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सरकार को सुध नहीं; सालभर में रु.२६ हजार करोड़ के हेल्थ क्लेम रिजेक्ट! …अधिकांश मामलों में ६० से ७० फीसदी ही दिया जा रहा है मुआवजा

ग्राहकों से ठगी पर सरकारों की नहीं है कोई निगाह
सामना संवाददाता / नई दिल्ली
केंद्र की मोदी सरकार के बड़े-बड़े दावे सिर्फ सुनने में अच्छे लगते हैं लेकिन वास्तव में लोगों के लिए किसी अर्थ के साबित नहीं होते हैं। लोगों के स्वास्थ्य को लेकर सरकार ने बीमा कंपनियों को बढ़ावा दिया। लेकिन ये कंपनियां सरकार की आंखों में धूल झोंक कर ग्राहकों के साथ ठगी कर रही हैं और ग्राहकों से होनेवाली इस ठगी पर सरकारों का ध्यान तक नहीं है। केंद्र सरकार की आईआरडीएआई भी ऐसी ठगी को रोकने में असफल नजर आ रही है। मोदी सरकार की तरह बीमा कंपनियां भी झूठे वादे कर ग्राहकों को बीमा तो बेच रही हैं लेकिन जब क्लेम देने की बात आती है तो ६०-७० प्रतिशत रकम ही मिलती है बाकी की रकम मरीज को खुद खर्च करनी पड़ती है। निजी कंपनियां क्लेम मारने में आगे हैं और सरकार का इस पर कोई अंकुश नहीं दिख रहा है। आईआरडीएआई के आंकड़ों के अनुसार, मार्च २०२४ में खत्‍म हुए फाइनेंशियल ईयर में इंश्‍योरेंस कंपनियों ने २६,००० करोड़ रुपए के हेल्‍थ पॉलिसी क्‍लेम को रिजेक्ट कर दिया। ये आंकड़े हर साल बढ़ रहे हैं। साल २०२२-२३ के दौरान ये आंकड़ा २१,८६१ करोड़ रुपए था जब अब १९.१० फीसदी बढ़कर २६ हजार करोड़ रुपए हो गया है।
दूसरी तरफ बीमा कंपनियों द्वारा बीमित का क्लेम रिजेक्ट करने का चलन भी बढ़ रहा है। बीमा ब्रोकर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (आईबीएआई) द्वारा जारी किए गए आंक़ड़ों के अनुसार, २०२३ में स्वास्थ्य बीमा क्षेत्र में शामिल २९ बीमा कंपनियों में से केवल चार कंपनियों का क्लेम पेड रेशियो (कुल क्लेम की संख्या के आधार पर) ९० प्रतिशत से अधिक रहा। जबकि बाकियों का हाल बुरा है।

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