सैयद सलमान मुंबई
नववर्ष के आगमन से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुवैत की दो दिवसीय आधिकारिक यात्रा की। इस दौरान उन्हें कुवैत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘द ऑर्डर ऑफ मुबारक अल कबीर’ से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार मित्रता के प्रतीक के रूप में राष्ट्राध्यक्षों और विदेशी संप्रभुओं को दिया जाता है। उनकी यात्रा के दौरान हिंदुस्थान और कुवैत ने रक्षा, ऊर्जा, संस्कृति और खेल सहित कई क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने के लिए चार समझौतों पर हस्ताक्षर किए। प्रधानमंत्री के रूप में विदेशी दौरे करना और संबंधों को सुधारना यह विदेश नीति का हिस्सा है। अच्छी बात है कि प्रधानमंत्री ऐसे दौरे करते हैं, लेकिन मोदी का विदेश दौरा हमेशा से विवादास्पद रहा है। हिंदुस्थान में मुसलमानों पर हो रहे अत्याचारों की एक लंबी सूची है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इस पर चुप रहना मुसलमानों को खलता है।
मोदी के दो चेहरे
पीएम मोदी ने अपने भाषणों और विदेश यात्राओं में मुसलमानों के प्रति अपनी नफरत को छिपाने का एक अद्भुत तरीका खोज लिया है। जब भी वे किसी मुस्लिम देश की यात्रा करते हैं, वहां की संस्कृति और परंपराओं की प्रशंसा करते हैं। लेकिन वही मोदी अपने ही देश के मुसलमानों पर खुद भी जहर उगलते हैं, उन्हें कपड़ों से पहचानने की बात सरे आम करते हैं, उन्हें ज्यादा बच्चे पैदा करने वाला कहकर झूठे आरोप लगाते हैं, उन्हें घुसपैठिया जैसे विशेषणों से नवाजते हैं, मीट, मछली, मंगलसूत्र के नाम पर कोसते हैं, लेकिन मुस्लिम देशों में जाकर मुस्लिमों का बखान करते हैं। उन्हें वहां ‘मिनी इंडिया’ नजर आने लगता है। यह सब सिर्फ एक दिखावा है। क्या यह उनकी राजनीति का हिस्सा नहीं है कि वे अपने वोट बैंक को खुश रखने के लिए एक तरफ मुसलमानों के खिलाफ नफरत पैâलाते रहें और दूसरी तरफ मुस्लिम देशों से दोस्ती करते रहें? साहिर लुधियानवी के शब्दों में कहें तो गैरों पे करम अपनों पे सितम
ऐ जान-ए-वफा ये जुल्म न कर
रहने दे अभी थोड़ा-सा भरम
ऐ जान-ए-वफा ये ज़ुल्म न कर….
वोट बैंक की राजनीति
हालांकि, मोदी बड़ी सफाई से आंख का सुरमा चुराने का भी हुनर रखते हैं। एक टीवी चैनल को वे इंटरव्यू देते हुए कहते हुए पाए जाते हैं कि ‘मैं जिस दिन हिंदू-मुसलमान करूंगा, उस दिन मैं सार्वजनिक जीवन में रहने योग्य नहीं रहूंगा। मैं हिंदू-मुसलमान नहीं करूंगा। ये मेरा संकल्प है।’ एक तरफ जहर उगलना और दूसरी तरफ लीपापोती करना, उनकी शख्सियत में दाग लगाता है। मोदी की यह रणनीति बताती है कि वे एक ओर मुसलमानों के प्रति नकारात्मक भावनाएं व्यक्त करते हैं, जबकि दूसरी ओर वे अंतरराष्ट्रीय मंच पर उनके साथ संबंध स्थापित करने का प्रयास करते हैं। इससे यह सवाल उठता है कि क्या यह सब केवल वोट बैंक की राजनीति का हिस्सा है? क्या मोदी जी अपने भाषणों में मुसलमानों के प्रति नफरत पैâलाकर अपनी पार्टी के लिए राजनीतिक लाभ हासिल करना चाहते हैं? इरादा तो यही है। प्रधानमंत्री मोदी का मुस्लिम देशों का दौरा और उनके द्वारा किए गए बयान यह साबित करते हैं कि उनके मन में भारतीय राजनीति में मुसलमानों को लेकर असंगतता और द्वंद्व की स्थिति बनी हुई है। प्रधानमंत्री की यह भूमिका अपने ही देश के लोगों के प्रति अच्छी नहीं कही जा सकती। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मुसलमानों को गले लगाना और यहां के मुसलमानों पर खामोश रहना किसी प्रधानमंत्री को शोभा नहीं देता।
केवल दिखावा…
कुल मिलाकर, पीएम मोदी ने १४ से अधिक मुस्लिम देशों की यात्रा की है जिनमें सऊदी अरब, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत, फिलिस्तीन, कतर, ब्रुनोई और मालदीव जैसे देश शामिल हैं। पाकिस्तान को छोड़कर इन देशों के साथ हमारे संबंध पहले से ही बेहद अच्छे रहे हैं। मोदी ने कोई नया कारनामा नहीं किया है। दौरे करना और सम्मान हासिल करना ही अगर कूटनीति है तो यह पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी तक और अटलबिहारी वाजपेयी से लेकर डॉ. मनमोहन सिंह तक सभी ने इसे बेहतर तरीके से निभाया है। उनके दौर में यह पाखंड नहीं हुआ कि वह यहां मुसलमानों को कोसें और विदेशी मुसलमानों को गले लगाएं। मोदी यही कर रहे हैं। वह मुसलमानों के प्रति नफरत पैâलानेवालों पर अंकुश लगाने में कोई पहल करते नहीं दिखते, बल्कि खुद वही काम करते हैं। मोदी का मुस्लिम देशों की यात्रा करना और उनके प्रति सहानुभूति दिखाना तब विवादास्पद हो जाता है जब उनकी सरकार की नीतियों और बयानों में मुस्लिम समुदाय के प्रति भेदभावपूर्ण दृष्टिकोण स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। उनके आलोचकों का मानना है कि यह सब केवल एक दिखावा है। मोदी के बयानों ने भारतीय राजनीति में हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण को बढ़ावा दिया है। उनके और उनके समर्थकों के बयानों से मुस्लिम समुदाय में असुरक्षा का भाव बढ़ा है। देश के मुखिया से ऐसी उम्मीद कत्तई नहीं की जा सकती, लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा हो रहा है जो चिंताजनक है।
(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)