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रेलवे मंत्रालय के लिए नहीं है मुंबईकरों की जान की कोई कीमत! …बीते पांच वर्षों में ५,६९४ की हुई मौत

सामना संवाददाता / मुंबई
मुंबई लोकल को शहर की ‘लाइफलाइन’ कहा जाता है, वहीं लोकल ट्रेन से होनेवाली दुर्घटनाओं के आंकड़े बेहद डरावने हैं। इस तरह से इसे लाइफलाइन के बजाय ‘डेथलाइन’ भी कहा जा सकता है। रेलवे पटरियों को पार करते समय ट्रेन की चपेट में आने से हर साल हजारों लोग अपनी जान गवां बैठते हैं। यह सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा है और रेलवे मंत्रालय के लिए शायद ‘मुंबईकरों की जान की कीमत’ महज एक आंकड़ा बनकर रह गई है।
मुंबई रेल विकास निगम (एमआरवीसी) ने २०१८ में ५५१ करोड़ रुपए की योजना बनाई थी, मकसद था पटरी पार करनेवालों की संख्या कम करना। इस योजना के तहत बाउंड्री वॉल, पदचारी पुल (एफओबी) और लिफ्ट जैसी सुविधाएं बनाई जा रही थीं, पर छह साल में केवल ९२ फिसदी काम हुआ है, बाकी ८ फीसदी काम २०२५ तक पूरा होगा, यानी तब तक मौत का यह सिलसिला जारी रहेगा।
२०२४ में नवंबर तक १,०४४ लोग ट्रेस पासिंग करते हुए मौत के मुंह में चले गए, वहीं बीते पांच वर्षों में ५,६९४ लोगों की जान गई। रेलवे पटरियों के किनारे १०.७५ किमी (पश्चिम रेलवे) और ३२.९१ किमी (मध्य रेलवे) दीवार बनाई गई है, लेकिन जब जागरूरकता और कड़ी निगरानी की बात आती है, तो योजनाएं कागजों में दम तोड़ती नजर आती हैं।
सुरक्षा पर फिजूल खर्ची या दिखावा?
रेलवे मंत्रालय सुरक्षा के बड़े-बड़े दावे करता है, जिसमें कहा जाता है कि एफओबी बनाए जा रहे हैं, जागरूकता पैâलाई जा रही है, जिसको सुनते-सुनते लोग खुद को रेलवे के विकास के तले दबा हुआ महसूस करते हैं। जरा सोचिए, ५५१ करोड़ की योजना बनाई गई और इसके बाजवूद, ५,६९४ मौतें हुर्इं। क्या वाकई में यह पैसा सही जगह पर खर्च किया गया, यह बड़ा सवाल है।
मुंबई लोकल ट्रेनें जहां एक ओर ‘सपनों की सवारी’ मानी जाती हैं, वहीं दूसरी ओर ये ‘मौत’ के सफर’ की तस्वीर पेश कर रही हैं। रेलवे मंत्रालय को चाहिए कि ‘मौत के आंकड़े गिनने का विभाग’ बनाए और वहां हर साल मरनेवालों का रिकॉर्ड रखें। आखिर, योजनाओं से ज्यादा मौतों के आंकड़े ही तो रेलवे की प्राथमिकता लगते हैं।

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