-७ वर्षों में गिर गए ८ हजार पेड़… सरकार को सुध नहीं
सामना संवाददाता / ठाणे
ठाणे जिले में पिछले ७ वर्षों में विकास के नाम पर ८ हजार पेड़ों की बलि दिए जाने की चौंकानेवाली जानकारी आई है। दरअसल, प्रशासन को पेड़ों की परवाह ही नहीं हैं। इसी वजह से पिछले ७ वर्षों में ठाणे जिले के ८,००० से अधिक पेड़ गिर पड़े हैं।
बता दें कि यहां विकास के नाम पर पेड़ों की बलि दी गई है। हाल ही में ठाणे मनपा के आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले सात वर्षों में ठाणे शहर और उपनगरों में ८,१४४ पेड़ या तो गिर पड़े हैं या फिर खतरनाक अवस्था में पाए गए हैं। विशेषज्ञों ने ठाणे में कम होते हरित आवरण के लिए बड़े पैमाने पर शहरीकरण को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने बचे हुए हरित क्षेत्रों को बचाने के लिए एक उचित योजना की मांग की है।
८ सालों में ८,१५५ पेडों को क्षति
आंकड़ों से पता चलता है कि जनवरी २०१७ और दिसंबर २०२३ के बीच ठाणे शहर में पेड़ गिरने की लगभग ३,९६१ घटनाएं दर्ज की गई हैं। रीजनल डिजास्टर मैनेजमेंट सेल द्वारा कलेक्टेड बचाव डेटा के अनुसार, शाखाओं के गिरने के साथ पेड़ों को नुकसान पहुंचने की २,५४९ शिकायतें भी दर्ज की गई हैं। इसी दौरान दर्ज अन्य १,६३४ पेड़ों को स्थायी क्षति पहुंची है।
क्या कहते हैं एक्टिविस्ट
एक्टिविस्ट ने कहा कि अगर इन्प्रâास्ट्रक्चर वर्क और रियल एस्टेट के लिए पेड़ काटने की मंजूरी को भी शामिल किया गया तो हरित क्षेत्रों का वास्तविक नुकसान बहुत बड़ा होगा। इसके अलावा, वाघबिल में हाल ही में हुई घटना उदाहरण भी है, जहां बिना किसी मंजूरी के कथित तौर पर सैकड़ों पेड़ों को काट दिया गया था। कार्यकर्ताओं ने नागरिक कार्यों की निगरानी में नगरपालिका अधिकारियों की ‘उदासीनता’ को जिम्मेदार ठहराया, विशेष रूप से सड़क चौड़ीकरण या अपग्रेडेशन कार्यों के दौरान ठेकेदारों द्वारा किया गया सीमेंट और कंक्रीट की परतों के बीच पेड़ों को पानी नहीं मिल पाता है और वे कमजोर हो जाते हैं।
सड़क चौड़ीकरण से हुआ है ज्यादा नुकसान
स्थानीय लोगों ने कहा कि उदाहरण के लिए भास्कर कॉलोनी क्षेत्र है, जहां प्रशासन द्वारा सड़क चौड़ीकरण और फ्लाईओवर कार्यों के बाद घने जंगलों को नुकसान हुआ है। कार्यकर्ता और पूर्व नागरिक वृक्ष प्राधिकरण सदस्य चंद्रहास तावड़े ने कहा, ‘शहर की सड़कों के किनारे अधिकांश पेड़ों के आसपास की मिट्टी को ठेकेदारों द्वारा कंक्रीट कर दिया गया है, जिससे उनकी स्थिरता खोने और गिरने का खतरा है।’ पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने कहा कि मानसून से पहले पेड़ों की समय पर और वैज्ञानिक छटाई के प्रति प्रशासन द्वारा दिखाई गई उदासीनता के कारण कई पेड़ों को नुकसान हुआ और अंतत: वे नष्ट हो गए।