सामना संवाददाता / मुंबई
गत रविवार मुंबईकरों ने धुंध और स्मॉग से घिरी सर्द सुबह का सामना किया। यह लगातार छटा दिन था, जब शहर का औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) ‘खराब’ के करीब पहुंचा, जबकि कुछ इलाकों में यह ‘बहुत खराब’ की श्रेणी में दर्ज किया गया। कुलाबा, भायखला, मालाड और बोरिवली जैसे इलाकों में प्रदूषण का स्तर सबसे ज्यादा पाया गया। विशेषज्ञों ने बताया कि इस दौरान ओजोन और पीएम २.५ जैसे प्रदूषक प्रमुख रहे, जो लंबे समय तक संपर्क में रहने पर सांस संबंधी गंभीर बीमारियां पैदा कर सकते हैं।
प्रदूषण के कारण
विशेषज्ञों का कहना है कि इस समय मुंबई में कम नमी और तेज हवा के कारण प्रदूषक जमीन पर नहीं रुकते, बल्कि ऊंचाई पर जाकर धुंध का रूप ले लेते हैं। वाहन से निकलने वाले धुएं, औद्योगिक उत्सर्जन और निर्माण स्थलों की धूल से प्रदूषण बढ़ रहा है। पर्यावरण विशेषज्ञ सुनील दहिया का कहना है कि ओजोन तब बनता है जब वाहनों से निकलने वाला धुआं दवा में ऑक्सीजन से मिल जाता है। वहीं पीएम (पर्टिकुलेट मैटर-यह हवा में मौजूद छोटे-छोटे ठोस कणों और तरल बोूंदों का मिश्रण है) २.५ छोटे-छोटे कण होते हैं, जो वाहनों, पैâक्ट्रियों और निर्माण स्थलों से निकलते हैं।
स्वास्थ्य पर असर
डॉक्टरों का कहना है कि ओजोन और पीएम २.५ के संपर्क में आने से सांस लेने में दिक्कत, खांसी और गले में जलन जैसी समस्याएं हो सकती हैं। यह अस्थमा और सीओपीडी (क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) के मरीजों की हालत और खराब कर सकता है। मुंबई मनपा ने निर्माण स्थलों पर प्रदूषण रोकने और इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाए हैं। अधिकारी चाहते हैं कि शहर में जल्द से जल्द २० फीसदी वाहन इलेक्ट्रिक हों। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि प्रदूषण कम करने के लिए और सख्त कदम उठाने के जरूरत है। जब तक ठोस उपाय नहीं किए जाते, मुंबईवासियों को इस गंभीर समस्या का सामना करना पड़ेगा।
मुंबई के पड़ोसी इलाकों का असर
मुंबई के आस-पास के ठाणे, मीरा-भायंदर, पनवेल और नई मुंबई जैसे क्षेत्रों में स्थित उद्योग और बिजली संयंत्र भी शहर की हवा को प्रदूषित कर रहे हैं।