उमड़ घुमड़ कर बादल आए l
पावस को भी संग ले आएll
चारों ओर हंसी हरियाली l
आसमान पर बदरी काली l
मुस्काती है वो मतवाली l
मन को मेरे है हर्षाए ll
उमड़ घुमड़ कर बादल आए l
पावस को भी संग ले आएll
चमक रही है आज दामिनी l
आंचल में छिपती है कामिनी l
मन से वो थोड़ी है अनमनी l
याद पिया की उसे सताएll
उमड़ घुमड़ कर बादल आए l
पावस को भी संग ले आए ll
पृथ्वी अब होती है जल थल l
बागों पर बूंदों का आंचल l
झरने भी बहते अब कल कल l
प्रकृति सुंदर रूप दिखाए ll
उमड़-घुमड़ कर बादल आए l
पावस को भी संग ले आए ll
पावस तब लगता है सुंदर l
जब रहने को हो अक्षत घर l
उनको इससे लगता है डर l
जिनकी छत पानी टपकाए ll
उमड़ घुमड़ कर बादल आए l
पावस को भी संग ले आए ll
-डॉ. कनक लता तिवारी