानता किसी काम की नहीं। इस दोहे का भावार्थ एक पंक्ति में निहित है। ‘परमार्थ या परोपकार!’ जेफ बेजोस ने अमीर होने का क्या मतलब है उसे एक नई दृष्टिकोण से देखने का सुझाव दिया है, जिनका स्वागत होना चाहिए। बेजोस के लिए कुछ सौ अरब डॉलर बनाने की प्रक्रिया में, अमेजन ने अपने निवेशकों को २ ट्रिलियन डॉलर से अधिक अमीर बना दिया है, जो शायद धन-सृजन का एक सच्चा संकेत है और इसका प्रभाव केवल शेयरधारकों तक ही सीमित नहीं है। सार्वजनिक रूप से आयोजित कंपनियों का नौकरियों, वित्त और संपत्ति बाजारों पर बहुत अधिक आर्थिक प्रभाव पड़ता है। अब अपने देश की बात की जाए। यहां पर कितने ऐसे अमीर हैं, जिन्हें इस नए दृष्टिकोण से या कबीर दास जी के नजरिए से अमीर कहा जाए? ‘परमार्थ या परोपकार’ की नजरों से!