सैयद सलमान मुंबई
मुस्लिम जगत फिलिस्तीन और इजरायल के बीच चल रहे संघर्ष से पहले से ही परेशान था, इस बीच ईरान और इजरायल के बीच के तनाव ने स्थिति और बिगाड़ दी है। ईरान द्वारा इजरायल पर हाल में किए गए मिसाइल हमले से मुस्लिम देश सकते में हैं। ईरान ने २०० से अधिक बैलिस्टिक मिसाइलें दागी हैं, जिससे क्षेत्र में तनाव और भी बढ़ गया है। ईरान ने विशेष रूप से इजरायली सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया है। इस हमले के बाद हिजबुल्लाह और अन्य मुस्लिम देशों ने ईरान को समर्थन देने का संकेत दिया है, जिससे संभावित संघर्ष की आशंका बढ़ गई है। ईरान का कहना है कि उसका हमला इजरायल के खिलाफ उनकी अपनी सुरक्षा का एक हिस्सा था। ईरान ने चेतावनी दी है कि यदि इजरायल ने कोई जवाबी कार्रवाई की, तो वे और भी बड़े हमले के लिए तैयार हैं। ईरान का मानना है कि इजरायल का विनाश ही पश्चिम एशिया की समस्याओं का समाधान है। ईरान की इस भूमिका से स्थिति और जटिल हो गई है।
सारे विवाद के पीछे इजरायल और फिलिस्तीन के बीच का मतभेद है। फिलिस्तीन के लोग लंबे समय से अपनी स्वतंत्रता और अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। १९४८ में इजरायल की स्थापना के बाद से अरब-इजरायली युद्धों ने इस क्षेत्र में स्थायी तनाव पैदा किया है। वर्तमान में, गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक में फिलिस्तीनी नागरिकों का जीवन अत्यंत कठिन हो गया है। हमास द्वारा गत वर्ष इजरायल पर किए गए हमले के बाद स्थिति और बिगड़ गई है। इजरायल की सैन्य कार्रवाई ने फिलिस्तीन के बुनियादी ढांचे को तबाह कर दिया है, जिससे उबरने में फिलिस्तीन को वर्षों लगेंगे। इजरायल की कार्रवाई के बाद मानवाधिकारों का उल्लंघन, फिलिस्तीनियों के लिए रोजमर्रा की चुनौती बन गया है।
गाजा पट्टी में हमास का प्रभाव बहुत महत्वपूर्ण है। यह संगठन इजरायल के खिलाफ प्रतिरोध का प्रतीक बन चुका है। इजरायल और यूरोपीय देशों का मानना है कि ईरान हमास को वित्तीय और सैन्य सहायता प्रदान करता है, जिससे यह संगठन इजरायल के खिलाफ अपनी गतिविधियों को जारी रखता है। ईरान-इजरायल संघर्ष अब एक प्रॉक्सी युद्ध में तब्दील हो चुका है, जिसमें कई अन्य समूह भी शामिल हैं। लेबनान में हिज्बुल्लाह और यमन में हूती विद्रोही भी इस संघर्ष में अपनी भूमिका निभा रहे हैं। इन सभी समूहों को ईरान का समर्थन प्राप्त है, जिससे यह आभास होता है कि यह संघर्ष केवल दो देशों के बीच नहीं, बल्कि क्षेत्रीय स्तर पर एक व्यापक युद्ध बनता जा रहा है। कहने को ५७ मुस्लिम देश हैं, लेकिन इक्का-दुक्का को छोड़कर फिलिस्तीन के पक्ष में कोई नहीं है। फिलिस्तीन मुद्दे पर मुस्लिम देशों के बीच विचारों में स्पष्ट विभाजन है। अब ईरान द्वारा इजरायल पर हमले के बाद मुस्लिम देशों का एकजुट होना और मुश्किल लग रहा है। तुर्की और पाकिस्तान ने ईरान के समर्थन में बयान दिए हैं। कुवैत और कतर ने संयम बरतने का आग्रह किया है, जबकि सऊदी अरब ने ईरान की कार्रवाइयों की निंदा की है। जॉर्डन ने इजरायल को समर्थन प्रदान करते हुए अपने हवाई क्षेत्र का उपयोग करने की अनुमति दी है, जो ईरान के खिलाफ एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
बमबारी और मिसाइल हमलों के बीच फिलिस्तीन और इजरायल के नागरिकों का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। इन हमलों में केवल सैन्य ठिकाने ही नहीं, बल्कि रिहायशी इलाके, स्कूल और अस्पताल भी प्रभावित हो रहे हैं। दरअसल, यह जंग सनक की जंग बन गई है। जितनी बड़ी सनक, उतनी बड़ी जंग। अमेरिका जैसे देश केवल हथियारों को बेचने के लिए जंग चाहते हैं। मुस्लिम देशों को यह तय करना होगा कि वे किस तरह से इस जटिल स्थिति में हस्तक्षेप करेंगे। फिलिस्तीन के संघर्ष के बीच ईरान की एंट्री से यह मुद्दा क्षेत्रीय नहीं, बल्कि वैश्विक समस्या बन गया है। इसे तृतीय विश्वयुद्ध की आहट भी कहा जा सकता है। ईरान-इजरायल के बढ़ते तनाव का असर केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि आर्थिक और सामाजिक स्तर पर भी दिखाई दे रहा है। माना जा रहा है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तेल और सोने के भाव में जबरदस्त वृद्धि होगी। हमारे देश में भी सोशल मीडिया पर एक तरह का युद्ध चल रहा है, जिसमें मतभेद की सारी सीमाएं लांघी जा रही हैं। लाशों पर अट्टहास हो रहा है। असंवेदनशीलता अपने चरम पर है। जिन-जिन देशों के नागरिक इस युद्ध की बलि चढ़ रहे हैं, उनकी लाशों पर खुश होनेवालों में शायद इंसानियत का भाव ही मर गया है। विश्व पटल पर शांति और स्थिरता के लिए एक समग्र समाधान की आवश्यकता महसूस हो रही है। वैसे भी साहिर साहब क्या खूब कह गए हैं,
जंग तो खुद ही एक मस’अला है,
जंग क्या मस’अलों का हल देगी…..
(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)