मुख्यपृष्ठस्तंभबात-जज्बात : फसाना बनकर रह जाएगा दक्षिण कोरिया!

बात-जज्बात : फसाना बनकर रह जाएगा दक्षिण कोरिया!

एम एम सिंह

दक्षिण कोरिया का नाम लेते ही दुनियाभर के युवाओं का मन मचल उठता है। देखा जाए तो आजकल की यंग जनरेशन ‘के एनीमे’, ‘के-पॉप’ मूवी और ‘के कल्चर’ की दीवानी है, लेकिन इस कल्चर पर खत्म होने का साया मंडरा रहा है। जी हां, बिल्कुल सही सुना आपने।
इसके अलावा दक्षिण कोरिया की एक और पहचान है। एक छोटा सा देश जो कभी जबरदस्त इकोनॉमिकल ग्रोथ और मॉर्डनाइजेशन का एक सफल उदाहरण था, अब बुरी तरह से फर्टिलिटी क्राइसेस यानी प्रजनन संकट से जूझ रहा है। देश की जन्म दर इतनी कम हो गई है कि यदि यही प्रवृत्ति जारी रही तो सदी के अंत तक दक्षिण कोरिया की जनसंख्या घटकर वर्तमान आकार की एक तिहाई रह जाएगी। हालांकि, इस खतरनाक गिरावट के पीछे की कहानी कहीं अधिक जटिल है, जिसमें न केवल सामाजिक-आर्थिक दबाव शामिल है, बल्कि वर्षों से चली आ रही गहरी जेंडर टेंशन यानी लैंगिक तनाव भी शामिल है।
दक्षिण कोरिया में प्रजनन दर में गिरावट जानबूझकर परिवार नियोजन नीति के तहत शुरू हुई। १९६० के दशक में सरकार को चिंता थी कि जनसंख्या वृद्धि आर्थिक विकास से ज्यादा हो जाएगी, इसलिए उसने जन्म दर कम करने के उपाय किए। उस समय दक्षिण कोरिया की प्रति व्यक्ति आय वैश्विक औसत का केवल २० फीसदी थी और प्रजनन दर प्रति महिला ६ बच्चों पर थी। १९८२ तक जब अर्थव्यवस्था में उछाल आया प्रजनन दर गिरकर २.४ हो गई, जो अभी भी २.१ के प्रतिस्थापन स्तर से ऊपर थी, लेकिन सही दिशा में बढ़ रही थी।
१९८३ तक प्रजनन दर प्रतिस्थापन स्तर तक गिर गई थी और तब से यह तेजी से घट रही है। जो एक बार सावधानीपूर्वक नियंत्रित गिरावट थी, वह अब संकट बन गई है। अनुमानों के अनुसार सदी के अंत तक दक्षिण कोरिया की आबादी ५२ मिलियन से घटकर मात्र १७ मिलियन रह जाएगी। सबसे खराब स्थिति में कुछ अनुमानों के अनुसार देश अपनी ७० फीसद आबादी खो सकता है तथा केवल १४० लाख लोग ही बचेंगे, जिससे अर्थव्यवस्था अस्थिर हो सकती है तथा अभूतपूर्व सामाजिक चुनौतियां पैदा हो सकती हैं।
हालांकि, दक्षिण कोरिया ने उच्च जन्म दर को प्रोत्साहित करने के लिए नीतियां लागू की हैं, जैसे कि बच्चों की देखभाल के लिए विदेशी घरेलू कामगारों की भर्ती करना, कर लाभ प्रदान करना और यहां तक ​​कि ३० वर्ष की आयु तक तीन या अधिक बच्चे होने पर पुरुषों को अनिवार्य सैन्य सेवा से छूट देने का प्रस्ताव करना, लेकिन अब तक इन उपायों का बहुत कम प्रभाव पड़ा है। समस्या का मूल कारण देश के सामाजिक और सांस्कृतिक परिदृश्य में निहित है। कई महिलाएं खासतौर पर शहरी क्षेत्रों में परिवार शुरू करने की तुलना में करियर को प्राथमिकता देती हैं। २०२३ के सरकारी सर्वेक्षण में आधे से ज्यादा उत्तरदाताओं ने ‘माता-पिता के बोझ’ को महिला रोजगार में सबसे बड़ी बाधा बताया।
दोहरी आय वाले परिवारों की संख्या में वृद्धि और शिक्षित होने के चलते महिलाएं विवाह और बच्चे पैदा करने में देरी करने या फिर उन्हें टालने लगी हैं। इसके अलावा अब विवाह को बच्चे पैदा करने के लिए जरूरी नहीं माना जाता। वहीं जो महिलाएं शादी करती हैं, वे घरेलू जिम्मेदारियों में अधिक समानता की मांग कर रही हैं। लिंग के आधार पर बहुत बड़ा अंतर बना हुआ है, ९२ प्रतिशत महिलाएं सप्ताह के दिनों में घरेलू काम करती हैं, जबकि पुरुषों के लिए यह आंकड़ा केवल ६१ प्रतिशत है। इस असमानता के कारण पारंपरिक विवाह भूमिकाओं से बड़े तौर पर मोहभंग हुआ है। वास्तव में २०२४ के एक सर्वेक्षण से पता चला है कि दक्षिण कोरिया में एक तिहाई महिलाएं शादी नहीं करना चाहती हैं, जिनमें से ९३ प्रतिशत ने घर के काम और बच्चों की परवरिश के बोझ को मुख्य कारण बताया है। रिपोर्ट बताती है कि दक्षिण कोरिया में लिंग भेद संभवत: प्रजनन संकट में योगदान देने वाले सबसे महत्वपूर्ण कारकों में से एक है।

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