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धूल खा रही हैं सरकारी आदिवासी छात्रावास निर्माण की फाइलें… किराए की इमारतों में २७५ हॉस्टल!

-छात्रों के लिए सुविधाओं का है अभाव
– करोड़ों रुपए हो रहे बर्बाद

धीरेंद्र उपाध्याय / मुंबई
‘ईडी’ २.० सरकार आदिवासी छात्रों का शोषण कर रही है। स्थाई व्यवस्था होने के बावजूद आज भी ५०० से १,००० छात्रों की क्षमता वाले २७५ हॉस्टल किराए की इमारतों में चलाए जा रहे हैं। ऐसे में इन किराए की इमारतों में हॉस्टल चलाए जाने से सरकार के प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए बर्बाद हो रहे हैं। सबसे चौंकानेवाली बात यह है कि हॉस्टलों के निर्माण को लेकर आदिवासी विभाग के अधीन अलग से निर्माण कार्य विभाग स्थापित किया गया है। कई जगह उपलब्ध आरक्षित भूमि पर अतिक्रमण हो गया है। ऐसे में इससे जुड़ी प्रस्तावित कई फाइलें धूल खा रही हैं।
उल्लेखनीय है कि दूरदराज के क्षेत्रों के आदिवासी बच्चों को शहर में सुविधाएं प्रदान करने के उद्देश्य से आदिवासी विकास विभाग द्वारा छात्रावास योजना चलाई जाती है। कई स्थानों पर भूमि से संबंधित प्रस्ताव प्रशासन में लंबित पड़े हैं।

व्यावसायिक परिसरों में छात्रावास
शहर में स्थित अधिकतर छात्रावास व्यावसायिक परिसरों में चल रहे हैं, जिससे यहां आवश्यक सुविधाओं का अभाव देखने को मिलता है। एक तरफ उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाने के लिए छात्रवृत्तियां दी जाती हैं, तो दूसरी ओर देश में ही शिक्षा प्राप्त करने के लिए शहरों में स्थाई छात्रावासों का निर्माण नहीं किया जा रहा है, यह एक विडंबना है। इस कारण किराए की इमारतों में चल रहे छात्रावासों में रहने वाले छात्रों को हमेशा प्रशासन से शिकायतें बनी रहती हैं।

सिर्फ २५ प्रतिशत निर्माण कार्य पूरा
सरकार और प्रशासनिक अधिकारियों के स्तर पर छात्रावासों के निर्माण को लेकर गंभीरता से विचार नहीं किया जा रहा है। अमरावती शहर में एक महिला छात्रावास का निर्माण पूरा हुआ है, लेकिन तीन अन्य छात्रावासों की इमारतों का निर्माण अभी भी केवल २५ प्रतिशत तक ही हुआ है। राज्य के लगभग सभी जिलों में यही स्थिति बनी हुई है।

 

 

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