मुख्यपृष्ठस्तंभसूरत हीरा बाजार का काला सच!

सूरत हीरा बाजार का काला सच!

१८ महीनों में ७१ लोगों ने मौत को गले लगाया

एम एम सिंह

गुजरात के हीरे बाजार की चमक-दमक के पीछे जो अंधेरा है वह रोंगटे खड़े कर देनेवाली है। सूरत के हीरा मजदूर नौकरी छूटने और कारखाने बंद होने से बुरी तरह से संकट में हैं, जिसके चलते १८ महीनों में ७१ लोगों ने आत्महत्या की है। दुनिया के सबसे बड़े हीरा व्यापार केंद्रों में से एक है सूरत। एक अनुमान के मुताबिक, गुजरात में हीरा उद्योग में २५ लाख मजदूर हैं, जिनमें से अकेले सूरत में ८-१० लाख मजदूर हैं।
इसी बाबत कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने `एक्स’ पर एक पोस्ट में एक मीडिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए पिछले १८ महीनों में सूरत में कम से कम ७१ हीरा मजदूरों के आत्महत्या करने का दावा किया है। लैबोरेट्री में तैयार किए गए हीरों की वजह से दुनिया भर के हीरा उद्योग पर बुरा असर पड़ा है।
बड़े पैमाने पर छंटनी (सिर्फ फरवरी और जून २०२४ के बीच १५,००० कर्मचारियों तक) और वेतन में कटौती के कारण सूरत बुरी तरह प्रभावित हुआ है। ऐसा होने की वजह से इस उद्योग में कर्मचारियों के बीच बहुत बड़ा आर्थिक और मनोवैज्ञानिक संकट पैदा हो गया है।
रमेश के अनुसार, ये हीरा मजदूर स्थायी और पंजीकृत कर्मचारी नहीं हैं, इसलिए सरकार के पास उनके कल्याण के लिए कोई डेटा या विशिष्ट योजनाएं नहीं हैं। हमें इनके लिए बेहतर कदम उठाने चाहिए। इन कर्मचारियों की पहचान करके इन्हें पंजीकृत करना चाहिए, इन्हें वित्तीय सहायता प्रदान करनी चाहिए और इस उद्योग एवं इसके कर्मचारियों को बाजार की अनिश्चितताओं से बचाना चाहिए।
एक मीडिया हाउस ने डायमंड वर्कर्स यूनियन गुजरात (डीडब्ल्यूयूजी) के हवाले से बताया कि सूरत में पिछले १८ महीनों में कुल ७१ हीरा श्रमिकों ने आत्महत्या की है। पिछले एक साल में इनमें से ४५ मामले सामने आए, जिनमें से ३१ पिछले छह महीनों में हुए। डीडब्ल्यूयूजी के उपाध्यक्ष भावेश टांक ने कहा, ‘जब ये आत्महत्याएं शुरू हुर्इं, तो हमने गुजरात के श्रम मंत्री को पत्र लिखकर इन श्रमिकों और उनके परिवारों को कुछ वित्तीय सहायता प्रदान करने का आग्रह किया। लेकिन सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया।’ उन्होंने कहा, ‘अगर सरकार द्वारा ठोस कदम नहीं उठाए गए तो आत्महत्याओं का यह सिलसिला नहीं रुकेगा, जबकि हम ऐसे लोगों की पहचान करने और उनकी मदद करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।’ भावेश बताते हैं कि उन्हें बेरोजगार हीरा पॉलिशरों से एक दिन में कम से कम १० ज्ञापन प्राप्त होते हैं, जो नई नौकरी खोजने या अपने पूर्व नियोक्ताओं के साथ विच्छेद, वेतन और ग्रेच्युटी के मुद्दों को सुलझाने में मदद मांगते हैं। लॉकडाउन के बाद छंटनी, धीरे-धीरे कम कार्य दिवसों के लिए वेतन कटौती या त्योहारों के आसपास बिना वेतन के लंबे अवकाश के रूप में शुरू हुई। लेकिन इस साल की शुरुआत में लोगों को सरसरी तौर पर निकाल दिया गया।

जेम एंड ज्वेलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (जीजेईपीसी) के मुताबिक, हीरों के आयात और निर्यात में काफी फर्क पड़ा है। सितंबर की रिपोर्ट बताती है कि कटे और पॉलिश किए गए हीरों का कुल सकल निर्यात १०,८२२.३७ करोड़ रुपए रहा, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि के १३,८९२.३ करोड़ रुपए की तुलना में २२.८७ प्रतिशत कम है और जहां तक ​​कटे और पॉलिश किए गए हीरों का आयात है, तो यह १,३१२.७३ करोड़ रुपए से २०.११ प्रतिशत घटकर १,०५८.४२ करोड़ रुपए रह गया।

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