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सपनों का अस्पताल हकीकत में खंडहर! …धूल फांक रही बोरीवली में पीपीपी मॉडल हेल्थ सेंटर की इमारत

नीलम रामअवध / मुंबई
मुंबई की रफ्तार सिर्फ ट्रैफिक जाम और लोकल ट्रेनों की भीड़ तक सीमित नहीं है। शहर की स्वास्थ्य सेवाएं भी एक लंबे इंतजार और अधूरी योजनाओं की कहानी बयां करती हैं। बोरीवली-पश्चिम में बनने वाला स्वास्थ्य केंद्र, मुलुंड के अधूरे अस्पताल और नायर-सायन जैसे अस्पतालों की बदहाल व्यवस्था, इस महानगर के नागरिकों की सेहत को किस कदर संकट में डाल रही है, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं।
रिपोर्ट की मानें तो पंजाबी गली में स्थित दो मंजिला इमारत को कोविड-१९ से पहले डायग्नोस्टिक और डायलिसिस सेंटर के रूप में विकसित किया जाना था। लेकिन महामारी के दौरान इसे क्वॉरंटीन सेंटर बना दिया गया और उसके बाद से यह भवन वर्षों तक खाली पड़ा रहा। अब मनपा इसे पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) मॉडल के तहत शुरू करने की बात कर रही है, जिसमें आम नागरिकों को मामूली फीस पर ओपीडी, सीटी स्कैन, एमआरआई, सोनोग्राफी और अन्य जांच सेवाएं मिलने का वादा किया जा रहा है। हालांकि, सवाल यही है कि वर्षों से जो भवन धूल फांक रहा था, उसकी सुध अब क्यों ली गई?
अधूरी इमारतें, अधूरी उम्मीदें
जहां मनपा एक और पीपीपी मॉडल में अस्पताल बनाने की बात कर रही है, वहीं मुलुंड वेस्ट में एमटी अग्रवाल अस्पताल का एक हिस्सा वर्षों से निर्माणाधीन है। बाहर की सड़क खुदी हुई है, बसें रुकती हैं, यातायात रेंगता है, लेकिन अस्पताल के भीतर इमरजेंसी या नियमित सेवाएं शुरू नहीं हो पाईं। वहीं अंधेरी के मरोल में ईएसआईसी अस्पताल भी अब तक पूरी तरह से चालू नहीं हो पाया है। कर्मचारी वर्ग और आस-पास के निवासी दोनों लंबे समय से इस अस्पताल का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन हालात नहीं बदले।

नाम बड़े, घटिया सुविधाएं
शहर के सबसे व्यस्त सरकारी अस्पतालों में गिने जाने वाले नायर और सायन अस्पताल भी भीड़, अव्यवस्था और बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रहे हैं। ओपीडी में घंटों लाइन, मरीजों को जमीन पर सुलाना, दवाओं की कमी और टूटे स्ट्रेचर-ये आम अनुभव बन गए हैं। कई बार मरीजों को विशेषज्ञ डॉक्टर तक नहीं मिलते और एमआरआई जैसी जांचों के लिए महीनों की प्रतीक्षा करनी पड़ती है।

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