मुख्यपृष्ठसमाचारहिंदुस्थान की शासन व्यवस्था निरंकुश और तानाशाह!

हिंदुस्थान की शासन व्यवस्था निरंकुश और तानाशाह!

-वी-डेम इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के खुलासा

-१० अव्यस्थित राष्ट्रों में शामिल हुआ हिंदुस्थान

सामना संवाददाता / नई दिल्ली

वी-डेम की एक रिपोर्ट में हिंदुस्थान को तानाशाह राष्ट्र बताया गया है। ‘डेमोक्रेसी विनिंग एंड लूजिंग एट द बैलट (चुनाव में लोकतंत्र की जीत और हार)’ शीर्षक वाली रिपोर्ट वी-डेम इंस्टिट्यूट की डेमोक्रेसी रिपोर्ट-२०२४ में कहा गया है कि हिंदुस्थान वर्ष २०२३ में ऐसे शीर्ष १० देशों में शामिल रहा जहां अपने आप में पूरी तरह से तानाशाही अथवा निरंकुश शासन व्यवस्था है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि विभिन्न घटकों में गिरते स्कोर के साथ हिंदुस्थान अब भी एक चुनावी तानाशाही वाला देश बना हुआ है। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि भारत २०१८ में चुनावी तानाशाही में नीचे चला गया और २०२३ के अंत तक इस श्रेणी में बना रहा। बता दें कि स्वीडन के गोथेनबर्ग विश्वविद्यालय में स्थित वी-डेम इंस्टीट्यूट हर साल मार्च में डेमोक्रेसी रिपोर्ट प्रकाशित करता है। यह रिपोर्ट दुनिया में लोकतंत्र की स्थिति का वर्णन करती है। इसमें लोकतंत्रीकरण और निरंकुशता पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।

कानून का दुरूपयोग
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सत्तारूढ़ बहुलता-विरोधी, हिंदू-राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी ने उदाहरण के लिए आलोचकों को चुप कराने के लिए राजद्रोह, मानहानि और आतंकवाद विरोधी कानूनों का इस्तेमाल किया है। भाजपा सरकार ने २०१९ में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) में संशोधन करके धर्मनिरपेक्षता के प्रति संविधान की प्रतिबद्धता को कमजोर कर दिया।

अन्य देश भी हैं शामिल
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि इस समूह के दस में से आठ देश निरंकुशता की शुरुआत से पहले लोकतांत्रिक थे। उन ८ में से ६ देशों- कोमोरोस, हंगरी, भारत, मॉरीशस, निकारागुआ और सर्बिया में लोकतंत्र खत्म हो गया। २०२३ में केवल ग्रीस और पोलैंड ही लोकतंत्र बने रहे। इसमें यह भी बताया गया है कि जिन देशों में ८० प्रतिशत तक लोकतंत्र का ह्रास होता है उन्हें निरंकुश कहना शुरू कर दिया जाता है।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का ह्रास
इसमें कहा गया है कि वर्षों से, भारत में तानाशाही की प्रक्रिया का अच्छी तरह से दस्तावेजीकरण किया गया है, जिसमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में क्रमिक लेकिन पर्याप्त गिरावट, मीडिया की स्वतंत्रता से समझौता, सोशल मीडिया पर कार्रवाई, सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों का उत्पीड़न, साथ ही नागरिक समाज पर हमले और विपक्ष को डराना-धमकाना शामिल हैं।

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