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मोदी की योजना की सामने आई हकीकत … ट्रेनिंग में घायल अग्निवीरों को नहीं मिल रहा मुआवजा!… दर-दर भटकने को मजबूर

सामना संवाददाता / नई दिल्ली 
अग्निवीर योजना की सच्चाई धीरे-धीरे सामने आने लगी है। कई अग्निवीर जो ट्रेनिंग के दौरान घायल हो गए थे, वे  मुआवजे के लिए दर-दर भटक रहे हैं। सेना भी उन सबको  ‘अनुपस्थित’ बताकर बाहर का रास्ता दिखा रही है। देश के अलग-अलग प्रांतों में ऐसे कई युवक हैं, जो अग्निवीर की ट्रेनिंग के दौरान जख्मी हुए, लेकिन उन्हें इंश्योरेंस में से डिसेबिलिटी परसेंटेज के हिसाब से न तो मुआवजा मिला है और न ही कोई अनुग्रह राशि।
बताया जाता है कि २३ साल के प्रभजोत सिंह दिहाड़ी मजदूर हैं, वे २०२२ में अग्निपथ योजना के तहत बतौर अग्निवीर भर्ती हुए थे। अग्निपथ योजना के तहत पहले बैच में भर्ती हुए प्रभजोत बामुश्किल से १० हफ्ते की ट्रेनिंग को पूरी कर पाए थे कि उनके हाथ में चोट लग गई और उन्हें इलाज के लिए घर भेज दिया गया। २३ साल के हरजिंदर सिंह और २२ साल के गुरजीत सिंह की भी कुछ ऐसी ही कहानी है। ये तीनों ही जब फिट होने के बाद ट्रेनिंग सेंटर पहुंचे तो उन्हें ‘अनुपस्थित’ बताकर सेना से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। राजस्थान के भरतपुर के रहने वाले संदीप सिंह की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। वह बताते हैं कि वे भी अग्निपथ स्कीम के पहले बैच में राजपूत रेजिमेंट, फतेहगढ़ में भर्ती हुए थे। उनके सारे टेस्ट पूरे हो गए थे और ट्रेनिंग पूरी होने में मात्र १७ दिन ही बचे थे। लेकिन उनके पैर में प्रैâक्चर हो गया, और उन्हें ४० दिन की सिक लीव पर भेज दिया गया।
अग्निवीरों के साथ अन्याय   
इस मामले में एक भूतपूर्व सैनिक का कहना है कि उन्होंने ऐसे कुछ मामले सामने आने पर सेना अध्यक्ष को पत्र भी लिखा है, जिसमें उन्होंने ऐसे अग्निवीरों को न्याय देने की मांग की है। वे कहते हैं कि आर्मी, नेवी और एयरफोर्स में हमारे अग्निवीरों के साथ अमानवीय ढंग से अन्याय हो रहा है। अग्निपथ स्कीम के तहत अग्निवीरों के ट्रेनिंग की अवधि को घटा कर ६ महीने कर दिया गया है। जिससे उन पर परफॉरमेंस का दबाव बढ़ गया है और इसी दबाव के कारण ८०० भर्तियों के बैच में से ७-१० अग्निवीर अक्सर जख्मी हो जाते हैं।

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