सामना संवाददाता / मुंबई
मुंबई मनपा की बहुचर्चित ‘आपली चिकित्सा’ योजना एक बार फिर शुरू होने जा रही है। इससे पहले चार महीने तक यह योजना ठप रही, जिससे हजारों नागरिकों को मुफ्त या रियायती दर पर जांच सुविधाएं नहीं मिल सकीं। यह कोई पहली बार नहीं है, बल्कि इस योजना की स्थिरता और निरंतरता पर लगातार सवाल उठते रहे हैं।
रिपोर्ट की मानें तो पहले भी इस योजना को संचालित कर रही कंपनी कृष्णा डायग्नोस्टिक्स के साथ भुगतान विवाद और सेवाओं में गड़बड़ी के चलते मरीजों को समय पर रिपोर्ट नहीं मिल पाई थी। यह स्थिति नागरिकों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। खासकर जब मानसून जैसे संवेदनशील मौसम में मलेरिया, डेंगू जैसी बीमारियां पैâलने का खतरा बना रहता है। यहां बड़ा सवाल यह है कि क्या मनपा ने पिछली असफलताओं से कुछ सीखा है? जब पहले से यह मालूम था कि पिछला अनुबंध दिसंबर २०२४ में समाप्त हो रहा है तो नए ठेकेदार की नियुक्ति समय रहते क्यों नहीं की गई? चार महीने का अंतर केवल नागरिकों को नुकसान पहुंचाता है।
प्राइवेट कंपनियों पर निर्भर मनपा
इसके अलावा मनपा की प्राइवेट कंपनियों पर अत्यधिक निर्भरता भी चिंता का विषय है। यदि निजी कंपनियों को भुगतान में देरी होती है या वे सेवाएं बाधित करती हैं तो उसका सीधा असर आम जनता पर होता है। मनपा को चाहिए कि वह इस योजना के क्रियान्वयन के लिए खुद की लैब सुविधाएं और संसाधन भी विकसित करे, ताकि वह निजी साझेदारों की विफलता के समय वैकल्पिक उपाय कर सके। कुल मिलाकर, ‘आपली चिकित्सा’ जैसी महत्वपूर्ण योजना को लेकर मनपा की कार्यशैली में गंभीरता और दीर्घकालिक सोच की कमी साफ नजर आती है। यह योजना जनस्वास्थ्य का मुद्दा है, इसे केवल टेंडर प्रक्रिया तक सीमित नहीं किया जा सकता।