श्रीकिशोर शाही
राजनीति का खेल भी अजीब है। कभी तो एक-दूसरे के खिलाफ ऐसी दुश्मनी हो जाती है कि हवा में उड़नेवाले शब्द सारी मर्यादाएं लांघ जाते हैं, फिर समय पलटता है और गिले-शिकवे भूलकर दुश्मन भी गले मिल जाते हैं। कुछ ऐसा ही मामला बिहार में मुख्यमंत्री नीतिश कुमार और जीतनराम मांझी के बीच देखने को मिल रहा है। पिछले एक दशक में दोनों के बीच न जाने कितनी बार रिश्ते नरम-गरम हुए हैं। हाल ही में नीतिश ने मांझी से तू-तड़ाक तक कर डाली थी, मगर अब हालात ऐसे बदले कि नीतिश मांझी की तारीफें करते नजर आ रहे हैं। नीतिश कुमार ने लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार अभियान शुरू कर दिया है और ९ अप्रैल को वह मांझी के समर्थन में गया में रोड शो करेंगे। गौरतलब है कि गया में ‘हम’ के संरक्षक जीतन राम मांझी एनडीए के उम्मीदवार हैं। २०१४ में नीतिश ने अचानक इस्तीफा देकर मांझी को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी थी। वैसे कुछ महीनों में ही दोनों के बीच रिश्ते बिगड़ने लगे और नीतिश ने मांझी को हटाकर फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी हथिया ली थी। उसके बाद मांझी ने अपनी अलग पार्टी ‘हम’ बना ली थी, तब से दोनों के बीच कभी कड़वा तो कभी मीठा रिश्ता चलता रहा है।
भाजपा दा पिंड विच औना बंद है!
हाल ही में हरियाणा के कुछ गांवों में किसानों ने भाजपा उम्मीदवार के लिए नो एंट्री का बोर्ड लगा दिया था। यही नहीं गांववालों ने समूह बनाकर गांव की रक्षा करनी शुरू कर दी, ताकि कहीं से भी कोई भाजपाई गांव में न घुस आए। लगता है अब यह हवा पंजाब में भी पैâल गई है। भाजपा द्वारा पंजाब में छह उम्मीदवारों की घोषणा के साथ ही उत्तेजित किसानों ने भी भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और अपने गांवों में भाजपा नेताओं के प्रवेश को रोकने वाले पोस्टर लगाना शुरू कर दिए हैं। पंजाब में १ जून को मतदान होना है। अधिकांश बैनर विभिन्न किसान संघों द्वारा खुद से लगाए जा रहे हैं, वहीं शंभू और खनौरी सीमाओं पर किसानों के विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व करने वाले संयुक्त किसान मोर्चा और किसान मजदूर मोर्चा ने भी एक अलग पोस्टर जारी किया है, जिसमें किसानों के खिलाफ भाजपा की ‘बर्बरता’ की आलोचना की गई है। इन्होंने अपना पोस्टर युवा किसान शुभकरण सिंह को समर्पित किया है, जिनकी खनौरी सीमा पर कथित तौर पर सुरक्षा बलों ने तब गोली मारकर हत्या कर दी थी, जब किसान २१ फरवरी को एमएसपी की कानूनी गारंटी के लिए विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। अधिकांश गांवों में, किसान ‘किसान दा दिल्ली जाना बंद है, भाजपा दा पिंड विच औना बंद है’ जैसे नारे वाले पोस्टर लगा रहे हैं’, जिन्हें भाकियू, भुचो खुर्द, भठिंडा द्वारा जारी किया गया है। भाकियू एकता, सिधुपुर का शुभकरण को समर्पित एक और बैनर कई गांवों में लगाया गया, जिस पर लिखा था: ‘मेरा की कसूर सी (मेरी क्या गलती थी)?’
बिहार में लालू का डर है
`जब तक रहेगा समोसे में आलू, तब तक बिहार में लालू’ का जलवा कायम रहेगा। इन दिनों लालू भले ही बीमार रहते हैं, मगर अभी भी क्राउड पुलर तो हैं ही। यही वजह है कि बिहार में एनडीए को लालू से डर लग रहा है। शायद यही कारण है कि अब एक पुरानी पोटली खोलकर लालू के खिलाफ ग्वालियर से गैर जमानती वॉरंट जारी कराया गया है। यह मामला अवैध हथियारों के व्यापार से संबंधित है और लगभग २६ वर्षों से लंबित है। इस मामले में ग्वालियर कोर्ट ने १९९८ में लालू को फरार घोषित कर दिया था। मजे की बात है कि लालू यूपीए सरकार में रेलमंत्री बन गए और पूरे देश में घूम रहे थे, पर कोर्ट को वह नहीं दिख रहा था। खैर, यूपी के एक शख्स पर आरोप है कि उन्होंने १९९५ से १९९७ के बीच ग्वालियर की तीन हथियार कंपनियों से हथियार और कारतूस खरीदे थे। उसने वे हथियार और कारतूस बिहार में बेचे थे। जिन लोगों को ये हथियार बेचे गए, उनमें लालू का भी नाम है। यह मामला २३ अगस्त १९९५ से १५ मई १९९७ के बीच का है। मामले में कुल २२ आरोपी हैं। छह के खिलाफ मुकदमा चल रहा है। दो की मौत हो चुकी है। अब चुनाव के बीच इस कानूनी खेला को देखकर तो यही लग रहा है कि बिहार में वाकई लालू का डर है।