उमेश गुप्ता / वाराणसी
धर्म अध्यात्म की काशी में माघ पूर्णिमा पर संत शिरोमणि संत रविदास की 648वीं जयंती मनाई गई। इस अवसर पर उनके जन्म स्थान काशी के सीर गोवर्धनपुर में लाखों की संख्या में रैदासी पहुंचे और संत शिरोमणि गुरु रविदास को नमन किया।
वाराणसी सीर गोवर्धन पुर में उनके गांव बेगमपुरा की भव्यता देखते ही बन रही थी। इस अवसर पर सीर गोवर्धनपुर मिनी पंजाब बना हुआ दिखा। यहां 2 किलोमीटर के एरिया में 5 लाख रैदासी ठहरे हुए हैं। बुधवार को संत रविदास की प्रतिमा पर भक्तों ने कनाडाई नोटों की माला पहनाई। देश ही नहीं, बल्कि विदेश से भी रैदासी पहुंचकर बाबा साहब का आशीर्वाद प्राप्त किया। काशी में श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के बाद संत रविदास का मंदिर स्वर्ण मंदिर के रूप में स्थापित है। संत रविदास जी के जन्मोत्सव पर देश-विदेश के श्रद्धालुओं के साथ ही तमाम राजनीतिक दल के नेता भी पहुंचते हैं।
इस कड़ी में नगीना सीट से लोकसभा सांसद चंद्रशेखर आजाद भी प्रत्येक वर्ष की तरह इस वर्ष भी संत शिरोमणि का दर्शन करने पहुंचे है। इसके साथ ही पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने भी संत शिरोमणि के दरबार में दर्शन किया। इसके साथ ही पंजाब कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे शमशेर सिंह व उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अजय राय भी अपने समर्थकों के साथ संत शिरोमणि के दरबार में हाजिरी लगाने के लिए पहुंचे। संत शिरोमणि गुरु रविदास का दर्शन-पूजन करने के लिए लगभग 4 किलोमीटर दूर तक लाइन लगी थी। मंदिर से एक तरफ महिलाओं की लाइन तो दूसरी तरफ पुरुषों की लाइन लगी हुई है। वहीं लोग हाथों में माला-फूल लेकर घंटों अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं। हालांकि, इस दौरान भक्तों के चेहरे पर मुस्कान देखने को मिला। संत शिरोमणि के भक्ति में लीन कुछ भक्त दर्शन-पूजन के साथ ही केक भी काटते नजर आए। इस साल श्री निशान के साथ ही झंडे का कपड़ा भी बदल गया। इस दौरान सभी रैदासी ढोल-नगाड़ों की थाप पर बड़े ही मस्ती के साथ नाच-गा रहे थे। इस दौरान पूरा सीर गोवर्धनपुर भक्ति में सागर में गोता लगाता हुआ नजर आया।
बता दें कि हर मास माघ मास की पूर्णिमा का दिन रविदास जयंती के रूप में मनाया जाता है। गुरु रविदास को रैदास के नाम से भी बुलाया जाता था। वह एक कवि और संत थे। गुरु रविदास का भक्ति आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने समाज को जोड़े रखने और व्यक्तिगत आध्यात्मिक आंदोलन को बढ़ावा देने पर जोर दिया है। संत रविदास अपने पूरे जीवन काल में भक्ति के रास्ते पर ही चले। उनका प्रसिद्ध मुहावरा “मन चंगा तो कठौती में गंगा” है, जो आज भी लोगों की जुबान पर रहता है।