वह मिलन था शिव और शक्ति का
वह मिलन था भाव और भक्ति का
कुछ झिझक थी स्पर्श आलिंगन में
कुछ संकोच था सम्पूर्ण समर्पण में
वह मिलन था शिव और शक्ति का…
सदिया बीत गई थी उनसे जुदा हो कर
जीवन का हर पल बिता जैसे रो रो कर
समय ही साक्षी था शबरी की भक्ति का
वह मिलन था विषाद और अनुरक्ति का
वह मिलन था शिव और शक्ति का…
भावो के हिम पिघले आंखों से बह निकले
मन के भावों को जैसे गीत और छंद मिले
समय चक्र ठहर गया था सम्पूर्ण सृष्टि का
वह मिलन था मौन और अभिव्यक्ति का
वह मिलन था शिव और शक्ति का…
पाषाण शिला सी बनी अहिल्या को
जब पावन चरण स्पर्श श्रीराम का मिला
विरह वेदना को तब थोड़ा आराम मिला
वह मिलन था प्यास और तृप्ति का
वह मिलन था शिव और शक्ति का…
सांसों को सांसे कानो को धड़कन के पदचप मिले
सबकी नजर बचाकर जब दोनों चुपचाप मिल
कुछ अलग ही तेज था उस मोहक दृष्टि का
वह मिलन था आसक्ति और विरक्ति का
वह मिलन था शिव और शक्ति का…।
-प्रज्ञा पांडेय मनु
वापी, गुजरात