सामना संवाददाता / नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई ने कहा है कि सरकारी नीतियों की समीक्षा करने में न्यायपालिका की महत्वपूर्ण भूमिका है और जब सरकार और एजेंसियां लोगों के अधिकार छीनती हैं तो न्यायालय चुप नहीं बैठ सकता।
जस्टिस गवई हार्वर्ड केनेडी स्कूल में न्यायविदों, कानूनी विशेषज्ञों और शिक्षाविदों की एक सभा में ‘न्यायिक समीक्षा वैâसे नीति को आकार देती है’ विषय पर बोल रहे थे। उन्होंने आगे कहा, ‘समय-समय पर सरकार और उसके विभाग बड़ी संख्या में मामलों में व्यक्तियों के अधिकारों को प्रभावित करने वाले निर्णय ले रहे हैं इसलिए सभी प्रशासनिक अधिकारियों के लिए न्यायिक रूप से काम करते हुए निर्णय लेना और भी महत्वपूर्ण है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अदालत कार्यपालिका द्वारा लिए गए निर्णयों की वैधता और संवैधानिकता की जांच कर सकती है।’
उन्होंने अपने व्याख्यान में इस बात पर जोर दिया कि न्यायिक समीक्षा के उद्देश्यों में से एक यह सुनिश्चित करना है कि प्रशासनिक कार्य और नीति, स्थापित सिद्धांतों और संवैधानिक न्यायशास्त्र के अनुरूप हों। बता दें कि जस्टिस गवई हाल ही में सरकार की विवादास्पद चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द करने वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ का हिस्सा थे। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि न्यायिक समीक्षा की शक्ति, मूल रूप से शक्तियों के बंटवारे के सिद्धांत पर आधारित थी, जो कानून के नियमानुसार चलने वाले किसी भी समाज के लिए जरूरी है। उन्होंने आगे बताया कि राज्य के प्रत्येक अंग को अपने क्षेत्र में कार्य करने की शक्ति है। विधायिका कानून बनाती है और कार्यपालिका नीतियां बनाती है, उन्हें लागू करती है और प्रशासन चलाती है। न्यायपालिका किसी कानून या संविधान के तहत मुद्दों को लागू करती है, व्याख्या करती है और निर्णय लेती है। जस्टिस गवई ने कहा कि अदालतों को राज्य के विभिन्न अंगों यानी विधायिका और कार्यपालिका के कार्यों की समीक्षा करनी होगी और उन्हें नियंत्रण में रखना होगा। साथ ही संविधान के आदर्शों और प्रावधानों के साथ किसी भी तरह की विसंगति को जांच कर उसे दूर करना होगा।